दिल्ली के लोगों के लिए अब आर्टिफिशियल बारिश (Artificial Rain) की जरूरत नहीं पड़ने वाली है, क्योंकि दिल्ली में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के बीच राहत की खबर ये कि हवा की दिशा बदलने से दिल्ली की हवा की क्वालिटी में थोड़ी सुधार हुई है.
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दिल्ली के स्मॉग को देखते हुए 20 और 21 नवंबर को दिल्ली सरकार ने आर्टिफिशियल बारिश करवाने की योजना बनाई थी. लेकिन, प्रदूषण में कमी आने के बाद ये प्लान टाल दिया गया. आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर दिल्ली सरकार ने आर्टिफिशियल बारिश करवाने की योजना बनाई थी. इस पर प्रति स्क्वॉयर मीटर लगभग एक लाख रुपये का खर्च आना था. हालांकि भविष्य में ज़रुरत पड़ने पर दिल्ली में आर्टिफिशियल बारिश करवाई जा सकती है. आर्टिफिशियल बारिश के लिए क्लाउड सीडिंग की जाती है.
क्या होती है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग एक ऐसी टेकनोलॉजी है, जो बादलों में मौजूद नमी में संघनन की प्रक्रिया को बढ़ा देती है. जिसकी वजह से ही बारिश होने लगती है. इसके लिए बादलों में सिल्वर आयोडाइड और क्लोराइड का स्प्रे किया जाता है. अकसर ये छिड़काव विमानों से या फिर ज़मीन पर मौजूद मशीनों से किया जाता है. जिसके बाद स्प्रे में मौजूद लवणों के महीन कण, आइस न्यूक्लियेटिंग पार्टिकल की तरह काम करते हैं. इससे बर्फ़ के क्रिस्टल बादल में बदलने लगते हैं, जिसके बाद बादलों में मौजूद नमी बर्फ के क्रिस्टल को घेर लेती है और इन्हें संघनित कर बारिश में बदल देती है.
क्लाउड सीडिंग की टेकनिक कितनी पुरानी है ?
इस तरह से बारिश करवाना कोई नई बात नहीं है. 90 के दशक में इस टेकनोलॉजी का इस्तेमाल कई देशों ने किया है. दरअसल, 1960 में अमेरिका ने इस टेकनोलॉजी का इस्तेमाल वियतनाम युद्ध में किया था ताकि वियतनामी सेना की सैन्य सप्लाई रुक जाए. उस समय इस पर काफ़ी विवाद भी हुआ था.इसके अलावा चीन और यूएई जैसे देश भी इस टेकनोलॉजी का प्रयोग कर चुकें हैं. इसके अलावा भारत के कुछ राज्यों ने भी इसका इस्तेमाल किया है ताकि सूखे से निपटा जा सके