क्या कर्नाटक में इमाम और मुअज्जिन को मिलेगा उनका हक?
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क्या कर्नाटक में इमाम और मुअज्जिन को मिलेगा उनका हक?

जमात अहले सुन्नत की वक्फ बोर्ड अफसरान से मुलाकात

क्या कर्नाटक में इमाम और मुअज्जिन को मिलेगा उनका हक?

बैंगलुरु/मासूम सिद्दीकी: कर्नाटक में जमात अहले सुन्नत तंजीम ने रियासत के वक्फ बोर्ड के सामने इमाम और मुअज्जिन का मसअला उठाया है. तंजीम ने वक्फ बोर्ड के सेक्रेटरी से तहरीरी तौर पर तीन मांगे रखीं हैं. जिसमें इमाम और मुअज्जिन की तनख्वाह चार हजार से बढ़ाकर दस हजार रुपये करने की मांग सबसे अहम रही. वफ्द नें अपनी मुतालबात में उलेमा के लिए मेडिकल कार्ड और रहने के लिए घर बनाने का मुतालिबा किया. इस मौके पर वफ्द ने कहा कि इतने बड़े कौम की कयादत करने वाले आज मजबूर पड़े हुए हैं इसलिए उनके मसायल उठाने जरूरी हैं.

कौन होते हैं इमाम और मुअज्जिन
इस्लाम के पांच फर्ज़ में से एक नमाज़ को सबसे ज्यादे अहमियत हासिल है और इसे कायम रखने में इमाम और मुअज्जिन का बड़ा अहम रोल होता है. मुअज्जिन जहां पांच वक्त अजान देकर मुसलमानों को नमाज़ के लिए मस्जिद में आने की दावत देता है. तो इमाम मस्जिद में पहुंचे तमाम नमाजियों की कयादत करता है. नमाज के बाद अकसर इमाम नमाजियों के बीच इस्लाम के बारे में मज़ीद जानकारियां हासिल कराते हैं.  

कैसे पुरा होता हैं इमामों की जरूरियात
मस्जिदों में इमामत के लिए हाफिजे कुरआन होना लाजमी होता है. हालांकि कई जगह नमाज़ की तफ्सीली जानकारी रखने वाले मौलाना को भी ये जिम्मेदारी दे दी जाती है. ये हाफिजे़ कुरआन मदरसों से दीनी तालीम हासिल करने के बाद दिगर तालीम हासिल कर जिन्दगी गुजारने के लिए इमामत शुरू करते हैं. कुछ मस्जिदों को छोड़कर ज्यादातर मस्जिदों के इमाम और मोअज्जिन की जरूरियात मकामी लोग ही पूरा करते हैं. तो बाज मकामात पर हुकूमत की अलग-अलग स्कीमों का भी उन्हें फायदा मिलता है लेकिन सबसे चौकाने वाली बात ये है कि इस्लाम की खिदमत करने वाले ये लोग बेहतरीन लिबास में हमेशा खुश नज़र आते हैं और बहुत ही सादगी से अपनी जिन्दगी गुजारते हैं. समाज में बच्चो की तालीम और तरबीयत में इनका बड़ा अहम रोल होता है.

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