समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा इतवार को रामचरितमानस को लेकर दिए गए बयान के बाद अब इस मामले में मुस्लिम उलेमा में उतर आए हैं, उन्होंने इस धार्मिक पुस्तक का बचाव करते हुए मौर्य से माफी मांगने की अपील की है.
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अयोध्याः रामचरितमानस पर सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयान के बाद इस मामले में मुस्लिम मौलवी भी कूद गए हैं. मौलवियों ने सपा नेता से माफी की मांग करते हुए रामचरितमानस का बचाव किया है. सपा नेता मौर्य ने इतवार को इल्जाम लगाया था कि रामचरितमानस के कुछ हिस्से जाति के आधार पर समाज के एक बड़े वर्ग का 'अपमान’ करते है,ं और इन पर 'प्रतिबंध’ लगाया जाना चाहिए. वहीं सपा ने मौर्य की टिप्पणी से खुद को यह कहते हुए अलग कर लिया कि यह उनकी निजी मत है पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं है. वहीं, उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने मांग की कि मौर्य माफी मांगें और अपना बयान वापस लें.
मौर्य की टिप्पणियों का कड़ा विरोध करता हूंः मौलाना वासिफ
मौर्य के बयान के बाद लखनऊ के मशहूर तिली वाली मस्जिद के मुतवल्ली मौलाना वासिफ हसन ने कहा कि मैं मुस्लिम समुदाय की तरफ से स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा की गई टिप्पणियों का कड़ा विरोध करता हूं और फौरन बिना किसी शर्त के उनसे माफी की मांग करता हूं," हसन ने कहा कि मुस्लिम और इस्लाम के सच्चे और अंतिम पैगंबर के अनुयायी होने के नाते, हमारे मन में हिंदू धर्म और उसके धर्मग्रंथों का सम्मान है. एक अन्य स्थानीय मौलवी ने कहा कि महाकाव्य एक आदर्श समाज बनाने के बारे में नैतिक शिक्षाओं का खजाना है. इसके खिलाफ बयानबाजी करना ठीक नहीं है.
धार्मिक पुस्तक या व्यक्तित्व पर टिप्पणी बर्दाश्त नहींः सेंटर फॉर ऑब्जेक्टिव रिसर्च
सेंटर फॉर ऑब्जेक्टिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट के सद्र अतहर हुसैन ने कहा, “हमारा विनम्र अनुरोध है कि जो लोग किसी भी रूप में सार्वजनिक जीवन में हैं, उन्हें किसी भी धार्मिक पुस्तक या व्यक्तित्व पर टिप्पणी करने से खुद को रोकना चाहिए." उन्होंने कहा, “बड़े पैमाने पर मुसलमानों में पवित्र साहित्य के रूप में रामचरितमानस के प्रति गहरा सम्मान है, और हम इस तरह की किसी भी टिप्पणी की कड़ी निंदा करते हैं, जो इस धार्मिक पुस्तक की अवहेलना करती है."
रामचरितमानस नैतिक समाज के निर्माण में सहायकः मौलाना सेराज
अयोध्या में बख्शी शहीद मस्जिद के इमाम मौलाना सेराज अहमद खान ने कहा, “रामचरितमानस अवधी भाषा में 16वीं शताब्दी के महान संत तुलसी दास द्वारा लिखी गई ग्रंथ है. काफी हद तक माना जाता है कि यह महाकाव्य मुगल शासनकाल के दौरान अयोध्या में लिखा गया था, रामचरितमानस के छंद आज भी एक नैतिक समाज, एक आदर्श परिवार व्यवस्था का संदेश देते हैं." उन्होंने कहा, “बचपन में हम भी रामचरितमानस पढ़ते थे और छंद सीखते थे. मुस्लिम समुदाय इस किताब के प्रति किसी भी तरह का अनादर स्वीकार नहीं कर सकता, मैं मांग करता हूं कि मौर्य को अपने शब्दों को वापस लेना चाहिए.",
रामचरितमानस में भेदभाव नहींः मौलाना लियाकत अली
अयोध्या के एक अन्य धर्मगुरु मौलाना लियाकत अली ने कहा, “रामचरितमानस स्पष्ट रूप से उस समय के एक धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी समाज को दर्शाता है जहां जाति का कोई भेदभाव नहीं है और हम इस पुस्तक का सम्मान करते हैं और इसके खिलाफ किसी भी अपमानजनक टिप्पणी का विरोध करते हैं.“ लियाकत अली ने कहा, “मैं मांग करता हूं कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव स्पष्टीकरण जारी करें.“
क्या कहा था स्वामी प्रसाद मौर्य ने ?
गौरतलब है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने इतवार को कहा था, 'रामचरितमानस की कुछ पंक्तियों ककी वजह से अगर जाति, वर्ण और वर्ग के आधार पर समाज के किसी वर्ग का अपमान होता है, तो वह निश्चित रूप से 'धर्म’ नहीं हैश् बल्कि 'अधर्म’ है." उन्होंने कहा, “कुछ पंक्तियों में 'तेली’ और 'कुम्हार’ जैसी जातियों के नामों का जिक्र है, जो इन जातियों के लाखों लोगों की भावनाओं को आहत करती हैं. मौर्य ने मांग की कि पुस्तक के ऐसे हिस्से, जो उनके मुताबिक, किसी की जाति या ऐसे किसी चिह्न के आधार पर किसी का अपमान करते हैं, पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.
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