Mukhtar Ansari News: मुख्तार अंसारी की बीती रात दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई है. उनके खिलाफ 60 से ज्यादा मामले लंबित थे. क्या आपको पता है कि मुख्तार के नाना और दादा दोनों ही देश की आजादी के लिए लड़ चुके हैं.
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Mukhtar Ansari News: मुख्तार अंसारी का बीती रात दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है. सुबह 9 बजे उनका पोस्टमार्टम होना है, जिसमें काफी कुछ साफ हो जाएगा. अपोज़ीन इस मौत को लेकर लगातार सरकार पर निशाना साध रहा है. जेल अधिकारियों ने कहा कि 60 वर्षीय राजनेता की रमजान का उपवास तोड़ने के बाद उनकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ गई थी. उत्तर प्रदेश के मऊ से पांच बार विधायक रहे मुख्तार अंसारी के खिलाफ 60 से अधिक मामले लंबित थे और वह बांदा जिला जेल में बंद थे.
भारत की आज़ाजी की लड़ाई में गहरी जड़ें रखने वाले परिवार में जन्मे अंसारी की अंडरवर्ल्ड में एंट्री काफी हैरान कर देने वाली थी. 1960 में उत्तर प्रदेश के यूसुफपुर में जन्मे मुख्तार अंसारी का अपराध की गलियों से सत्ता के गलियारों तक का सफर काफी विवादस्पद और दिलचस्प भी था. वह ऐसे परिवाप में जन्में, जहां के लोगों ने देश के आजादी में एक बड़ा योगदान दिया.
उनके दादा, मुख्तार अहमद अंसारी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक प्रमुख व्यक्ति थे और 1927 में इसके अध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे. मुख्तार अहमद अंसारी शुरुआत में मुस्लिम लीग से जुड़े हुए थे. लेकिन, फिर जिन्ना की पार्टी ने पाकिस्तान की मांग की तो मुख्तार अहमद ने खुद को इससे अलग कर दिया और इसका विरोध किया. उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया के चांसलर के रूप में भी कार्य किया, इस पद पर वे 1936 में अपनी मृत्यु तक बने रहे.
मातृ पक्ष में, मुख्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भारतीय सेना में एक सम्मानित अधिकारी थे. उन्होंने 1948 में पाकिस्तान के साथ संघर्ष के दौरान जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में सर्वोच्च बलिदान दिया और मरणोपरांत महावीर चक्र अर्जित किया.
महान विरासत के बावजूद, मुख्तार अंसारी ने बिल्कुल अलग रास्ता चुना. उनका आपराधिक करियर 1980 के दशक में पूर्वांचल की अराजकता के बीच शुरू हुआ, जो सरकारी ठेकों के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले आपराधिक गिरोहों के लिए कुख्यात इलाका था. मुख्तार अंसारी तेजी से पार्टी में उभरे, उनका नाम पूरे उत्तर प्रदेश में आतंक का पर्याय बन गया. हत्या, हत्या का प्रयास, सशस्त्र दंगे और धोखाधड़ी सहित कई आपराधिक गतिविधियों में उनकी संलिप्तता के कारण उन्हें कई मामलों में दोषी ठहराया गया.
गंभीर अपराध से अंसारी का पहला परिचय 1988 में ग़ाज़ीपुर में भूमि विवाद को लेकर सच्चिदानंद राय की हत्या से जुड़ा था. यह इस सफर की शुरुआत थी इस दौरान गैंग वॉर देखने को मिले. खास तौर पर राइवल माफिया ब्रिजेश सिंह के खिलाफ. 2009 में कपिल देव सिंह का मर्डर, फिर 2009 में कॉन्ट्रैक्टर अजय प्रकास सिंह का और फिर राम सिंह मौर्य के मर्डर ने मुख्तार को एक गैंगस्टर का दर्जा दे दिया.
अपनी कुख्याति के बावजूद, अंसारी ने 1996 में राजनीति में कदम रखा. इसके बाद वह मऊ से पांच बार विधायक चुने गए. अंसारी का राजनीतिक करियर द्वंद्व की विशेषता वाला रहा. जबकि कुछ लोगों ने उन्हें रॉबिन हुड की छवि के रूप में देखा, वहीं अन्य ने उसे उसकी आपराधिक गतिविधियों के चश्मे से देखा. राजनीति में उनके कार्यकाल में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के साथ जुड़ाव शामिल था, जहां उन्हें गरीबों के मसीहा के रूप में चित्रित किया गया था, और बाद में, बीएसपी से निकाले जाने के बाद उन्होंने अपने भाइयों के साथ कौमी एकता दल (क्यूईडी) का गठन किया था.