शरीर से माज़ूर लेकिन बुलंद इरादों वाला ये शख्स, पढ़ें पुंछ के हुकम चंद की कहानी
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शरीर से माज़ूर लेकिन बुलंद इरादों वाला ये शख्स, पढ़ें पुंछ के हुकम चंद की कहानी

हुकम चंद की दोनों टांगे बचपन से ही काम नहीं कर रही है लेकिन अपने बुलंद हौसलों की ताकत से वो खेतीबाड़ी और पशुपालन का काम करता है.

शरीर से माज़ूर लेकिन बुलंद इरादों वाला ये शख्स, पढ़ें पुंछ के हुकम चंद की कहानी

पुंछ: किसी ने सच ही कहा है कि सच्ची लगन हो तो मंज़िलें आसान होती हैं पंखों से कुछ नहीं होता होंसलों से उड़ान होती है. इस बात को सच साबित कर दिखाया है सरहदी इलाके के पुंछ जिले के पहाड़ी गांव मंगनाड़ के रहने वाले 32 साल के हुकम चंद ने. हुकम चंद की दोनों टांगे बचपन से ही काम नहीं कर रही है लेकिन अपने बुलंद हौसलों की ताकत से वो खेतीबाड़ी और पशुपालन का काम करता है. 

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आज वह पुंछ जिले के तरक्कियाफ्ता किसानों की कैटेगरी में शामिल हो चुका है. अपने हाथों से अपने खेतों में सब्ज़ियां उगाने के साथ ही दो गायों की देख भाल कर उनके दूध और सब्जियों को खुद ही कई किलो मीटर दूर पुंछ नगर में दुकानों और लोगों के घरों में पहुंचाने का काम कर रहा है और अपने साथ साथ अपने बुज़ुर्ग वालिदैन (माता पिता) का भी गुज़र बसर कर रहा है.

वज़ीरे आज़म मोदी का है मुतास्सिर
हुकम चंद ने बताया कि वो 12वीं जमात तक पढ़ाई की. उसके बाद जम्मू में पॉलिटेक्निक कालेज में कम्प्यूटर का कोर्स के बाद पुंछ नगर में आईटीआई से भी ट्रेनिंग हासिल की है. लेकिन उसके बाद भी कहीं कोई नौकरी नहीं मिल पाई और मैं घर में बेकार, मायूस होकर बैठ गया था. एक बार जब पीएम मोदी के ज़रिए हम जैसे लोगों को, जिन्हें पहले लोग अपंग (अपाहिज) कहते थे उन्होंने हमें 'दिव्यांग' कहते हुए यह कहा कि दिव्यांग किसी से कम नहीं हैं वह हर काम कर सकते हैं. तब मुझे लगा की क्यों न मैं भी कुछ करूं तब मेरा ध्यान मेरे खेतों की तरफ गया, जिन्हें आबाद करने के लिए मेरे बुज़ुर्ग वालिदैन मजदूरों पर मुनहसिर (आश्रित) रहते थे. तब मैने अपने खेतों के कुछ हिस्से पर सब्जियां उगानी शुरू कीं.

खराब हो जाती थी सब्ज़ियां
सब्जियां तो मैंने उगा ली लेकिन उन्हें बेचूं कहां गांव में तो हर किसी ने अपने खाने के लिए सब्जियां लगाई होती हैं फिर कुछ लोग कभी कभार मेरी सब्जियां खरीदने आते लेकिन ज्यादातर सब्जी खराब हो जाती थीं. इस बीच मैंने अपने दिव्यांग सर्टिफिकेट के साथ सरकारी स्कूटी की अर्ज़ी और मुझे हुकूमत की जानिब से स्कूटी मिल गई. जिसके बाद बाद मैंने उस स्कूटी की मदद से अपनी सब्जियों को पुंछ नगर में दुकानों पर जा कर बेचना शुरू किया. अब मैं हर दिन सुबह अपने खेतों से सब्जियां लेकर शहर में जा कर बेचता हूं और अपने परिवार का पेट आराम से पाल रहा हूं. 

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हुकूमत से मिल रही है मदद
मुझे लगता है कि हम दिव्यांग भीख मांगने के लिए नहीं बल्कि अपनी ताकत पर कुछ कर दिखाने के लिए पैदा हुए हैं. मेरी खेती बाड़ी के काम को देख कर अब मुझे मेहकमा ज़रात (कृषि विभाग) की तरफ से किसानों को दी जाने वाली हर मदद दी जा रही है मुफ्त बीज व खाद भी मिलता है.

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