Islamic Knowledge: इस्लाम में सब्र करने के बारे में बताया गया है. इस्लाम में बदला लेने और बुग्ज़ रखने से मना किया गया है. हदीस में सब्र के बारे में जिक्र है.
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Islamic Knowledge: आज के समाज में देखा जाता है कि अक्सर जब लोग खुश होते हैं, तो वह बहुत ज्यादा खुश होते हैं. खुशी के मारे वह ढोल, तमाशे और पटाखे छोड़ने लगते हैं लेकिन जब अल्लाह उन्हें गम देता है, तो वह बहुत ज्यादा गमगीन हो जाते हैं. रोने-धोने लगते हैं और इस्लामी निजाम पर सवाल उठाने लगते हैं, लेकिन इस्लाम ने इन चीजों से मना किया है.
सब्र करें
इस्लाम कहता है कि इंसानी जिंदगी एक सफर है. यह सफर हमेशा एक जैसा नहीं चलता है. इसमें कुछ परेशानियां तो कुछ दिक्कतें भी आती हैं. इंसान की जिंदगी में कभी कारोबार तो कभी घरबार में परेशानियां आती हैं. कह सकते हैं कि दुख तकलीफों से इंसान का रिश्ता चोली दामन का है. इसीलिए इस्लाम में मुसीबतों में सब्र और खुशी में अल्लाह का शुक्र अदा करने की बात कही गई है. इस्लाम कहता है कि मुसलमान के हर मामले में खैर है, अगर उसे खुशी मिले तो शुक्र अदा करे और अगर उसे दुख मिले तो वह सब्र करे.
माफ करे दें
आज हमारे समाज में लोगों में सब्र करने का जज्बा कम हो गया है. लोगों के दिल बुग्ज़ से भरे हैं. लोग एक दूसरे से बदला लेना चाहते हैं. कई मामलों में पीढ़ियों से बदला लेने का चलन चला आ रहा है. हालांकि इस्लाम ने सब्र को तरजीह दी है. लोगों को एक साथ मिलजुलकर साथ रहने को कहा है. प्रोफेट मोहम्मद स. को बहुत तकलीफें दी गईं. उन पर पत्थर बरसाए गए. लेकिन उन्होंने कभी किसी से जाती दुश्मनी नहीं निकाली.
सब्र पर हदीस
अनस बिन मलिक रजि. ने कहा: मैंने पैगंबर स. को यह कहते हुए सुना: "अल्लाह कहता है, 'जब मैं अपने बंदे उस की दो महबूब चीजों यानी कि दो आंखों की वजह से आजमाइश में मुबतिला करता हूं और वह सब्र करता है, तो मैं उस के एवज में उसको जन्नत अता करता हूं. (हदीस: सहीह, बुखारी)
(हदीस: सहीह, बुखारी)
कुरान में सब्र का जिक्र
कुरान में अल्लाह ताला फरमाता है कि "और सब्र करो, अल्लाह सब्र वालों के साथ है." (अल-अनफ़ाल: 46)