काले धन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित SIT के उपाध्यक्ष ने कहा...
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काले धन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित SIT के उपाध्यक्ष ने कहा...

काले धन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के उपाध्यक्ष न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरिजित पसायत ने कहा है कि वैट जैसे राज्यों के कर कानूनों के उल्लंघन को भी गंभीर अपराध की श्रेणी में रखकर ऐसे मामलों में प्रवर्तन निदेशालय आदि एजेंसियों से मनी लांड्रिंग निवारक अधिनियम के तहत कार्रवाई की व्यवस्था की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे आर्थिक अपराधों को लेकर लोगों में डर बैठेगा।

काले धन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित SIT के उपाध्यक्ष ने कहा...

नयी दिल्ली: काले धन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के उपाध्यक्ष न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरिजित पसायत ने कहा है कि वैट जैसे राज्यों के कर कानूनों के उल्लंघन को भी गंभीर अपराध की श्रेणी में रखकर ऐसे मामलों में प्रवर्तन निदेशालय आदि एजेंसियों से मनी लांड्रिंग निवारक अधिनियम के तहत कार्रवाई की व्यवस्था की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे आर्थिक अपराधों को लेकर लोगों में डर बैठेगा।

पसायत यहां प्रवर्तन दिवस के अवसर पर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने इस आरोप को खारिज किया कि जांच एजेंसियों का काम ढीला है। उन्होंने कहा कि इन एजेंसियों को फूंक फूंक कर कदम रखना पड़ता है ताकि उनके द्वारा पेश मामला कानून की कसौटी पर टिक सके और अपराध सिद्ध किया जा सके। उन्होंने कहा कि ऐसा न हुआ तो अपराधियों को मौका मिल जाएगा।

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने पिछले साल ही विदेशों में कालाधन व संपत्ति जमा करने के मामले को गंभीर अपराध की श्रेणी में डाला है। उसके आधार पर प्रवर्तन निदेशालय ने ऐसे मामलों मनी लांड्रिंग निवारक कानून के कड़े प्रावधानों के तहत कार्रवाई शुरू की है। 

न्यायमूर्ति पसायत ने कहा कि एसआईटी के तहत काम कर रही एजेंसियों ने कानूनों के उल्लंघन के ‘भयावह’ आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। इनसे ऐसे तथ्य सामने आए हैं कि जिससे पता चलता है कि ‘97,000 लोग ऐसे हैं जो कि 20-20 से अधिक कंपनियों में निदेशक हैं। वहीं 2000 अन्य लोग 100-100 से अधिक कंपनियों में ऐसे पद संभाले हुए हैं जो कि नियमों का सरासर उल्लंघन है।’ उन्होंने कहा कि ऐसा तब है जबकि कंपनी अधिनियम के तहत कोई व्यक्ति एक समय में 20 से अधिक कंपनियों में निदेशक नहीं रह सकता।

मनी लांड्रिंग अधिनियम का ज्रिक करते हुए उन्होंने कहा,‘इसकी खास बात यह है कि इसके तहत अपने आप कार्रवाई नहीं की जा सकती। कोई गंभीर अपराध होने पर ही प्रवर्तन निदेशालय का काम शुरू होता है. गंभीर अपराधों में हत्या और हत्या के प्रयास का मामला तो आता है लेकिन दुर्भाग्य से कर संबंधी मामले इस श्रेणी में अब तक नहीं रखे गए हैं।’ उन्होंने कहा कि कर कानूनों के बड़े उल्लंघन के मामले गंभीर प्रकार के अपराध हैं, ऐसे में आवश्यकता है कि उन्हें भी गंभीर अपराधों की श्रेणी में रखा जाए।

पसायत ने कहा,‘ कोई व्यक्ति यदि अपना कर विवरण सही सही दाखिल नहीं करता और 10,000 करोड़ रपये की अपनी आय को कम दिखाता है तो वह वास्तव में यह देश की वित्तीय स्थिरता की हत्या करना है। ऐसे व्यक्ति से सही ढंग से निपटा जाना चाहिए।’ 

न्यायमूर्ति पसायत ने कहा कि राज्यों के अधिकार क्षेत्रों में आने वाले कर कानूनों के तहत अपराधों को भी गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। ‘वैट जैसे राज्यों के कानून को यदि गंभीर अपराध की श्रेणी में रख दिया जाएगा तो वह व्यावसायिक समुदाय के लिए एक संकेत होगा निश्चित रूप से ऐसे में मामलों की संख्या बढेगी पर आपको कहीं न कहीं आर्थिक अपराधों के खिलाफ डर तो पैदा करना ही होगा।’ गंभीर (प्रीडिकेट) अपराध से आशय भारतीय दंड विधान और आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत दर्ज मामलों से हैं जिसमें बाद में प्रवर्तन निदेशालय उसी आरोपी के खिलाफ मनी लांड्रिंग कानून के तहत मामले पर संज्ञान लेता है।

पनामा दस्तावेज के बारे में उन्होंने कहा कि ‘पहले यह देखना जरूरी है कि वे खाते वैध हैं या अवैध। केवल नाम आज जाने से किसी की गलती सिद्ध नहीं होती। बिना पुष्टि के अगर आप उसे जाहिर करते हैं तो यह ठीक नहीं है ऐसे में पुष्टि की प्रक्रिया और जल्दी की जानी चाहिए।’ पसायत ने यह भी कहा कि इस देश में वित्तीय अपराधों के मामलों में ‘तालिबान जैसी’ त्वरित जांच नहीं हो सकती और जांच एजेंसियों को अपना काम व्यवस्थित ढंग से करने का मौका मिलना चाहिए ताकि वे अपराध सिद्ध करने का काम अच्छी तरह से कर सकें और कानून के आगे पुख्ता ढंग से खड़ी रह सकें।

उन्होंने ऐसी एजेंसियों के काम के लिए बुनियादी सुविधाओं की कमी का भी ज्रिक किया। उन्होंने कहा कि ‘समस्या है कि लोग इन एजेंसियों से बहुत ज्यादा अपेक्षा रखते हैं।’ उन्होंने कहा कि भारत में बहुत मजबूत न्याय प्रणाली है लेकिन हमें यह भी देखना है कि अपराधी हमें ‘चकमा न दे सकें।’

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