'ऑप्ट’ प्रोग्राम विदेशी छात्रों को अमेरिका में पढ़ाई के बाद नौकरी करने की इजाजत देता है. अगर यह बिल अमेरिकी संसद में पास होकर कानून बनता है तो इससे यहां काम कर रहे हजारों हिन्दुस्तानी कामगारों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा.
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वाशिंगटनः अमेरिकी सांसदों के एक ग्रुप ने प्रतिनिधि सभा में एक बार फिर वह बिल पेश किया है, जिसमें उस प्रोग्राम को बंद करने का प्रावधान है, जो गैर-मुल्की छात्रों को अमेरिका में पढ़ाई पूरी होने के बाद देश में काम करने के लिए रुकने की इजाजत देता है. अगर यह बिल अमेरिकी संसद में पास होकर कानून बनता है तो इससे यहां पढ़ रहे हजारों हिन्दुस्तानी छात्रों को नुकसान होगा. सांसद पॉल ए गोसर के साथ सांसद मो ब्रुक्स, एंडी बिग्स और मैट गेट्ज ने ‘फेयरनेस फॉर हाई-स्किल्ड अमेरिकन एक्ट’ पेश किया है. ये बिल पास होने पर वैकल्पिक अभ्यास प्रशिक्षण (ऑप्ट) पर आव्रजन और राष्ट्रीयता अधिनियम में संशोधन करना होगा. बिल को सीनेट से भी पास कराना होगा जिसके बाद उसे राष्ट्रपति के पास दस्तखत के लिए भेजा जाएगा.
पहले भी यह बिल किया जा चुका है पेश
गोसर ने कहा कि दुनिया का कौन सा ऐसा देश होगा जो अपने नागरिकों को नौकरी से निकालने और उनकी जगह पर विदेशी कामगार को रखने के लिए अपने व्यवसायों को पुरस्कृत करता है? वह अमेरिका है. इस प्रोग्राम का नाम है ‘ऑप्ट’ और यह हमारे अपने मजदूरों को छोड़ दिए जाने के रुख को दर्शाता है. गोसर ने पहली बार 116वीं संसद में ‘फेयरनेस फॉर हाई-स्किल्ड अमेरिकन एक्ट’ पेश किया था और ऑप्ट को खत्म करने के लिए होमलैंड सिक्योरिटी विभाग के खिलाफ एक मुकदमे में अमेरिकी कामगारों की हिमायत में दो बार उन्होंने ‘एमिकस ब्रीफ’ पर भी दस्तखत किए हैं.
80,000 भारतीय छात्र करते हैं नौकरी
‘एमिकस ब्रीफ’ एक कानूनी दस्तावेज है, जिसे किसी अदालती मामले में उन लोगों के जरिए दायर किया जा सकता है, जो मामले में वादी नहीं होते, लेकिन इसमें दिलचस्पी रखते हैं. ऑप्ट ‘यूनाइटेड स्टेट्स इमिग्रेशन एंड कस्टम्स इंफोर्समेंट’ (आईसीई) के जरिए प्रशासित एक मेहमान कामगार प्रोग्राम है. अमेरिका में ऑप्ट के तहत करीब 80,000 भारतीय छात्र नौकरी करते हैं.
विदेशी कामगारों को रियायत देने का इल्जाम
गोसर ने इल्जाम लगाया कि ऑप्ट ने 1,00,000 से ज्यादा विदेशी छात्रों को स्नातक के बाद अमेरिका में तीन साल तक काम करने की इजाजत देकर एच-1बी सीमा के नियम को दरकिनार किया है. उन्होंने कहा कि इन गैर-मुल्की कामगारों को पेरोल टैक्स से छूट दी गई है, जिससे उनका खर्चा एक अमेरिकी मजदूर की तुलना में करीब 10 से 15 फीसदी कम हो जाता है.
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