मनमोहन सिंह ने अपना बजट भाषण संपन्न किया तो नेता प्रतिपक्ष होने के नाते अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना भाषण दिया. इस भाषण में वाजपेयी ने मनमोहन सिंह की ओर से पेश किए गए बजट की जमकर आलोचना की.
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नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एम्स में अंतिम सांस ली. गुरुवार शाम को उनका निधन हो गया. उनकी मौत से पूरे देश के लिए दुख की घड़ी है. वाजपेयी लंबे समय से बीमार थे, लोग उनके स्वस्थ्य होने की दुआ कर रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.अटल बिहारी वाजपेयी के लंबे राजनीतिक करियर से जुड़ी कई बातें हैं. हम आपको वाजपेयी के नेता प्रतिपक्ष के रूप में दिए गए भाषण से जुड़ा एक किस्सा बता रहे हैं. साल 1991 की बात है. केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी. इस सरकार में डॉक्टर मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे. मनमोहन सिंह देश में आर्थिक उदारीकरण से जुड़े फैसल ले रहे थे. इसी को ध्यान में रखकर मनमोहन सिंह ने संसद में बजट पेश किया था.
उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी नेता प्रतिपक्ष थे. मनमोहन सिंह ने अपना बजट भाषण संपन्न किया तो नेता प्रतिपक्ष होने के नाते अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना भाषण दिया. इस भाषण में वाजपेयी ने मनमोहन सिंह की ओर से पेश किए गए बजट की जमकर आलोचना की. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक वाजपेयी की आलोचना से मनमोहन सिंह आहत हो गए थे. आलम यह था कि उन्होंने तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव को इस्तीफा देने तक के बारे में सोच रहे थे. नरसिम्हा राव को यह बात पता चली तो उन्होंने वाजपेयी को फोन कर पूरी कहानी बताई.
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इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने मनमोहन सिंह से मुलाकात की और उन्हें समझाया कि उनकी आलोचना राजनीतिक है. संसद में उन्होंने राजनीतिक भाषण दिया था. इसके बाद मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री पद छोड़ने का फैसला वापस ले लिया. इस मुलाकात का असर यह हुआ कि मनमोहन सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी दोस्त बन गए. अटल बिहारी वाजपेयी जब बीमारी से ग्रसित रहे तो उनसे नियमित मिलने वालों में मनमोहन सिंह भी शामिल हैं. नियमित रूप से उनसे मिलने आने वालों में उनके डॉक्टर, उनके दोस्त और सुप्रीम कोर्ट के वकील एनएम घाटते, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी और लंबे समय तक उनके सहयोगी रहे लाल कृष्ण आडवाणी हैं.
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अटल बिहारी वाजपेयी करीब 14 साल से बीमार हैं. उनकी आखिरी तस्वीर तीन साल पहले 2015 में दिखी थी. मार्च 2015 में वाजपेयी को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों दिल्ली स्थित उनके घर पर भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
आपके जेहन में सवाल उठ रहे होंगे कि बीमारी से ग्रसित होने के बाद वाजपेयी इतने साल कहां थे. प्रधानमंत्री पद छोड़ने के बाद वाजपेयी अब तक कृष्ण मेनन मार्ग स्थित आवास में अपनी दत्तक पुत्री नमिता भट्टाचार्य के साथ रहते रहे. 2014 में निधन से पहले तक राजकुमारी कौल भी यहीं रहती थीं.