अहमद मसूद अफगानिस्तान में अकेला ऐसा शख्स से जिसने तालिबान की सत्ता को चुनौती दी है और उसके लड़ाकों ने बिना लड़े तालिबान से हार मानना कबूल नहीं किया.
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नई दिल्लीः अफगानिस्तान में अमेरिका समर्थित अब्दुल गनी सरकार को काबुल छोड़कर भागने के लिए मजबूर करने और पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले तालिबान को अगर कहीं से चुनौती मिल रही है, तो वह अभी सिर्फ एक नाम है, अहमद मसूद. अफगानिस्तान में यह अकेला शख्स से जिसने तालिबान की सत्ता को चुनौती दी है और उसके लड़ाकों ने बिना लड़े तालिबान से हार मानना कबूल नहीं किया. सोमवार को तालिबान ने दावा किया कि उसने पंजशीर पर कब्जा कर लिया है और आंदोलन के नेता अमरूल्ला सालेह और अहमद मसूद वहां से जान बचाकर भाग गए हैं. सोमवार को पंजशीर में अहमद मसूद के घर पर हुए तालिबान के हमले में अहमद मसूद के संगठन के प्रवक्ता फहीम दश्ती और मसूद के परिवार के लोगों की मौत हो गई है.
आखिरी दम तक तालिबान से नहीं मानेंगे हारः मसूद
अब मसूद ने फेसबुक पर एक ऑडियो मेसेज जारी कर कहा है कि पंजशीर में विद्रोही सेनाएं अभी मौजूद हैं और तालिबान के खिलाफ लड़ाई खत्म नहीं हुई है. मसूद ने पूरे अफगानिस्तान के लोगों से तालिबान के खिलाफ खड़े होने की अपील की है. उन्होंने ऑडियो मेसेज में कहा है कि पंजशीर के विद्रोही खड़े रहेंगे और तालिबान के खिलाफ लड़ेते रहेंगे. उन्होंने कहा कि वह अपने खून के आखिरी कतरे तक हार नहीं मानेंगे. इससे पहले ऐसी खबरें आ रही थीं कि मसूद के घर पर हमला करके उन्हें मार दिया गया है, लेकिन उन्होंने ट्वीट करके अपने सुरक्षित होने की जानकारी दी है.
अहमद मसूद के पिता ने सोवियत संघ से किया था युद्ध
अहमद मसूद, अहमद शाह मसूद का बेटा है जिन्होंने 1980 में एंटि सोवियत रेसिस्टेंस का गठन किया था. 1953 में पंजशीर घाटी में जन्मे, अहमद शाह ने 1978 में खुद को मसूद (भाग्यशाली) नाम दिया था. उन्होंने काबुल और सोवियत संघ में कम्युनिस्ट सरकार का विरोध किया. तालिबान और अल्कायदा के विरोध की वजह से 9 सितंबर 2001 को शाह मसूद की हत्या कर दी गई थी. उसी अहमद शाह मसूद का बेटा और उसके मुजाहदीन पंजशीर में अपने पिता की राह पर चलते हुए तालिबान से दो-दो हाथ कर रहे हैं.
मसूद ने लंदन किग्स काॅलेज से की है पढ़ाई
अहमद मसूद अपने पिता अहमद शाह मसूद के छह संतानों, पांच लड़कियों में अकेला और सबसे बड़ा बेटा है. मसूद का जन्म 1989 में हुआ था. उन्होंने लंदन किंग्स काॅलेज से वार स्टडीज में ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है. इससे पहले उनकी प्रारंभिक शिक्षा ईरान में हुई थी. उन्होंने राॅयल मिलट्री एकेडमी में सेना का प्रशिक्षण भी हासिल किया है. अहमद मसूद ने यूनिवर्सिटी आॅफ लंदन से इंटरनेशनल पाॅलिटिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन की भी पढ़ाई की है. ग्रेजुएशन और पीजी में उनके सभी प्रोजेक्ट का विषय तालिबान रहा है. अहमद मसूद लोकतंत्र और सत्ता के विकेंद्रीकरण के समर्थक हैं.
नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट की करते हैं अगुआई
अहमद मसूद इस वक्त अफगानिस्तान में तालिबान के विरोधी नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट की अगुआई कर रहे हैं. वह अपने पिता की तरह घाटी में मिलिशिया की कमान संभालते हैं. सोशल मीडिया पर अफगानिस्तान के अपदस्थ उप राष्ट्रपति अमरूल्लाह सालेह को मसूद से मिलते हुए दिखाया गया है. मसूद ने वाशिंगटन पोस्ट मैं अपने एक लेख में लिखा था, ’’मैं मुजाहिदीन लड़ाकों के साथ अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलने के लिए तैयार हूं. हमारे पास गोला-बारूद और हथियारों के भंडार हैं जिन्हें हमने अपने पिता के समय से इस दिन के लिए तैयार रखा था.
तालिबान को लोकतंत्र विरोधी और इस्लामी आतंकवाद का जनक मानते हैं मसूद
अहमद मसूद ने कहा है कि तालिबान अकेले अफगान लोगों के लिए कोई समस्या नहीं है. तालिबान के नियंत्रण में, अफगानिस्तान, निस्संदेह, कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद का आधार बन जाएगा. यहां एक बार फिर लोकतंत्र के खिलाफ साजिश रची जाएगी. सभी बलों को तालिबान के खिलाफ हाथ मिलाने का आह्वान करते हुए, मसूद ने फ्रांसीसी दार्शनिक बर्नार्ड-हेनरी लेवी को कोट करते हुए कहा है, ’’प्रतिरोध अभी शुरू हुआ है, क्योंकि समर्पण उनकी शब्दावली का हिस्सा नहीं है.
अफगानिस्तान में चाहते हैं खुला और लोकतांत्रिक समाज
मसूद ने पश्चिम से मदद मांगते हुए कहा, ’’हमने एक खुले समाज के लिए इतने लंबे समय तक संघर्ष किया है, जहां लड़कियां डॉक्टर बन सकती हैं, हमारा प्रेस स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट कर सकता है, हमारे युवा उन स्टेडियमों में नृत्य और संगीत सुनें, फुटबॉल मैचों में भाग लें, जिनका उपयोग तालिबान कर रहा था और जल्द ही जल्द हीयह सब फिर से हो सकता है. पंजशीर घाटी अफगानिस्तान का आखिरी बचा हुआ ठिकाना है जहां तालिबान विरोधी ताकतें आकार लेती है. 2001 से 2021 तक नाटो समर्थित सरकार के समय पंजशीर घाटी देश के सबसे सुरक्षित क्षेत्रों में से एक थी.
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