मौलाना वहीदुद्दीन का नाम पद्म विभूषण अवार्ड के चुना गया है. वहीं पद्म भूषण में मुस्लिम चेहरे की बात करें तो मौलाना कल्बे सादिक को पद्म भूषण की लिस्ट में शामिल है
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नई दिल्ली: केंद्र सरकार गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पद्म अवार्ड का ऐलान कर दिया है. सरकार की तरफ से जारी की गई लिस्ट के मुताबिक 7 लोगों को पद्म विभूषण, 10 लोगों को पद्म भूषण और 102 लोगों के पद्म श्री अवार्ड दिए जाएंगे. इन तीनों कैटेगरी में मुस्लिम चेहरे भी सामने आए हैं. जिनमें सबसे बड़ा नाम मौलाना वहीदुद्दीन खान है. मौलाना वहीदुद्दीन का नाम पद्म विभूषण अवार्ड के चुना गया है. वहीं पद्म भूषण में मुस्लिम चेहरे की बात करें तो मौलाना कल्बे सादिक को पद्म भूषण की लिस्ट में शामिल है. वहीं पद्म श्री में कई मुस्लिम चेहरे, जिनमें कुछ हिंदुस्तान से बाहर के भी हैं.
कौन हैं मौलाना वहीदुद्दीन खान
मौलाना वहीदुद्दीन खान को पद्म विभूषण के चुना गया है. मौलाना बर्रे सगीर के मशहूर आलिमे दीन हैं. मौलाना की पहचान शांति के लिए काम करने वाली बड़ी हस्तियों में भी की जाती है. इन्होंने कुरान को आसान अंग्रेजी में ट्रांस्लेट किया और कुरान पर एक टिप्पणी भी लिखी. मुसलमानों में मौलाना को बहुत मकबूलियत हासिल है. उनका जन्म साल 1925 में उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले में हुआ था.
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अवार्ड
मौलाना वहीदुद्दीन को साल 2000 में पद्म भूषण से भी नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा पूर्व सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा डेमिर्गुस पीस इंटरनेशनल अवॉर्ड, मदर टेरेसा और राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार(2009), अबूज़हबी में सैयदियाना इमाम अल हसन इब्न अली शांति अवार्ड (2015) से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है.
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मौलाना कल्बे सादिक
मौलाना कल्बे सादिक को पद्म भूषण अवार्ड के मुंतखब किया गया है. वे बर्रेसगीर के मशहूर उलेमाओं में शुमार किए जाते थे. 24 नवंबर को 2020 को ही उनका इंतेकाल हुआ है. उनका जन्म 1 जनवरी 1936 को लखनऊ में हुआ था. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) से आर्ट में ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की. उसके बाद AMU से हीअरबी साहित्य में मास्टर की डिग्री हासिल की. इसके अलावा मौलाना ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट भी की थी.
मौलाना ने अपनी जिंदगी भले ही लखनऊ में बिताई हो, लेकिन वह दुनिया भर में अपनी उदारवादी छवि के लिए पहचाने जाते थे. मुस्लिम समाज से रूढ़िवादी परंपराओं को खत्म करने के लिए वे आजीवन लड़ाई लड़ते रहे हैं. उन्होंने न सिर्फ रूढ़िवादियों को विरोध किया, बल्कि शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए.
उन्होंने जरूरतमंद और गरीब छात्रों को शैक्षणिक सहायता और छात्रवृत्ति देने के मकसद से 18 अप्रैल 1984 को तौहीदुल मुस्लिमीन ट्रस्ट की स्थापना की थी. इस ट्रस्ट न सिर्फ छात्रों की बल्कि दीगर लोगों की भी मदद की जाती थी. वे एरा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल लखनऊ के अध्यक्ष, अखिल भारतीय शिया कांफ्रेंस के महासचिव, अंजुमन-ए-वज़ीफ़िया-ए-सआदत-ओ-मोमिनीन के सदस्य के अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष व जनरल सेक्रेटरी भी रहे हैं. मौलाना कल्बे सादिक की इस्लाम और मुसलमानों के लिए की गईं खिदमात को कभी भुलाया नहीं जा सकता.
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