"सफ़ बांध कर खड़ी हैं जहां की सदाक़तें,तारीख़ लिख रहा है नवासा रसूल का"
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सैयद अब्बास मेहदी रिज़वी: कर्बला में इंसानियत की बक़ा और इस्लाम के तहफ़्फ़ुज़ के लिए क़ुर्बानी देने वाले इमाम हुसैन की शाहदत के 40 दिन पूरे होने पर दुनियाभर में आप का चेहल्लुम (अरबईन) मनाया जा रहा है. मुल्क के अलग अलग हिस्सों में कोविड -19 के ज़ाब्तों को पेशेनज़र रखते हुए मजलिसों मातम, अज़ादारी और पुरसादारी का एहतेमाम हो रहा है.
ज़ुल्म के आगे सर नहीं झुकाया
इमामे आली मक़ाम नें इंतेशार, ज़ुल्म, ज़्यादती, इंतेहापसंदी, शिद्दतपसंदी, और दहशतगर्दी के आगे सर नहीं झुकाया बल्कि सच,हक़, अम्न, समाजी मसावात और इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ के लिए आवाज़ बुलंद की. राहे हक़ पर चलते हुए नबी के नवासे ने बड़ी क़ुर्बानियां दीं. आप पर ज़ुल्म ढाए गए, छोटे छोटे बच्चों पर तपती हुयी गर्मी में भी पानी बंद कर दिया गया, भूख और प्यास के आलम में अंसार, अक़राब, भांजे, भतीजे और बेटों को शहीद करके सर क़लम किया गया. इन तमाम ज़ुल्म व ज्यादती के बावजूद इमाम हुसैन ने अपने मौक़फ़ नहीं बदला. जो जुमला कह कर वो निकले कि "मुझ जैसा तुझ जैसे की बैयत नहीं कर सकता" इसी पर क़ायम रहे.
आख़िरकार ज़ामिलों ने उस गर्दन पर भी तलवार चला दी जिस पर पैग़म्बरे आज़म बोसा लिया करते थे. 10 मोहर्रम सन 61 हिजरी को इराक़ के शहर कर्बला में इमाम हुसैन तो शहीद हो गए लेकिन रहती दुनिया तक सच,हक़ और इंसाफ़ के लिए क़याम करने की हिम्मत मज़लूमों को दे गए. हर साल आप की शाहदत की बरसी के 40 दिन पूरे होने के मौक़े पर चेहल्लुम मनाया जाता है. आपके अक़ीदतमंद आपको याद करते हैं और आप पर गुज़रे मसाइब पर अश्कबार होते हैं.
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