नई दल्ली: मुल्क के साबिक वजीर आज़म डॉक्टर मनमोहन सिंह (Dr Manmohan Singh) अब इस दुनिया में नहीं है. गुरुवार की रात उन्होंने इस दुनिया- ए- फानी को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. वो न सिर्फ हिंदुस्तान बल्कि दुनिया भर के लिए एक ऐसी अज़ीम शख्सियत थे, जिनका नाम तक लोग अदब से लेते हैं और लेते रहेंगे. मुल्क को उन्होंने जो दिया, इसके लिए अवाम हमेशा उनका कर्ज़दार रहेगी. उनकी मौके पर आज भारत ही नहीं बल्कि पड़ोसी मुल्क पकिस्तान भी ग़मगीन हैं, और उन्हें याद कर रहा है. इसकी वजह ये है कि डॉक्टर मनमोहन सिंह अविभाजित भारत ( यानी पाकिस्तान) के पंजाब प्रांत के गाह गांव में 26 सितंबर 1932 को गुरमुख सिंह और अमृत कौर के घर पैदा हुए थे.


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गाह गाँव में उनके आबाई मकान के अवशेष आज भी मौजूद हैं, जहाँ कभी उनका बचपन गुज़रा था, और यहीं उन्होंने किशोरावस्था की दहलीज़ पर भी कदम रखा था. 2004 में जब वो हिंदुस्तान के वजीर ए आज़म बने तो उनके बचपन के पाकिस्तानी दोस्त राजा मोहम्मद अली ने उन्हें मुबारकबाद भेजा था. बाद में वो भारत में  मनमोहन सिंह से मिलने भी आये थे. 
मनमोहन सिंह ने भी अपने गाँव को कभी भुलाया नहीं. जब वो भारत के प्रधानमंत्री बने तो, पाकिस्तान के इस गांव में भारत और पाकिस्तान सरकार के तआवुन से गाँव में कई तरक्कियाती कामों को अंजाम दिलाया. 


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उर्दू से करते थे प्यार 
डॉक्टर मनमोहन सिंह ने इब्तेदाई तालीम पाकिस्तान में ही हासिल की थी, लेकिन जब मुल्क आज़ाद हुआ तो वह हिन्दुस्तान के पंजाब आ गए. 1948 में यहीं से मैट्रिक तक की तालीम हासिल की.  उन्होंने 1952 से 1995 के दौरान उन्होंने अमृतसर के हिंदू कॉलेज से बीए ऑनर्स की थी.  आला तालीम के लिए वह पंजाब से ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए, जहां उन्होंने 1957 में अर्थशास्त्र में आला तालीम की डिग्री हासिल की थी. ​​इसके बाद सिंह ने 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के न्यूफील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल. की डिग्री हासिल की. वो हमेशा पढने- लिखने वाले इंसान थे. पंजाब यूनिवर्सिटी के यूनिवर्सिटी ऑफ़ बिज़नस स्कूल के इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट में डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपनी 35000 से ज़्यादा किताबें दान दी थी. वो कई भाषाओं के जानकार थे, लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि वो हिंदी नहीं जानते थे.  उन्हें इंग्लिश, उर्दू के साथ पंजाबी जुबान आती थी. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वो कई बार अपने भाषण पंजाबी में ये फिर उर्दू में लिखकर पढ़ते थे. इस बात का खुलासा उनके मीडिया सलाहकार रह चुके संजय बारू ने अपनी किताब में भी किया है. आप ये कह सकते हैं कि वो उर्दू से प्यार करते थे. 


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देश के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए करते थे फ़िक्र 
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत के मुसलमानों के लिए एक बड़ा काम हुआ, जिसको लेकर देश का मुसलमान उन्हें हमेशा याद करेगा. UPA की पहली सरकार बनते ही उन्होंने देश में  मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक हालात का अध्ययन करने के लिए सच्चर समिति (Sachchar Committee) का गठन किया गया था. समिति ने 30 नवंबर, 2006 को लोकसभा को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट में मुस्लिम समुदाय के सामने आने वाले मुद्दों पर रौशनी डाली गयी और देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में उनकी भागीदारी को बेहतर बनाने के तरीके सुझाए गए. इस रिपोर्ट में पहली बार खुलासा किया गया कि देश का मुसलमान राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मामले में पिछड़े और दलित समुदायों से भी नीचे हैं.  उनके हालत सुधारने के लिए समिति ने कई सिफारिशें की थी, जिनमे से कुछ लागू भी की गयी. सच्चर समिति की वजह से उन्हें हमेशा भाजपा के निशाने पर रहना पड़ा और उनपर मुस्लिमपरस्त होने के इलज़ाम भी लगाये गए. मनमोहन सिंह के निधन पर एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने दुख जाहिर किया है. उन्होंने कहा, "वह पहले पीएम थे जिन्होंने हाशिए पर पड़े समुदायों और मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए काम किया. उनके निधन से देश ने अपना बेटा खो दिया है." 



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