संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संतों से की संघ की तुलना, बोले- 'दोनों एक सिक्‍के के दो पहलू'
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संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संतों से की संघ की तुलना, बोले- 'दोनों एक सिक्‍के के दो पहलू'

रत्‍नागिरी के नानीज में आयोजित कार्यक्रम में संघ प्रमुख ने दिया बयान. 

फाइल फोटो

नई दिल्‍ली : राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने संघ की तुलना थेट संतों से की है. उन्‍होंने कहा है कि संत और संघ, दोनों एक ही सिक्‍के के दो पहलू हैं. उन्‍होंने कहा कि दोनों का काम लगभग एक जैसा ही है. मोहन भागवत ने यह बयान महाराष्‍ट्र के रत्‍नागिरी के नानीज में दिया है.

इसके साथ ही संघ प्रमुख मोहन भगवत ने संघ पर टिप्‍पणी करते हुए कहा कि संघ बहुत बड़ी शक्ति है, इसलिए उसकी चार चर्चा देश-विदेश में होती है. उन्‍होंने कहा कि जिसके लिए यह शक्ति अनुकूल नहीं है, असल में वही संघ पर टिप्‍पणी करता है. इस कार्यक्रम में मोहन भगवत को पांच लाख रुपये और ताम्रपत्र देकर सम्‍मानित किया गया. लेकिन उन्होंने ये भेंट वापस कर दी.

बता दें कि इसके पहले पिछले दिनों मोहन भागवत की ओर से पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी को आरएसएस के कार्यक्रम में बुलाने पर वह सुर्खियों में आए थे. आरएसएस के कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे प्रणब मुखर्जी के जाने पर मचे विवाद RSS चीफ ने बयान दिया था. उन्‍होंने कहा था कि संघ सभी के लिए आत्मीयता को आदर्श मानता है और इसलिए उसे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को अपने कार्यक्रम में बुलाने में कोई हिचक नहीं हुई. भागवत ने कहा, ‘जब वह (मुखर्जी) एक पार्टी में थे, तो वह उनसे (कांग्रेस से) संबंधित थे, लेकिन जब वह देश के राष्ट्रपति बन गए तो वह पूरे देश के हो गए.’

मालूम हो कि RSS के कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सरल शब्दों में भारत की बहुलतावादी संस्कृति का बखान किया था. उन्होंने आरएसएस काडर को बताया कि राष्ट्र की आत्मा बहुलवाद और पंथनिरपेक्षवाद में बसती है. पूर्व राष्ट्रपति ने प्रतिस्पर्धी हितों में संतुलन बनाने के लिए बातचीत का मार्ग अपनाने की जरूरत बताई. उन्होंने साफतौर पर कहा कि घृणा से राष्ट्रवाद कमजोर होता है और असहिष्णुता से राष्ट्र की पहचान क्षीण पड़ जाएगी. उन्होंने कहा, "सार्वजनिक संवाद में भिन्न मतों को स्वीकार किया जाना चाहिए."

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