महाराष्ट्र की आबादी में मराठा समुदाय की हिस्सेदारी 33 प्रतिशत है.
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दो साल की खामोशी के बाद महाराष्ट्र में मराठा समुदाय एक बार फिर सड़कों पर उतर आए हैं. उस दौरान महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग के साथ इस समुदाय ने पूरे प्रदेश में मूक मार्च निकाले थे. लेकिन इस बार महाराष्ट्र उग्र आंदोलन के कारण सुलग रहा है. जगह-जगह हिंसा हो रही है. उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र की आबादी में मराठा समुदाय की हिस्सेदारी 33 प्रतिशत है.
अब तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसी 19 जुलाई को कहा कि यदि बांबे हाई कोर्ट अनुमति देता है तो प्रदेश में बैकलॉग के 72 हजार पदों को भरते वक्त 16 प्रतिशत मराठा समुदाय के लोगों को आवंटित किये जायेंगे. फडणवीस ने यह घोषणा विपक्षी सदस्यों द्वारा लगाये जा रहे आरोप के जवाब में की. विपक्षी सदस्यों का कहना था कि प्रदेश सरकार मराठा समुदाय को कोटा आवंटित करने के अपने वादे से पीछे हट रही है. मुख्यमंत्री ने कहा कि आरक्षण का यह मामला इस वक्त बांबे हाई कोर्ट में लंबित है और कोटा मामले का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए. सरकार ने हाल में विभिन्न विभागों में रिक्त पड़े 72 हजार पदों को भर्ती करने की घोषणा की थी. उल्लेखनीय है कि 2014 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठों के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी. उसके बाद से यह मामला बांबे हाई कोर्ट में लंबित है.
सरकार को उम्मीद थी कि लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहा मराठा समुदाय इस घोषणा से खुश होगा लेकिन इसके उलटा हुआ. मराठा आंदोलनकारी इस घोषणा से नाराज हो गए और उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि यदि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अषाढ़ी एकादशी पर पूजा करने के लिए पंढरपुर जाएंगे तो उनका घेराव किया जाएगा. नतीजन मुख्यमंत्री को अपना वहां जाने का प्लान स्थगित करना पड़ा और अपने घर पर ही पूजा करनी पड़ी. प्रदर्शनकारियों ने अब मुख्यमंत्री के सरकारी आवास के घेराव की बात कही है.
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ऐसे में सवाल उठता है कि जब मराठा आंदोलनकारियों की आरक्षण की मांग मान ली गई है तो उसके बावजूद इस तरह के हिंसक प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं? वैसे तो मराठा समुदाय के कई संगठन हैं लेकिन इस आंदोलन की अगुआई मराठा क्रांति मोर्चा कर रहा है. इसी संगठन के बैनर तले मराठा समुदाय के सभी संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं.
अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के दर्जे की मांग
दरअसल आंदोलनकारी मराठा नेताओं का कहना है कि वे आरक्षण नहीं बल्कि अपने समुदाय के लिए अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) का दर्जा चाहते हैं. इसके पीछे उनका तर्क है कि कानूनी प्रावधानों के मुताबिक मौजूदा 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण होने की स्थिति में उसको अमल में लाना मुश्किल है. बांबे हाई कोर्ट में यह मामला फिलहाल लंबित है. अन्य राज्यों में इस तरह की घोषणाएं कोर्ट में ठहर नहीं सकी हैं. इसलिए इनकी मांग है कि इसके बजाय यदि मराठा समुदाय को ओबीसी का दर्जा मिल जाएगा तो स्वाभाविक रूप से पिछड़े तबके को मिलने वाले आरक्षण के दायरे में वे आ जाएंगे. इसके संबंध में ये नेता यह भी कहते हैं कि राज्य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर महाराष्ट्र सरकार मराठों को पिछड़े तबके में शामिल करने के संबंध में अंतिम निर्णय ले सकती है.
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हालांकि सरकार का यह कहना है कि पिछड़ा वर्ग आयोग इस प्रस्ताव पर पहले से ही विचार कर रहा है और उस दिशा में काम कर रहा है. लेकिन आंदोलनकारियों को सरकार के मंसूबों पर भरोसा नहीं है. उनका कहना है कि आयोग बहुत धीमी गति से काम कर रहा है, इसलिए सरकार को इसकी अंतिम रिपोर्ट आने का इंतजार नहीं करना चाहिए.