सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा- जकिया जाफरी की शिकायत को आगे बढ़ाने के लिए इसमें कुछ भी नहीं
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सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा- जकिया जाफरी की शिकायत को आगे बढ़ाने के लिए इसमें कुछ भी नहीं

जाफरी दिवंगत कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी हैं जिनकी 28 फरवरी 2002 को सांप्रदायिक हिंसा के दौरान अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में हत्या कर दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट पर सुनवाई कर रही है. 

 

अलामती तस्वीर

नई दिल्लीः गुजरात दंगों के कई मामलों की जांच करने वाले विशेष जांच दल (एसआईटी) ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि वर्ष 2002 के गुजरात दंगों में बड़ी साजिश का इल्जाम लगाने वाली जकिया जाफरी की शिकायत की गहनता से जांच की गई, जिसके बाद यह नतीजा निकला कि इसे आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री नहीं है.एसआईटी की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ के सामने सरकार का पक्ष रखा. उच्चतम न्यायालय ने 26 अक्टूबर को कहा था कि वह 64 व्यक्तियों को क्लीन चिट देने वाली विशेष जांच दल (एसआईटी) की मामला बंद करने संबंधी ‘क्लोजर रिपोर्ट’ और मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा दिए गए औचित्य पर गौर करना चाहेगी.

जकिया जाफरी ने एसआईटी की क्लीनचिट को चुनौती दी है
जाफरी दिवंगत कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी हैं जिनकी 28 फरवरी 2002 को सांप्रदायिक हिंसा के दौरान अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में हत्या कर दी गई थी. हिंसा में एहसान जाफरी सहित 68 लोगों की मौत हुई थी. इस घटना से एक दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी और गुजरात में दंगे हुए थे. जकिया ने दंगों के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 64 लोगों को एसआईटी की क्लीनचिट को चुनौती दी है.

सांप्रदायिक हिंसा ज्वालामुखी के लावा के समान

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय में जाकिया जाफरी का पक्ष रखते हुए कहा कि सांप्रदायिक हिंसा ज्वालामुखी से निकलने वाले लावा की तरह है जो जमीन पर दाग छोड़ देता है. भावुक सिब्बल ने जाफरी की याचिका पर सुनवाई कर रही पीठ से कहा कि मैंने पाकिस्तान में अपने नाना-नानी को खो दिया था. सिब्बल ने कहा कि वह किसी पर आरोप नहीं लगा रहे हैं, लेकिन विश्व को एक संदेश दिया जाना चाहिए कि यह ’अस्वीकार्य’ है और इसे सहन नहीं किया जा सकता.’’ उन्होंने कहा कि यह एक ’ऐतिहासिक मामला’ है क्योंकि चयन इन दोनों में से एक के बीच है कि यह सुनिश्चित होगा कि कानून का शासन कायम रहेगा या लोगों को छोड़ दिया जाएगा.

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