त्रिपुरा में इस बार के चुनाव के नतीजे क्या पिछले ढाई दशक के वामपंथियों के इतिहास को बदलने जा रहे हैं. अगर ऐसा होता है तो इसके बाद भारत में वामपंथ के अस्तित्व पर खतरा पड़ सकता है.
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नई दिल्ली: त्रिपुरा में इस बार के चुनाव के नतीजे क्या पिछले ढाई दशक के वामपंथियों के इतिहास को बदलने जा रहे हैं. अगर ऐसा होता है तो इसके बाद भारत में वामपंथ के अस्तित्व पर खतरा पड़ सकता है. वहीं अपनी जीत के अभियान के साथ भाजपा पूरे देश के राज्यों में सत्ता पर काबिज होने के और कांग्रेस मुक्त भारत के मिशन को आगे बढ़ा सकती है. 60 विधानसभा सीट में से 59 सीट पर होने वाले इन चुनावों में भाजपा ने जिस तरह से अपनी मौजूदगी दर्ज की है. उसके पीछे कुछ खास बातें रही हैं.
केंद्र और राज्य में एक सत्ता- त्रिपुरा में भाजपा ने इस बार अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. उन्होंने अपने चुनावी कैंपेन में बार-बार विकास की बात कही है. भाजपा अपनी चुनावी रैलियों में अपने भाषणों में बार-बार यही बात बोलती नजर आई है कि सत्ता में आने के बाद केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सत्ता होगी. इससे राज्य में तेज गति से विकास सुनिश्चित होगी. ये वो फार्मूला है जो यहां कि जनता को बदलाव लाने की ओर आकर्षित कर सकता है.
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प्रधानमंत्री का चेहरा एक बार फिर आया काम- त्रिपुरा में इस बार चुनाव में भाजपा ने अपना ज्यादा ध्यान केंद्रित कर दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार त्रिपुरा में चार रैली की है. मोदी का जादू यहां भी कमाल कर सकता है. उन्होनें इस बार पूरा चुनाव वामपंथ मुक्त त्रिपुरा पर केंद्रित किया गया है. पिछले चुनाव में भाजपा को महज दो फीसद वोट मिले थे. लेकिन इसके बाद भाजपा ने जमीनी स्तर पर बहुत काम किया था.
कानून व्यवस्था से असंतोष- त्रिपुरा राज्य उत्तरपूर्वी राज्यों में अपेक्षाकृत शांत राज्य माना जाता है. लेकिन पिछले दिनों बढ़ी आपराधिक गतिविधियों ने यहां की जनता में कानून व्यवस्था के खिलाफ काफी रोष पैदा कर दिया था. तो व्यवस्था परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए यहां जनता ने वोट दिया. इसके अलावा भाजपा ने इनसे विकास का भी वादा किया था.
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आदिवासी समर्थन से हो सकता है बदलाव- 20 आदिवासियों की सीट में सेंध लगाने का सीधा-सीधा फायदा भाजपा की झोली में गिर सकता है. यहां तीस फीसद वोट आदिवासियों का है. त्रिपुरा में आदिवासियों की एक बड़ी आबादी है और आदिवासी संगठन आईपीएफटी भाजपा के साथ है.
आक्रामक रणनीति और कांग्रेस में सेंध- भाजपा ने त्रिपुरा में युवाओं के लिए मुफ्त स्मार्टफोन, महिलाओं के लिए मुफ्त में ग्रेजुएशन तक की शिक्षा, रोजगार, कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने जैसे वादे अपने चुनाव घोषणापत्र, 'त्रिपुरा के लिए विजन डॉक्यूमेंट' में किए हैं. भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र से सभी वर्गो के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है. सबसे अहम बात जो भाजपा के पक्ष में जाती है, वह उसकी आक्रामक रणनीति है. भाजपा ने अपनी रणनीति से मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को इस चुनाव में हाशिये पर ला दिया है. कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव 2013 में 36 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे, जबकि भाजपा को महज डेढ़ फीसद. भाजपा ही इस चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को टक्कर दे रही है. यह चौंकाने वाला तथ्य है. इसका श्रेय भाजपा की मजबूत रणनीति को जाता है जिसके जरिए वह पूर्वोत्तर को फतह करना चाहती है. भाजपा ने कांग्रेस के तमाम प्रमुख नेताओं को तोड़कर अपने साथ मिला लिया है, जिससे कांग्रेस एक तरह से मुख्य स्पर्धा से बाहर हो चुकी है.
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इसके अलावा प्रदेश में उद्योग का अभाव है. यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है. ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगार युवाओं की एक बड़ी फौज है. भाजपा ने लोगों को नौकरियां देने का वादा किया है जो इस बदलाव में अहम भूमिका निभा सकता है.