साहिर लुधियानी की शख्सियत को कुछ लफ्जों में लिखना तो ना मुमकिन है. कहा जाता है कि साहिर अपनी शर्तों पर काम किया करते थे यहां तक कि साहिर के गीतों पर गानों की धुन बना करती थी.
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नई दिल्ली: मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी का आज जन्मदिन है. यूं तो कहा जाता है कि कलाकार की उम्र नहीं होती लेकिन अगर आज साहिर लुधियानवी इस दुनिया में होते तो अपना 100वां जन्मदिन मना रहे होता. साहिर आज भी अपने गीतों, नज्मों की वजह से हम सब लोगों के बीच मौजूद हैं. सदियों पहले साहिर के ज़रिए लिखे गए गीत और नज्म आज भी तरो ताजा ही लगते हैं.
साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हयी साहिर था. उनका जन्म 8 मार्च 1921 में लुधियाना के एक जागीरदार घराने में हुआ था. हालांकि इनके पिता बहुत धनी थे. कहा जाता है कि साहिर के माता-पिता का आपस मे विवाद था. उन्होंने अपने माता-पिता दरमियान काफी लड़ाइयों को देखा. मां-बाप के अलगवाह के बाद उन्हें माता के साथ रहना पड़ा और गरीबी में गुज़र करना पड़ा. यही वजह है कि साहिर की ज्यादातर नज्मों और गीतों में महिलाओं का सम्मान होता है.
साहिर लुधियानवी प्रेम के कई रिश्तों के बावजूद, शादी ना होने की वजह से, दुनिया की नज़रों में अकेले ही रहे लेकिन हकीकी जिंदगी में उनका का नाम अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) के साथ भी जोड़ा गया. अमृता प्रीमत नॉवलिस्ट की दुनिया में एक बहुत बड़ा नाम है. अमृता ने करीब 100 किताबें लिखी हैं. जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है.
प्रेमिका की बायोग्राफी की है दिलचस्प दास्तां
दरअसल अमृता प्रीतम ने अपनी आत्मकथा के प्रकाशन से पहले इसका मसौदा मशहूर पत्रकार, उपन्यासकार और इतिहासकार खुशवंत सिंह को भेजा था. खुशवंत सिंह ने उनकी आत्मकथा को पढ़कर कुछ ऐसा रिएक्शन दिया था कि अमृता प्रीतम ने किताब नाम "रसीदी टिकट" रख दिया. खुशवंत सिंह ने अमृता प्रीतम से कहा था कि उनकी आत्मकथा में कोई खास बात नहीं है. यह तो एक टिकट के पीछे भी लिखी जा सकती है, फालतू में इतने पन्ने काले करने से क्या फायदा. खुशवंत सिंह की इसी बात से अमृता प्रीतम ने इस किताब का नाम "रसीदी टिकट" रखा था.
"तलख्यियां" से मिली मकबूलियत
साहिर को शुरुआती दौर से ही शेरो-शायरी का शौक था. कॉलेज के दिनों में वे अपने शेरों के लिए मशहूर हो गए थे. साल 1943 में साहिर लाहौर चले गए थे और इसी साल उन्होंने अपना पहला कविता संग्रह तल्खियाँ (Talkhiyan) छपवाया था. इस किताब के छपने के बाद से उन्हें खासी पहचान मिल गई थी. इसके बाद 1945 में वे प्रसिद्ध उर्दू पत्र अदब-ए-लतीफ़ और शाहकार (लाहौर) के सम्पादक भी बने. 1949 में साहिर लाहौर छोड़कर दिल्ली आ गये. दिल्ली में कुछ रहने के बाद वे बंबई (वर्तमान मुंबई) चले गए.
इस फिल्म की शुरुआत
साहिर ने फिल्म "आजादी की राह पर" के लिये उन्होंने पहली बार गीत लिखे 1949 में आई थी लेकिन उन्हें फिल्म नौजवान के गीतों से शोहरत हासिल हुई. इस फिल्मे के संगीतकार सचिनदेव बर्मन थे. फिल्म नौजवान का गाना "ठंडी हवायें लहरा के आयें" ने बहुत मकबूलियत हासिल की. बाद में साहिर लुधियानवी ने बाजी, प्यासा, फिर सुबह होगी, कभी-कभी सुपर हिट फिल्मों के लिए गीत लिखे.
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े गीतकार
साहिर लुधियानवी का नाम भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में सबसे बड़े गीतकार के तौर पर लिया जाता है. उनकी खासियत यह थी कि वो बड़ी-से बड़ी बात को बेहद सरल अंदाज़ में कह देते थे. साहिर उन चुनिंदा शायरों में शुमार किए जाते हैं जिनके कलाम जज्बात की एक लौ नहीं, बल्कि पूरा फानूस जला देते थे. उनकी शायरी को पढ़ने वाला पाठक, या सुनने वाला श्रोता बेहद सादगी से अपने आपको उससे जोड़ लिया करता था.
अपनी शर्तों पर करते थे काम
साहिर लुधियानी की शख्सियत को कुछ लफ्जों में लिखना तो ना मुमकिन है. कहा जाता है कि साहिर अपनी शर्तों पर काम किया करते थे यहां तक कि साहिर के गीतों पर गानों की धुन बना करती थी. साहिर इकलौते ऐसे लेखक रहे हैं जिन्हें उनकी शर्तों पर ही अपनाया गया. उनकी भाषा, भाषाचित्रों और शब्दावली के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता था.
कई बार हीरो-हीरोइन से भी ज्यादा पैसे लेते थे साहिर
साहिर लुधियानवी की मकबूलियत का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्हें कई फिल्मों के लिए सिंगर, हीरो, हीरोइन से भी ज्यादा पैसे मिला करता था। एक जानकारी के मुताबिक साहिर लुधियानवी लता मंगेशकर को मिलने वाली रकम से एक रुपया ज्यादा लेते थे.
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