कांशीराम और मुलायम की मुलाकात के 26 बरस बाद जब मायावती ने 'टीपू' के लिए भेजी मर्सिडीज...
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कांशीराम और मुलायम की मुलाकात के 26 बरस बाद जब मायावती ने 'टीपू' के लिए भेजी मर्सिडीज...

1957 में डीआरडीओ में असिस्‍टेंट साइंटिस्‍ट के रूप में करियर शुरू करने वाले कांशीराम ने सामाजिक सुधारक के रूप में सबसे पहले 1978 में बामसेफ और 1981 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति(DS-4) का गठन किया. उसके बाद 1984 में राजनीतिक दल के रूप में बसपा का गठन किया.

कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने 1993 में चुनावी गठबंधन कर सफलता हासिल की थी. हालांकि 1995 में यह गठबंधन टूट गया.(फाइल फोटो)

26 साल पहले 1992 में 'राम मंदिर' आंदोलन के दौर में पहली बार सपा नेता मुलायम सिंह यादव, तत्‍कालीन बसपा सुप्रीमो कांशीराम से मिलने पहुंचे थे. उस मुलाकात के एक साल के भीतर 1993 में दोनों दलों ने यूपी में चुनावी जीत हासिल की और मुलायम सिंह मुख्‍यमंत्री बने. आज इस बात को याद करने की दो बड़ी वजहें हैं. पहली तो यह कि बसपा के संस्‍थापक कांशीराम का 15 मार्च को जन्‍मदिन है और दूसरा बड़ी वजह यह कि यूपी के नए सियासी समीकरण एक बार फिर सपा-बसपा गठबंधन के संभावित संकेत दे रहे हैं. इसीलिए बुधवार को दिन में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव जीतने के बाद शाम करीब सात बजे सपा नेता अलिखेश यादव (घरेलू नाम टीपू) जब बसपा सुप्रीमो से मिलने पहुंचे तो लोगों के जेहन में कांशीराम और मुलायम सिंह यादव की बरसों पुरानी मुलाकात ताजा हो गई.

  1. 15 मार्च को बसपा संस्‍थापक कांशीराम का जन्‍मदिन है
  2. अंबेडकर के बाद दलित आंदोलन के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं
  3. अब यूपी में सपा-बसपा के संभावित गठबंधन के संकेत मिल रहे हैं

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इस मुलाकात के लिए लखनऊ में मायावती ने बाकायदा काली मर्सिडीज अखिलेश यादव के लिए भेजी. सूत्रों के मुताबिक जैसे ही बुधवार शाम अखिलेश यादव ने प्रेस कांफ्रेंस खत्‍म की, उसके तत्‍काल बाद उनके पास बीएसपी के एक बड़े नेता का फोन आया. इस बसपा नेता ने उनको बधाई देने के साथ आग्रह किया कि वह मायावती से बात करें. उसके बाद अखिलेश यादव ने मायावती से फोन पर बात की और इसके साथ ही मुलाकात का रास्‍ता साफ हो गया. लिहाजा मायावती ने अखिलेश यादव के विक्रमादित्‍य मार्ग स्थित घर पर गाड़ी भेजी. उसी में बैठकर एक किमी दूर माल एवेन्‍यू स्थित मायावती के घर अखिलेश यादव पहुंचे. दोनों नेताओं के बीच एक घंटे तक मुलाकात चली. हालांकि उसका ब्‍यौरा उपलब्‍ध नहीं हो सका.

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मुलायम सिंह और कांशीराम
उल्‍लेखनीय है कि वर्ष 1993 में सपा नेता मुलायम सिंह और बसपा नेता कांशीराम ने मिलकर 'राम लहर' को रोकने में सफलता हासिल कर ली थी. उस दौर में जब मुलायम और कांशीराम ने गठबंधन किया था, तब सियासत का रुख अलग था. तब के दौर में मंडल आयोग ने ओबीसी वोटरों को एकजुट किया था और मुलायम सिंह यूपी में उनका निर्विवाद चेहरा थे. इसीलिए यह जातीय गठजोड़ 'राम लहर' को रोकने में कामयाब हो गया था.

अखिलेश यादव और मायावती
अखिलेश यादव और मायावती के लिए परिस्थतियां अब अलग हैं. यह सही है कि गोरखपुर और फूलपुर में सपा, बीएसपी के तालमेल के चलते दो सीटें जीतने में कामयाब हुई लेकिन यह भी सही है कि 2014 लोकसभा चुनाव में 'मोदी लहर' के सामने बसपा का जहां खाता नहीं खुला था, वहीं अखिलेश की पार्टी केवल परिवार की सीटें ही बचाने में कामयाब हो पाई. इसके बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मोदी लहर चली और भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला. दरअसल अभी तक सपा, बसपा, कांग्रेस और बीजेपी के बीच एक तरह से चतुष्‍कोणीय मुकाबला होता था, जिसका फायदा बीजेपी को मोदी लहर के दौर में मिला. हालांकि अब यदि बीजेपी को घेरने के लिए ये सभी दल एक साथ एक मंच पर आएंगे तो मामला आमने-सामने का होगा. इस चुनौती से निपटने के लिए बीजेपी को अपनी रणनीति नए सिरे से बनानी होगी.

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कांशीराम (1934-2006)
बहुजनों के नायक माने जाने वाले कांशीराम का जन्‍म पंजाब में हुआ था. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के बाद कांशीराम को दलित आंदोलन का सबसे महत्‍वपूर्ण नेता माना जाता है. 1957 में डीआरडीओ में असिस्‍टेंट साइंटिस्‍ट के रूप में करियर शुरू करने वाले कांशीराम ने सामाजिक सुधारक के रूप में सबसे पहले 1978 में बामसेफ और 1981 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति(DS-4) का गठन किया. उसके बाद 1984 में राजनीतिक दल के रूप में बसपा का गठन किया. यूपी में इस पार्टी को जबर्दस्‍त सफलता मिली और मायावती चार बार यूपी की मुख्‍यमंत्री बनीं. कांशीराम ने 2001 में मायावती को सार्वजनिक रूप से अपना राजनीतिक उत्‍तराधिकारी घोषित कर दिया था.

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