आसमान में आतिशबाजी के लिए हो जाएं तैयार, NASA ने बताया कब होगी सितारों की बारिश
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आसमान में आतिशबाजी के लिए हो जाएं तैयार, NASA ने बताया कब होगी सितारों की बारिश

Eta Aquariids Meteor Shower 2024: जल्द ही आप आसमान में हेली धूमकेतु से जुड़े एटा एक्वारिड्स उल्कापात को देख पाएंगे. उल्काओं की बौछार 6 मई को अपने चरम पर होती है.

आसमान में आतिशबाजी के लिए हो जाएं तैयार, NASA ने बताया कब होगी सितारों की बारिश

Eta Aquariids Meteor Shower: आसमान में टूटते तारों की आतिशबाजी देखने के लिए तैयार रहिए! इस वीकेंड पर उल्काओं की बौछार होने वाली हैं. यह उल्कापात हैली धूमकेतु से जुड़ा है जिसे एटा एक्वारिड्स कहते हैं. हर साल 19 अप्रैल से 28 मई के बीच उल्काओं की बारिश होती है. अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के मुताबिक, 4 से 6 मई के बीच यह बारिश अपने शबाब पर होगी. उस वक्त आसमान में हर मिनट एक उल्कापात नजर आएगा. उनकी रफ्तार 1,48,000 मील प्रति घंटा के आसपास होती है. यह आतिशबाजी इतनी चमकीली होगी कि उसे नंगी आंखों से देखा जा सकेगा. NASA के अनुसार, एटा एक्वेरिड का अगला विस्फोट अब से लगभग 20 साल बाद, 2046 में होगा. एटा एक्वारिड्स उल्कापात में हमें जो उल्का (टूटते तारे) दिखते हैं, वे हैली धूमकेतु से सैकड़ों साल पहले अलग हो गए थे. हैली धूमकेतु की वर्तमान कक्षा पृथ्वी के इतने करीब से नहीं गुजरती कि उल्कापात करा सके.

Eta Aquariid meteor shower कब, कहां दिखेगा?

वैसे तो एटा एक्वारिड्स उल्कापात अब भी जारी है, लेकिन 5-6 मई को यह पीक पर होगा. अमेरिकन मीटियोर सोसायटी के अनुसार, एटा एक्वारिड्स उल्कापात का पीक टाइम 5 मई को रात 8.43 बजे होगा. एटा एक्वारिड्स को 5 और 6 मई को सुबह होने से कुछ घंटों पहले आसानी से देखा जा सकता है. उल्काओं की बौछार को नंगी आखों से देखा जा सकता है. आप चाहें तो बायनॉकुलर्स और टेलीस्कोप का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. 

एटा एक्वेरिड उल्कापात दक्षिणी गोलार्ध में सबसे अच्छी तरह से नजर आता है. भूमध्य रेखा के उत्तर में मौजूद लोग भी यह आतिशबाजी देख सकते हैं. इस उल्का बौछार का चमकदार बिंदु कुंभ नक्षत्र में स्थित है, जो एटा एक्वेरी तारे के पास है.

उल्कापात क्या होता है?

उल्काओं की बौछार ऐसी खगोलीय घटना है जो अक्सर रात के आसमान में दिखती हैं. ये उल्काएं ब्रह्मांड के मलबे की धाराओं के चलते बनती हैं जिन्हें उल्कापिंड कहा जाता है. ये बेहद तेज रफ्तार से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं. ज्यादातर उल्काएं रेत के दाने से भी छोटी होती हैं, इसलिए उनमें से लगभग सारी गल जाती हैं. उल्काएं बेहद दुर्लभ स्थिति में ही पृथ्वी की सतह से टकराती हैं.

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