कांग्रेस पार्टी के भावी अध्यक्ष राहुल गांधी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मणिशंकर अय्यर को राजनीति में लाया था और अब उनके बेटे राहुल गांधी ने उन्हें निलंबन तक पहुंचा दिया.
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कांग्रेस पार्टी के भावी अध्यक्ष राहुल गांधी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मणिशंकर अय्यर को राजनीति में लाया था और अब उनके बेटे राहुल गांधी ने उन्हें निलंबन तक पहुंचा दिया. यह राजनीति के कू्रर सच का एक नमूना है. कांग्रेस पार्टी के इतिहास में ऐसे और भी उदाहरण मौजूद हैं, जब गांधी परिवार के करीबी लोगों को किसी न किसी कारण से पार्टी से बाहर का रास्ता देखना पडा था. अरुण नेहरू से लेकर नटवर सिंह इसी श्रेणी में आते हैं. इसलिए कांग्रस नेता मणिशंकर अय्यर के पार्टी से निलंबन पर चैंकने की जरूरत नहीं है. यह न तो पहली घटना है और न ही शायद अंतिम होगी. मूल सवाल यह है कि क्या यह कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति में बदलाव का सूचक है या किसी राजनीतिक अवसरवाद से प्रेरित?
ध्यान देने की बात यह है कि अभी गुजरात में विधान सभा चुनाव चल रहा है और कांग्रेस अपने को वहां लडाई में पा रही है. उसे लग रहा है कि वह वहां चुनाव जीत सकती है. इसलिए वह किसी मौके को गंवाना नहीं चाहती है. सामान्यतः मंदिर न जाने वाले राहुल गांधी बार-बार मंदिर की परिक्रमा कर रहे हैं, ताकि पार्टी की अल्पसंख्यक परस्त छवि को बदलने के साथ-साथ धर्म के आधार पर पार्टी से बिदकने वाले हिन्दुओं की शिकायत को दूर की जा सके. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर मणिशंकर अय्यर की अवांछित टिप्पणी, नीच किस्म का आदमीद्ध सब बना-बनाया खेल बिगाडने जैसा है. कांग्रेस द्वारा वोट के लिए दलित नेता डॉक्टर बीआर अंबेडकर का इस्तेमाल करने और राष्ट निर्माण में उनके योगदान को मिटाने संबंधी आरोप का यह जवाब राजनीतिक मर्यादा या औचित्य के तहत नहीं आता. कांग्रेस यह नहीं समझ सकी कि यह टिप्पणी मोदी ही नहीं, उनके समर्थकों को भी पसंद नहीं आएगी. हालांकि मणिशंकर का आशय निचली जाति से नहीं लगता, लेकिन यह भी सच है कि मोदी विरोधियों के लिए आसान निशाना रहे हैं. क्या इसमें जाति एक कारक नहीं है?
बहरहाल, मोदी ने इसे जिस प्रकार अपनी गरीब-पिछडी पृष्ठभूमि का हवाला देकर जनता के बीच उठाया, उससे उनके प्रति लोगों की सहानुभूति बढती प्रतीत होती है. यह खुद कांग्रेस की बनी-बनाई गई छवि के अनुकूल नहीं है. इसमें उसके अहंकार की बू आ रही थी. ऐसी स्थिति में अगर मणिशंकर अय्यर के खिलाफ की गई कार्रवाई पार्टी के नफा-नुकसान से प्रेरित होकर की गई है, तो यह किसी आदर्श को पेश करती हुई नहीं मानी जा सकती. सवाल उठता है कि अगर पार्टी के समक्ष कोई आदर्श था, तो उसे 2014 में ही उस समय मणिशंकर अय्यर के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी, जब उन्होंने मोदी को चाय बेचने वाला कहा था. उस समय तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई.
संभव है लोक सभा चुनाव में पराजय के बाद पार्टी को इसका अहसास हुआ हो. पर क्या मोदी के खिलाफ अवांछित टिप्पणी का यही अंत था? आखिर मणिशंकर जैसे लोग एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ, जो देश का प्रधानमंत्री है, ऐसी अमर्यादित टिप्पणी के लिए प्रेरित कैसे होते हैं? क्या कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक संस्कृति ऐसी है, जिससे ऐसे राजनीतिक व्यवहार के लिए प्रेरणा मिलती है?
कांग्रेस में मणिशंकर अय्यर अकेले ऐसे नेता नहीं हैं, जो मोदी पर अवांछित टिप्पणी करते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस आलाकमान की तरफ से उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाडा भी मोदी पर कटु टिप्पणी कर चुकी हैं. इस बार मणिशंकर अय्यर के खिलाफ निलंबन की जो कार्रवाई हुई है, उसमें कइयों को राजनीति की गंध आ रही है. भाजपा तो कह ही रही है कि बयान से लेकर निलंबन तक एक रणनीतिक कदम है.
ध्यान देने की बात है कि मणिशंकर अय्यर का पार्टी से निलंबन हुआ है, निष्कासन नहीं. दूसरी ओर कांग्रेस यह दिखा रही है कि उसने मणिशंकर अय्यर के खिलाफ कार्रवाई की, जबकि खुद मोदी उनके नेताओं के खिलाफ कुछ भी बोल देते हैं. संभव है कि कांग्रेस यह दिखाना चाहती हो कि वह मोदी की तुलना में ज्यादा शालीन है. यह अपने को उदार और सहिष्णु दिखाने की राजनीति का एक हिस्सा है. क्या इसे कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति में बदलाव का सूचक माना जा सकता है? इसका सवाल का उत्तर तो भविष्य में ही मिल पाएगा, फिलहाल इतना साफ है कि समाज इस तरह की हरकत को पसंद नहीं करता. पक्ष हो या विपक्ष, उसे सार्वजनिक जीवन में शालीनता बरतनी होगी.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)