सूबेदार जोगिंदर सिंह के इस अप्रत्याशित हमले से कुछ देर के लिए चीनी सेना में भगदड़ सी मच गई. चीनी सेना के साथ हुई इसी मुठभेड़ के दौरान सूबेदार जोगिंदर सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए.
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नई दिल्ली: याद करो कुर्बानी की चौथी कड़ी में 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान देश के लिए अपनी प्राणों का सर्वोच्च बलिदान करने वाले सूबेदार जोगिंदर सिंह की वीरगाथा आपको बताने जा रहे हैं. सूबेदार जोगिंदर सिंह का जन्म 26 जनवरी 1921 में पंजाब के फरीदकोट में हुआ था. उनके सैन्य जीवन की शुरुआत 28 सितंबर 1936 में भारतीय सेना की एक सिख रेजीमेंट से हुई. 1962 में हुए भारत चीन के युद्ध में सूबेदार जोगिंदर सिंह नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी के तवांग सेक्टर पर एक प्लाटून की अगुवाई कर रहे थे. 20 अक्टूबर को सूबेदार जोगिंदर सिंह बुम ला एक्सिस के तॉगपेंग ला इलाके में गश्त कर रहे थे.
उन्होंने देखा कि बुम ला एक्सिस के विपरीत स्थित मैकमोहन लाइन पर भारी संख्या में दुश्मन सेना का जमावड़ा हो रहा है. दरअसल, चीनी सेना भारत पर हमले के इरादे से अपने लड़ाकों को सीमा पर एकत्रित कर रही थी. सूबेदार जोगिंदर सिंह को स्थिति भांपने में देर नहीं लगी. उन्हें समझ में आ गया कि दुश्मन गलत इरादे लेकर सीमा पर इकट्ठा हो रहा है. लिहाजा, उन्होंने तत्काल इसकी जानकारी सेना के आला अधिकारियों को दी.
23 अक्टूबर की सुबह चीनी सेना ने किया हमला
सूबेदार जोगिंदर सिंह की सूचना के आधार पर भारतीय सेना ने किसी भी स्थिति से निपटने के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी. 23 अक्टूबर 1962 की सुबह वही हुआ जिसका डर था. इस दिन सुबह करीब 5.30 बजे चीन ने बूम ला एक्सिस से भारत पर हमला कर दिया. दुश्मन सेना का मकसद भारत से तवांग को छीनकर अलग करना था. अपने मंसूबों के तहत चीनी सेना ने तवांग पर तीन तरफ से हमला किया था.
भारतीय सेना ने दिया दुश्मनों को दिया मुंहतोड़ जवाब
हर तरफ से, हमले के लिए 200 दुश्मनों की सशक्त सेना भेजी गई थी. तवांग पर कब्जे का मंसूबा लेकर निकली चीनी सेना की मदद के लिए पीछे से आर्टलरी, मोर्टार सहित दूसरे अन्य हथियारों से लगातार फायरिंग की जा रही थी. इधर, सूबेदार जोगिंदर सिंह अपने जवानों के साथ दुश्मन को जवाब देने के लिए तैयार थे. भारतीय सीमा पार करते ही सूबेदार जोगिंदर सिंह ने चीनी दुश्मनों को उनकी भाषा में मुंहतोड़ जवाब देना शुरू कर दिया.
चीनी सेना को मिल रहा था आर्टलरी सपोर्ट
सूबेदार जोगिंदर सिंह का हमला इतना जबरदस्त था कि चीनी सेना के कई सैनिक मारे गए. अपने जवानों को मरता देख चीनी सेना ने अपने पैर पीछे खींच लिए. चीनी दुश्मनों ने परिस्थितियों का आकलन करने के बाद पहले से ज्यादा सैनिकों के साथ एक बार फिर इसी सीमा से हमला बोल दिया. इस बार, पहले से कई गुना अधिक आर्टलरी फायर का सपोर्ट चीनी सेना अपने सैनिकों को दे रही थी.
दुश्मन सेना के सामने दीवार की तरह खड़े थे सूबेदार
चीनी सेना अपने मंसूबों में सफल होती, इससे पहले सूबेदार जोगिंदर सिंह अपनी प्लाटून के साथ दुश्मनों के सामने मजबूत दीवार की तरफ खड़े हो गए. सूबेदार जोगिंदर सिंह और अनकी प्लाटून के जबरदस्त युद्ध कौशल ने चीनी दुश्मनों को आगे बढ़ने से रोक दिया. अब तक, चीनी सेना द्वारा किए गए दो हमलों में सूबेदार जोगिंदर सिंह की प्लाटून के आधे से ज्यादा जवान शहीद हो चुके थे. सूबेदार जोगिंदर सिंह भी इस हमले में गंभीर रूप से घायल हो गए थे.
