डियर जिंदगी : हम बदलाव के लिए कितने तैयार हैं...
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डियर जिंदगी : हम बदलाव के लिए कितने तैयार हैं...

हमारे भीतर बदलाव तभी आता है, जब उसे अंदर से चुनौती मिले.

हममें से ज़्यादातर लोग दावा करते हैं कि वह परिवर्तन पसंद हैं. बदलाव चाहते हैं, लेकिन भीतर से वह परिवर्तन विरोधी होते हैं, जो इस उम्‍मीद में जीते रहते हैं कि बस, एक बार सैटल हो जाएं. यह कहते-सुनते बच्‍चे जवान हो जाते हैं और जवान सीनियर सिटीज़न. लेकिन हर कोई बस इतना सा ख़्वाब लिए जिए जा रहा है कि सेटल हो जाएं. सैटल हो जाएंगे, तो वह ज़िंदगी जिएंगे, जो ख़्वाब में थी. अंतहीन ख़्वाबों का सिलसिला. बस, एक सेटल हो जाने के सपने के साथ जुड़ा होता है. लेकिन ज़िंदगी कहां इतना वक़्त सबको देती है. 

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वह तो समय की नाव पर सवार होती है. जो नाव में सवार हो गया वह उसके संग हो लेती है. इस मायने में ज़िंदगी बेहद कठोर और समय की पाबंद है. उसे अनुशासन तोड़ने वाले ज़रा भी पसंद नहीं, लेकिन वह परिवर्तन से बेइंतहा प्‍यार करती है, काश! हम उसकी यह अभिलाषा समझ सकें.

इसके लिए समय की नाव से हमारी दोस्‍ती ज़रूरी है. ज़िंदगी के अब तक के सफ़र में मुझे भारत के विभिन्‍न राज्‍यों में यात्रा करने और लोगों से संवाद का अवसर मिला. इसमें लोगों की प्रसन्‍नता और अवसाद के बीच मैंने एक ही चीज़ का अंतर पाया. वह है, बदलाव की तैयारी. अधिकांश लोग बदलाव के प्रति सतर्क नहीं होते. हम इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि हम काम तो कर रहे होते हैं, लेकिन आधे-अधूरे तरीक़े से. जब तक हम परिवर्तन से डरते हैं, तब तक उन अवसरों तक ही ख़ुद को सीमित रखते हैं, जो हमारी आंखों के सामने होते हैं. इन आंखों में भविष्‍य के सपने आते ही नहीं. और अगर भूल से आ भी जाएं तो पहचानना मुश्किल है.

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हमारे भीतर बदलाव तभी आता है, जब उसे अंदर से चुनौती मिले. दूसरा कारण जब हमारे सामने अस्तित्‍व का संकट खड़ा हो जाए. भारत अब तक मौटे तौर पर संयुक्‍त परिवार का समाज रहा है, इसलिए परिवार के सहयोग के चलते उसमें एक किस्‍म की छुपी हुई बेरोज़गारी भी रही है. चार भाई काम करते हैं तो एक नहीं भी करेगा तो चलेगा. लेकिन समय की नाव संयुक्‍त परिवार को किनारे छोड़ आगे बढ़ गई है.

अब एकल परिवार या न्‍युक्‍लियर फैमिली का ज़माना आ गया है. ऐसे में वह लोग जो अवसरों को केवल इसलिए न कहते रहे कि अकेले कौन रहेगा, हम तो परिवार के साथ रहेंगे, उनके सामने बड़े संकट खड़े हो रहे हैं. क्‍योंकि यह ज़रूरी नहीं कि उन्‍हें करियर या रोज़गार के अवसर उसी शहर में मिलें जहां वह अब तक थे. तो यह संकट काबिल होने से अधिक इस बात का है कि आपने अपनी दिशा के बारे में फ़ैसला किस समय किया.

जो बदलाव को स्‍वीकार करते हैं, उनके लिए यह एक जीवनशैली है, उससे अधिक कुछ नहीं. जैसे आप रोज़ एक ही सब्‍ज़ी नहीं खाते, जैसे हर दिन आप एक ही कपड़ा नहीं पहनते वैसे ही क्‍या यह ज़रूरी है कि आप वैसे ही सोचें, वही करें, जो अब तक आपके परिवार में होता आया. आप नौकरी के बारे में इसलिए नहीं सोचते कि आपके ख़ानदान में किसी ने अब तक नौकरी नहीं की. आप एक शहर से बाहर भी इसलिए नहीं जाना चाहते क्‍योंकि आपका सारा परिवार एक ही शहर में रहता है. यह कुल मिलाकर कंफर्ट ज़ोन आपकी ही रची दुनिया है. जिसके कुछ थोड़े से लाभ हैं, यहां जीवन सुगम हो सकता है. लेकिन अगर यह आपकी क्षमताओं में इज़ाफ़ा नहीं करता तो यह एक समय पर आपके लिए बेईमानी हो जाएगा. बल्कि एक ही विचार से, काम या फिर नौकरी से चिपके रहना वास्‍तव में आपके द्वारा आपके ही विरुद्ध लिया गया सबसे बड़ा फ़ैसला साबित हो सकता है. 

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बदलने की तैयारी असल में एक मेंटल स्‍टेटस है. हम सोशल मीडिया पर दूसरों को दिखाने के लिए तो खूब स्‍टेटस बदलते रहते हैं, लेकिन अब मेंटल स्‍टेटस न जाने कितने बरसों तक अपग्रेड नहीं करते. अगर आप ठीक वैसे ही हैं, जैसे दो बरस पहले थे तो इसका अर्थ है कि आपके जीवन में इतने दिनों तक कोई रोमांच छूकर नहीं गुज़रा. आपने किसी चुनौती को आमंत्रि‍त नहीं किया. आप बस इस इंतज़ार में रहे कि जब कुछ सेटल हो जाएगा, तक जीवन का मज़ा लिया जाएगा. तो यक़ीन मानिए ऐसा कभी नहीं होगा. जब तक आप बदलाव की नाव पर सवार नहीं होंगे, ज़िंदगी को डियर बनाए रखना बहुत मुश्किल होगा. इसलिए किसी और के लिए न सही, बस अपने लिए, उनके लिए जिनसे आप बिना शर्त प्रेम करते हैं, उनके लिए बदलना शुरू करिए....आज से, अभी से.

(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

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