Azadi Ka Amrit Mahotsav: The Story of Duplicate Jhalkari Bai of Jhansi Ki Rani aaz Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी के 75 साल की 75 कहानियों में आज हम आपको बताएंगे एक ऐसी महिला योद्धा के बारे में जिसे आजादी के बाद कागजों में तो जगह नहीं मिली लेकिन लोगों ने उन्हें अपने दिल में जगह जरूर दी, लगातार लोगों ने उन्हें कहानियों के जरिए अपने दिलों में जिंदा रखा है.शहरों के चौराहों पर घोड़े के साथ उनकी मुर्तियों लोगों को उनकी बलिदान की याद दिलाती है. उस वीरांगना का नाम "झलकारी बाई" है जिसे लोगों ने एक और नाम दिया था "लक्ष्मीबाई की हमशक्ल". झलकारी बाई ने हमेशा अंग्रेजों को परेशान किया और अंग्रेज इस बात से परेशान रहते थे कि असली लक्ष्मीबाई आखिर है कौन? झांसी के पास के एक गांव की झलकारी बाई ने अपनी आखिरी सांस तक अंग्रेजों से लड़ती रही. ऐसा कहा जाता है कि बचपन में एक बार झलकारी बाई के सामने एक बाघ आ गया था. जिसको अपने खंजर से झलकारी बाई ने मार गिराया था. जब रानी लक्ष्मीबाई को झलकारी बाई की साहस की कहानी का पता चला तो उन्होंने अपनी महिला वाहिणी "दुर्गा दल" में झलकारी को शामिल कर लिया. इतिहास की किताबों में ऐसा लिखा गया है कि 23 मार्च 1858 को अग्रेंजों ने झांसी पर हमला कर दिया जिसके बाद लक्ष्मी बाई ने अपने 4000 सैनिकों के साथ अंग्रेजों पर हमला बोला. लेकिन अंग्रेज रानी की सेना पर भारी पड़े और किले में दाखिल हो गए. ऐसे में रानी लक्ष्मी बाई को जिंदा रखने के लिए झलकारी बाई ने एक बहुत बड़ा कदम उठाया...