Gyanvapi Case: ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम तंजीमों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की है और इस दौरान हिंदू पक्ष की ओर से पूजा किए जाने के मामले और हाई कोर्ट के आदेश को लेकर बात कही गई है.
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Gyanvapi Case: ज्ञानवापी मामले में आज मुस्लिम तंजीमों ने प्रेस कॉन्फेंस की है. इस दौरान खालिद सैफुल्लाह ने कहा कि कल जो वाकिया पेश आया जामा मस्जिद बनारस में, उससे न सिर्फ बीस करोड़ मुसलमानों को बल्कि मुल्क में यकीन रखने वाले लोगों बहुत ही सदमा पहुंचाया है. फिर वह चाहे किसी भी धर्म से ताल्लुक रखने वाले हों. उन्होंने आगे कहा कि यह जो बात कही जाती है कि मुस्लिम दौर में मंदिर को गिरा कर मस्जिद बनवाई गई, यह बिलकुल गलत है. क्योंकि दूसरे की छीनी हुई जमीन पर मस्जिद बनाने की इजाजत नहीं है. सऊदी में मस्जिद-ए-नबवी भी मोहम्मद साहब ने जिन लोगों के जमीन थी उनको पैसे देकर बनवाई थी. मस्जिद सवाब के लिए बनाई जाती है, जो किसी की जमीन पर कब्जा कर के नहीं हो सकता. इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता है.
खालिद सैफुल्लाह ने कहा कि हमारे देश में अंग्रेज आए और उन्होंने लड़ाओ और राज करो कि हिकमत अमली पर काम किया. उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के बीच दूरियां पैदा करने का काम किया. हिंदुस्तान में जितने पुराने मंदिर हैं, कई मुसलमानों की हुकूमतें आई और गईं. अगर मुसलमानों की ऐसी सोच होतीं तो क्या यह मंदिर या मस्जिद मौजूद होते?
खालिद सैफुल्लाह ने कहा कि कोर्ट ने जिस जल्दबाजी में फैसला सुनाया और दूसरे फरीक को बहस का मौका भी नहीं दिया. इससे इंसाफ देने वाले इदारों की चोट पहुंची है. बाबरी मस्जिद के मामले में कोर्ट ने माना था कि मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनवाई गई थी, और वो फैसला आस्था का ख्याल रखकर आया है. उन्होंने कहा हमारी अदालतें भी ऐसी राह पर चल रही हैं जिससे लोगों के एहतामाद को चोट पहुंच रही है.
पीसी के दौरान मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि देश की आजादी के बाद इस तरह के मसाइल में घिरा हुआ है. बाबरी मस्जिद का मसला था, लेकिन उसी जमाने मुख्तलिफ मस्जिदों के भी मसले थे. दिल्ली की जामा मस्जिद का मसला है, अहमदाबाद की मस्जिद का मसला है, संभल की मस्जिद का मसला है और मथुरा भी है. लेकिन, इस वक्त जितनी तेजी से ये मसाइल उठे हैं, उससे महसूस होता है कि कानून को सामने रख कर मसला हल करने की जिम्मेदारी जिन कोर्ट्स पर है, वहां ऐसी लचक और ढील पैदा हुई है कि जो लोग इबादतगाहों पर कब्जा करने का प्रोग्राम चाहते थे उन्हें सहूलत हुई है.
कांग्रेस के जमाने में 1991 का कानून बना था, उन्हें इस बात से भी ऐतराज था कि बाबरी मस्जिद को इससे अलग क्यों किया जा रहा है. उस केस में हमले बेहतर से बेहतर वकील लाकर हमने अपने दावों को पेश किया था. हम कहते थे तो कानूनी दलाइल की ऊपर सुप्रीम कोर्ट का फैसला होगा उसे हम कबूल करेंगे. सर्वे से साबित हुआ था कि मस्जिद के नीचे कोई मंदिर नहीं था.
अरशद मदनी ने आगे कहा, "बाबरी मस्जिद के मामले ने एक रास्ता दिखा दिया. इन कानून की किताबों को आग लगा दो, कोई मतलब नहीं है. कोर्ट में अगर फैसले अकीदतमंदी के हिसाब से होंगे तो मुल्क कैसे चलेगा. तसव्वुर यह दिया जा रहा है कि जहां अकसरियत मसला लेकर आएगी वहां सबूतों को नहीं देखा जाएगा. बल्कि वहां यह देखा जाएगा कि अकसरियक की अकीदतमंदी क्या चाहती है."