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घायल होने के बावजूद सूबेदार ने अस्पताल जाने से किया इंकार
घायल सूबेदार जोगिंदर सिंह को उनके जवानों ने अस्पताल ले जाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने सीमा छोड़कर जाने से इंकार कर दिया था. अब तक सूबेदार जोगिंदर सिंह की प्लाटून ने चीनी सेना को भारतीय सीमा पर पैर जमाने का मौका नहीं दिया था. वहीं चीनी सेना को चंद भारतीय सैनिकों से दो बार मिल चुकी करारी हार से बुरी तरह झल्ला गई थी. इस बार उन्होंने हमले के लिए अपनी पूरी ताकत लगाने का फैसला किया.
दुश्मनों की ताकत नहीं डिगा पाई सूबेदार की हिम्मत
इसी फैसले के तहत, चीनी सेना ने अपनी पूरी ताकत और हथियार क्षमता के साथ तीसरा हमला किया. इधर, चीनी दुश्मनों से सामना करने के लिए सूबेदार जोगिंदर सिंह के पास गिनती के कुछ ही जवान बचे थे. बावजूद इसके, चीनी सेना का भारी संख्याबल, अत्याधुनिक हथियार, बारिश की तरह बरस रही गोलियां और हथगोले सूबेदार जोगिंदर सिंह की हिम्मत को तनिक भी डिगा नहीं सके.
सूबेदार की गोलीबारी से चिंता में आई दुश्मन सेना
घायल होने के बावजूद सूबेदार जोगिंदर सिंह पूरी मजबूती से दुश्मन का सामना करने के लिए तैयार थे. दुश्मनों को नस्तेनाबूत करने के लिए सूबेदार जोगिंदर सिंह ने खुद लाइट मशीन गन उठाई और दुश्मन सेना के सैनिकों को मौत की नींद सुलाते चले गए. सूबेदार जोगिंदर सिंह की सटीक कार्रवाई का ही असर था कि दुश्मन सेना को अब जवानों की लगातार हो रही मौत ने चिंता में डालना शुरू कर दिया था.
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खत्म हुई सूबेदार की गोलियां, और फिर..
इसी फिक्र के साथ दुश्मन सेना ने धीरे-धीरे रुक-रुक कर आगे बढ़ना शुरू किया. अब तक, सूबेदार जोगिंदर सिंह के सभी सैनिक शहीद हो चुके थे. उनके लिए पूरी सेना से अकेले लड़ना मुश्किल होता जा रहा था. बावजूद इसके वह पूरी हिम्मत से दुश्मन सेना का सामना कर रहे थे. कई घंटों से चल रही गोलीबारी के चलते प्लाटून के पास मौजूद गोलियां और हथगोले भी खत्म हो चुके थे. सूबेदार जोगिंदर सिंह चाह कर भी दुश्मनों को जवाब नहीं दे पा रहे थे.
संगीन से सूबेदार ने ली कई दुश्मनों की जान
इस बीच सूबेदार जोगिंदर सिंह ने एक बेहद साहसिक फैसला लिया. अपने इस फैसले के तहत उन्होंने राइफल की संगीन निकाली और 'वाहे गुरु का खालसा, वाहे गुरु की फतह' का जयकारा लगाते हुए दुश्मनों पर कूद पड़े. दुश्मनों के पास तमाम अत्याधुनिक हथियार होने के बावजूद वह चीनी सेना के कई सैनिकों को संगीन से मौत के घाट उतारने में सफल रहे.
सूबेदार जोगिंदर सिंह के इस अप्रत्याशित हमले से कुछ देर के लिए चीनी सेना में भगदड़ सी मच गई. चीनी सेना के साथ हुई इसी मुठभेड़ के दौरान सूबेदार जोगिंदर सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए. शहीद सूबेदार की प्रेरणादायक नेतृत्व क्षमता, अभूतपूर्व साहस और अकल्पनीय वीरता, अद्भुत युद्ध कौशल, देश के प्रति समर्पण की भावना को देखते हुए उन्हें देश के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया.