बौखलाहट में दुश्मन सेना ने हवलदार अब्दुल हमीद पर हाई एक्प्लोसिव सेल से हमला किया. इस हमले में हवलदार अब्दुल हमीद बुरी तरह से जख्मी हुए और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए.
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नई दिल्ली: याद करो कुर्बानी की 6वीं कड़ी में 1965 के भारत-पाक युद्ध में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले कम्पनी क्वार्टर मास्टर हवलदार (CQMH) अब्दुल हमीद की वीर गाथा बताने जा रहे हैं. अब्दुल हमीद का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में 1 जुलाई 1933 में हुआ था. अब्दुल हमीद के पिता उस्मान फारुखी भी भारतीय सेना में लांस नायक के पद पर तैनात थे. उनके सैन्य जीवन की शुरूआत 27 दिसंबर 1954 को भारतीय सेना की 4 ग्रेनेडियर्स के साथ हुई थी. अपने सैन्य जीवन के दौरान उनको बहादुरी के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र, सैन्य सेवा मेडल, द समर सेवा मेडल और रक्षा मेडल से सम्मानित किया गया था.
1965 के भारत पाक युद्ध के दौरान 4 इंडियन डिवीजन को दो अहम जिम्मेदारी सौंपी गई थी. जिसमें पहली जिम्मेदारी पाकिस्तान की सीमा से सटे पूर्वी लछोगिल कैनाल पर कब्जा जमाने की थी. वहीं दूसरी जिम्मेदारी, खेम करण सेक्टर से दुश्मन सेना के हमलों को नाकाम करना था. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए 4 इंडियन डिवीजन के साथ ग्रेनेडियर्स की टुकड़ी भी शामिल थी, जिसमें अब्दुल हमीद भी शामिल हैं. अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए चौथी इंडियन डिवीजन लछोगिल तक पहुंचने में कामयाब रहीं, लेकिन दुश्मन सेना के भारी संख्याबल के चलते इस डिवीजन को आसल उत्ताड़ में ही रुकना पड़ा.
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भारतीय सेना ने चीमा गांव में बनाया अपना अस्थाई बेस
आसल उत्ताड़ में रुक कर भारतीय सेना की चौथी इंडियन डिवीजन ने अपनी रणनीति को नए सिरे से बुनना शुरू किया. नई रणनीति के तहत दुश्मन सेना को सबक सिखाने की पूरी तैयारी कर ली गई. इन्हीं तैयारियों के तहत भारतीय सेना ने खेमकरन और भिखिविंद रोड के बीच स्थिति चीमा गांव के बड़े हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया. चौथी इंडियन डिवीजन के जवानों ने इस जगह को अपने अस्थाई बेस के तौर पर तैयार किया. इसी बीच, यह खबर भी आ गई कि पाकिस्तानी सेना लगातार उनकी लोकेशन की तरफ बढ़ रही है.
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रण छोड़ भाग खड़ी हुई पाकिस्तानी की बुज्दिल सेना
08 सितंबर की रात पाकिस्तानी सेना ने कायराना तरीके से हमला कर बोल दिया. भारतीय जवानों की मुंहतोड़ जवाबी कार्रवाई के सामने दुश्मन सेना के जवानों को मैदान छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस हार के बावजूद दुश्मन सेना लगातार हमले करती रही, लेकिन हर बार दुश्मन सेना को मुंह की खानी पड़ी. लगातार मिल रही नाकामी ने दुश्मन सेना को बुरी तरह से झल्ला दिया था. अब दुश्मन सेना ने बड़े हमले की साजिश पर काम करना शुरू कर दिया था. इसी साजिश के तहत, दुश्मन सेना ने टैंक रेजीमेंट के साथ अगला हमला करने का फैसला लिया.
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अमेरिकी पैटन टैंक से दुश्मन सेना ने किया हमला
इसी फैसले के तहत, 10 सितंबर की सुबह करीब 8 बजे पाकिस्तानी सेना ने टैंक रेजीमेंट के साथ हमला कर दिया. दुश्मन सेना की मदद के लिए पाकिस्तान से जबरदस्त गोलाबारी शुरू कर दी गई. गोलाबारी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुश्मन देश से आने वाला तोप का गोला बटालियन क्षेत्र के हर एक यार्ड पर गिर रहा था. सुबह 9 बजे तक दुश्मन सेना के टैंक भारतीय सेना की कंपनी पोस्ट तक पहुंचने में कायमाब हो गए थे. यहां पर भारतीय सेना और पाकिस्तानी दुश्मनों का सीधा आमना सामना शुरू हो गया.
