Data Protection Bill: Why did the government have to withdraw the Personal Data Protection Bill? aaz पर्सनल डेटा प्रोटक्शन बिल जिसको लेकर काफी दिनों से हंगामा हो रहा था. सरकार ने इस बिल क वापस ले लिया आखिर इस बिल में ऐसा क्या था कि विपक्ष इस बिल के खिलाफ हमलावर हो गया और सरकार को आखिर में ये बिल वापस लेना पड़ा. इस रिपोर्ट के ज़रिए आपको तफ्सील से बताते हैं. जब यह बिल पेश किया गया था, तब से विपक्षी दलों के भारी विरोध का सामना सरकार को करना पड़ रहा था. कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने संसद में इस बिल के खिलाफ सबसे ज्यादा आवाज उठाई. इसके बाद बिल को सरकार ने जेपीसी के पास भेज दिया. अपोजिशन का कहना था कि डेटा गोपनीयता कानून लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है, लिहाजा इस कानून को पारित करने का कोई औचित्य नहीं. विपक्ष का यह भी इल्जाम था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार को लोगों के पर्सनल डेटा तक पहुंच बनाने का बड़ा अधिकार मिलता है जो कि ठीक नहीं है. दरअसल ये बिल पहले लोकसभा में पेश हो चुका है और 12 दिसंबर 2019 को इस बिल को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त समिति के पास जांच और सिफारिशों के लिए भेजा गया था. इसके बाद जेपीसी ने 81 संशोधन और 12 सिफारिशों का प्रस्ताव दिया है. 16 दिसंबर, 2021 को संसद के दोनों सदनों के सामने संशोधित विधेयक के साथ एक डिटेल रिपोर्ट पेश की गई थी. बिल को वापस लेते वक्त सरकार का कहना है कि जेपीसी की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए एक नए कानूनी ढांचे पर काम हो रहा है. जिसके आधार पर एक नया बिल पेश किया जाएगा जो हर तरह के कानूनी ढांचे में फिट बैठता हो. गौरतलब है कि देश में डेटा सुरक्षा कानून कई सालों से विचाराधीन है, वहीं मौजूदा बिल ने बड़ी टेक कंपनियों को चिंता में डाल दिया था. कई सिविल सोसायटी समूहों ने भी बिल में कुछ प्रावधानों की आलोचना की थी. इसमें एक निगरानी की अनुमति भी है.