जब लंबे स्व-निर्वासन के बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी(पीपीपी) नेता बेनजीर भुट्टो आम चुनावों(2008) से पहले वहां लौटीं तो माना जाता है कि वह इस मंसूबे के साथ लौटी थीं कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की मजबूती के साथ कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों पर नकेल कसना बहुत जरूरी हो गया है.
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पाकिस्तान में जल्द होने जा रहे आम चुनावों के ऐन पहले हाल में सत्ता से बेदखल किए गए नवाज शरीफ ने लगभग परमाणु बम के हमले की तरह बड़ा बयान देते हुए 2008 के मुंबई आतंकी हमले में पाकिस्तान की भूमिका की बात कहकर एकाएक वहां की आर्मी और आईएसआई को बैकफुट पर ला दिया है. इसके साथ ही उनका यह कहना कि एक देश में तीन समानांतर सरकारें नहीं चल सकती, उनके सीधे तौर पर सेना और न्यायपालिका पर हमले के रूप में देखा जा रहा है. जानकारों के मुताबिक इस तरह की बयानों से नवाज शरीफ ने सीधे तौर पर अपनी निजी सुरक्षा के लिहाज से बड़ा खतरा मोल ले लिया है.
इसी तरह 2007 में जब लंबे स्व-निर्वासन के बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी(पीपीपी) नेता बेनजीर भुट्टो आम चुनावों(2008) से पहले वहां लौटीं तो माना जाता है कि वह इस मंसूबे के साथ लौटी थीं कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की मजबूती के साथ कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों पर नकेल कसना बहुत जरूरी हो गया है. इस कट्टरपंथी ताकतों ने इस तरह से समझा कि यदि बेनजीर चुनाव जीत गईं तो आतंकी समूहों के लिए पाकिस्तान में जमीन हासिल करना मुश्किल हो जाएगा. नतीजतन दिसंबर, 2007 में उनकी हत्या कर दी गई.
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पाकिस्तान में चुनाव
अब उस घटना के 11 साल बाद पाकिस्तान में फिर चुनाव होने जा रहे हैं. हालांकि नवाज शरीफ इससे पहले गाहे-बगाहे पाकिस्तानी सेना और आईएसआई को आड़े हाथों लेते रहे हैं लेकिन मुंबई हमलों को लेकर एक दशक बाद नवाज शरीफ जैसे कद के नेता की इस तरह की दुर्लभ स्वीकारोक्ति साफ इशारा करती हैं कि पाकिस्तान में आने वाला चुनाव सियासत से लेकर सेना तक के लिए उन्माद की हद तक पहुंच चुका है. इसी की पृष्ठभूमि में 'पनामा पेपर्स' में नाम आने के बाद पहले नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. उसके बाद कोर्ट ने उन पर चुनाव लड़ने के लिए आजीवन पाबंदी लगाकर एक तरह से उनके सियासी करियर को ही खत्म कर दिया.
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नतीजतन शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग(नवाज) को उनके भाई और पंजाब के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ को अगले चुनावों में अपने नए नेता के रूप में सामने लाना पड़ा. उसके बाद चंद रोज पहले खबरें आईं कि नवाज शरीफ का अरबों रुपया भारत में जमा है. हालांकि वर्ल्ड बैंक ने इसका खंडन किया. इस तरह की खबरों का भी यही अर्थ निकाला गया कि पाकिस्तान में एक तबका ऐसा है जो नवाज शरीफ की भारत समर्थक इमेज बनाकर चुनावों में उनकी पार्टी को अधिकाधिक नुकसान पहुंचाना चाहता है. इस तरह से यदि देखा जाए तो नवाज शरीफ पर अब जीवन की सुरक्षा का खतरा मंडराने के साथ-साथ यह भी तय हो गया है कुछ ताकतें(सेना, न्यायपालिका का एक तबका) नहीं चाहते कि उनकी पार्टी किसी भी तरह लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटे.
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वजह
पाकिस्तान में कहा जा रहा है कि सेना का इस तरह से संस्थागत रूप से हर तबके में प्रवेश हो गया है कि वहां की लोकतांत्रिक सरकारें क्षण-भंगुर ही साबित हुई हैं. लोकतांत्रिक सरकार की रहनुमाई करने वाले और सेना को बैरक में लौटने के ख्वाब देखने वाले नवाज शरीफ की सत्ता कोर्ट के एक ऑर्डर से ही चली गई. शरीफ को सर्वाधिक नुकसान भारत के साथ दोस्ती की चाह के कारण उठाना पड़ा. पाकिस्तान में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के कुछ रोज बाद ही पठानकोट और उसके बाद उरी आतंकी हमले से दोनों देशों के बीच पिघलते रिश्ते फिर से सर्द हो गए. इसके माध्यम से भारत को भी यह संदेश देने की कोशिश की गई कि पाकिस्तान की विदेश नीति का निर्धारण सरकार नहीं सेना करती है. ऐसे में किसी भी तरह की बातचीत में पाक सेना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. हालांकि भारतीय सरकार ने इस तरह के संकेतों के बावजूद हमेशा पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार को ही तवज्जो दी.
किसको होगा फायदा?
इस वक्त चुनावों के लिहाज से सत्ताधारी नवाज शरीफ की पार्टी से मुकाबले के लिहाज से देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी पीपीपी कमजोर मानी जा रही है. बेनजीर भुट्टो के बाद इसकी कमान पति आसिफ अली जरदारी और बेटे बिलावल भुट्टो के पास है. इस बीच हालिया कुछ वर्षों में इमरान खान और तहरीके इंसाफ पार्टी(पीटीआई) की आवाज मुखर होती गई है. पिछले पांच वर्षों में इमरान खान सीधे तौर पर नवाज शरीफ को टक्कर देते रहे हैं. पाकिस्तान के कबीलाई प्रांत में उनकी पार्टी की सरकार है. इस्लामिक कट्टरपंथियों के लिहाज से उनको नरम माना जाता है. इस बीच इस बात की चर्चा अक्सर होती है कि पाकिस्तानी सेना की शह भी उनको मिली है. इन परिस्थितियों में अब ये कयास लगाए जाने लगे हैं कि बेनजीर और नवाज शरीफ के दौर के बाद क्या पाकिस्तान के अगले सबसे बड़े नेता इमरान खान बनने जा रहे हैं? इन सवालों का जवाब आने वाले चुनावों में छिपा है?