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पैटन टैंक का सामना भारतीय थ्री-नॉट-थ्री से
यहां पर दुश्मन सेना और भारतीय सेना की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुश्मन सेना के पास अजेय कहे जाने वाले अमेरिकल पैटन टैंक की पूरी रेजीमेंट थी. वहीं भारतीय सैनिकों के पास इन अजेय पैटन टैंक का सामना करने के लिए सिर्फ थ्री-नॉट-थ्री राइफल और मशीनगन थी. दुश्मन सेना से मोर्चा लेने के लिए तैयार भारतीय सेना के पास इस समय सबसे बड़ा हथियार सिर्फ एक गन माउनटेड जीप थी, जो किसी टैंक से सामने खिलौने से अधिक अहमियत नहीं रखती थी. पुरानी कहावत है कि युद्ध हथियारों से नहीं, हौसले से जीते जाते हैं. यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ.
अब्दुल हामिद पैटन टैंक में मिला युद्ध की जीत का रहस्य
पैटन टैंक से लैस पाकिस्तानी सेना की पूरी रेजीमेंट देखने के बाद भी भारतीय सेना के जवानों का हौसला अभी भी बुलंदियों पर था. अब्दुल हमीद की निगाहें अब पूरी तरह से पैटन टैंकों पर गड़ चुकी थीं, वह अपनी नजरों से टैंक के हर हिस्से का बारीकी से जांच रहे थे. इसी बीच, पैटन टैंको ने अपने मुंह से आग उगलना शुरू कर दिया. अब तक अब्दुल हमीद उन टैंक में जो खोजना चाहते थे, उन्हें वह मिल चुका था. वह चीते सी फुर्ती के साथ अपनी गन माउनटेड जीप में सवार हुए और उसमें लगी लाइट मशीन गन से टैंक के कमजोर हिस्से को निशाना बनाना शुरू कर दिया.
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अब्दुल हमीद ने दी दुश्मन सेना को सबसे बड़ी चोट
अब्दुल हमीद की गोली का शिकार बना दुश्मन सेना का पहला टैंक तेज धमाके के साथ हवा में उड़ता हुआ नजर आया. पाकिस्तानी सेना के लिए यह बड़ी चोट थी. दुश्मन सेना अपनी इस चोट से उबर पाती, इससे पहले अब्दुल हमीद एक-एक करके दुश्मन सेना के कई पैटन टैंको को नस्तेनाबूत कर चुके थे. अब पाकिस्तानी सेना के लिए यह समझना बेहद मुश्किल हो गया था कि जिन अमेरिकी पैटन टैंक को अपनी सबसे बड़ी ताकत बनाकर युद्ध में कूदी थी, उन पैटन टैंक को अकेले अब्दुल हमीद ने अपनी मामूली सी राइफल से नस्तेनाबूत कर दिया था.
जब अब्दुल हमीद पर हुई गोलियों और गोलों की बरसात
अब्दुल हमीद की सूझबूझ और बहादुरी देख दुश्मन सेना का समाना कर रहे जवानों का शरीर एक बार फिर ऊर्जा से भर चुका था. अब वह दोगुने जोश के साथ दुश्मनों को मौंत की नींद सुलाने में जुट गए थे. देखते ही देखते युद्ध का मैदान दुश्मन सेना की लाशों से पट गया. इसी बीच, पाकिस्तानी सेना के एक टैंक ने हवलदार अब्दुल हमीद की लोकेशन को स्पॉट कर लिया. दुश्मन सेना ने मशीन गन की गोलियों और बारूद के गोलों की बरसात हवलदार अब्दुल हमीद पर शुरू कर दी.
अब्दुल हमीद पर हुआ हाई एक्सप्लोसिव सेल से हमला
दुश्मन सेना की तरफ से हो रही ताबड़तोड़ गोलीबारी हवलदार अब्दुल हमीद का साहस तोडने में नाकाम रही. दुश्मन सेना की इस गोलीबारी के बीच हवलदार अब्दुल हमीद ने अपनी गोलियों से एक और पाकिस्तानी टैंक को तबाह कर दिया. इस हमले से दुश्मन सेना बुरी तरह से बौखला गई थी. इसी बौखलाहट में दुश्मन सेना ने हवलदार अब्दुल हमीद को निशाना बनाते हुए हाई एक्प्लोसिव सेल से हमला किया. इस हमले में हवलदार अब्दुल हमीद बुरी तरह से जख्मी हुए और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए. इस युद्ध में असाधारण बहादुरी के लिए कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद को सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया.