Opinion : समाज को 'कालनेमियों' से बचाना है, तो हनुमत्व को जगाना होगा
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Opinion : समाज को 'कालनेमियों' से बचाना है, तो हनुमत्व को जगाना होगा

आसाराम खुद को भगवान घोषित करने में बस कुछ ही कदम पीछे थे. देश के नेता, धंधेबाज, नौकरशाह सब उनके कदमों में आ चुके थे.

Opinion : समाज को 'कालनेमियों' से बचाना है, तो हनुमत्व को जगाना होगा

जब आसाराम को उम्रकैद की सजा हुई, तो अतीत का दृश्य वैसे ही जीवंत हो गया जैसे कि मसाला फिल्मों का फ्लैशबैक. चैनल के एंकर साहब भी क्या गजब का रूपक बांध रहे थे- आसाराम जब जेल आए तब भी पूरे संतई के अंदाज में- 'ये जेल तो हमारे स्वामी की जन्मस्थली है. मेरे लिए तो धाम है.' आज उसी धाम में लगी अदालत में उनके ही स्वामी मधुसूदन(कृष्ण)शर्मा (जज का नाम) ने उनकी करनी का फलादेश सुना दिया. सजा सुनाने के पहले आसाराम को तुलसी याद आ गए, बोले- होइहैं सोइ सो राम रचि राखा... इधर मुझे भी तुलसी याद आ गए-

उघरे अंत न होंहि निबाहू,
कालिनेमि जिमि रावन राहू

आसाराम का भी एक जमाना था. भव्य पंडाल, बिल्कुल व्हाइट हाउस की तरह. धवल दाढ़ी, सबकुछ नवल-धवल. माइक, पोडियम, मसनद, चादर सबकुछ बिलकुल बगुले की तरह सफेद फक्क. कहते हैं बापूजी को धवल से ज्यादा नवल पसंद था. देशभर के 200 आश्रमों में उनके मारीच (दलाल) कंचनमाया फैलाकर बापू के लिए नवल शिकार फंसा लाते थे.

शाहजहांपुर की ये बच्ची भी "ईश्वर" के दर्शन की लालसा से 'मारीचों' के झांसे में उलझी चली आई. आसाराम को क्या पता कि उलझने की बारी अब उनकी है. भगवान जब अपनी माया समेटता है तो सभी निपर्द हो जाते हैं. हरिओम् ने अपनी कनात समेटी आसाराम भी निपर्द हो गए.

स्वेत धवल आभामंडल की निचली परत में जितनी कालिख जमी थी सबकी सब ऊपर आ गई. हर कोने से "तारनहार" प्रकटने लगे. भवानी की ऐसी कृपा हुई कि उस बच्ची के साहस ने सबको साहस व स्वर दे दिया.

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आदमी का दंभ कभी-कभी चरितार्थ हो जाता है. आसाराम की एक वीडियो क्लिप वायरल हुई थी, जिसमें मसखरी करते हुए वह कहता है- लगता है कि एक बार जेल हो आऊं..! देखूं वहां का हाल..! बड़े, बड़े लोग वहां रहे मैं भी क्यों पीछे रहूं! फिर भक्तों से मुखातिब होकर पूछते हैं- जाऊं, कि न जाऊं? पंडाल से भक्तों की कातर पुकार आती है- नहीं, नहीं स्वामी, मेरे प्रभु हम लोग आपके बिन कहां जाएंगे. आसाराम पलटी मारते हैं- मूर्खों हम कोई हथकड़ी में थोड़े ही न जेल जाएंगे. जाएंगे भी तो पूरी आन-बान-शान से. ऐसा करते हैं कि हेलीकाप्टर से तिहाड़ जेल के ऊपरइ-ऊपर चक्कर लगा लेते हैं.

बाबा की ये हंसी ठिठोली असल में बदल जाएगी कौन जानता था, सिवाय प्रभु के. कहते हैं...

आपन सोचा दूर है, हरि सोचा तत्काल,
बलि चाहा आकाश को भेज दियो पाताल

इस मामले में आसाराम को वाकइ सिद्धयोगी ही जानना चाहिए. जेल की ख़्वाहिश की तो प्रभु ने वहीं भेज दिया. अलबत्ता यह अलग बात है कि पुलिस के डग्गा में बैठ के गए.

आसाराम के जीवन में पूर्वार्ध से ज्यादा नाटकीय उत्तरार्ध था. पूर्वार्ध कर्म था उत्तरार्ध उसका फल. आसाराम का चरित्र अपने आपमें एक उपदेश है पर जब कोई समझे तो.

एक संत ने एक बार कबूतरों को शिक्षा दी कि तुम लोग दाने के लोभ में नाहक ही बहेलिए के जाल में फंस जाते हो. लोभ नहीं करना चाहिए. फिर उन्होंने कबूतरों को मंत्र दिया- बहेलिया आएगा, चुग्गे डालेगा, जाल फैलाएगा, जाल में फंसना नहीं चाहिए. कबूतरों को यह मंत्र कंठस्थ हो गया. संत निश्चिंत हो गए. एक दिन देखते क्या हैं कि बहेलिए के जाल में फंसे सभी कबूतर फड़फड़ाते हुए संत जी का मंत्र दोहराए जा रहे थे, वही- बहेलिया आएगा जाल फैलाएगा...! संतजी ने अपना माथा कूट लिया. यही हाल है अपने देश के धर्मभीरुओं का.

धर्म-मोक्ष, धंधे में बरक्कत का चुग्गा फेककर ये चोलाधारी बहेलिए जाल फैलाते हैं और न जाने कितने लोग फंस जाते हैं. फंसते ही नहीं गहरे से धंसते भी हैं. दुष्कर्म का दोषी करार किए और उम्रकैद की सजा पड़ने के बाद भी देश में अभी भी आसाराम के हजारों हजार भक्त ऐसे होंगे जो बाबा को गुनहगार नहीं मानते. कुछ के लिए तो यह लीला भी हो सकती है. आसाराम पूरे लीलाबिहारी जो थे.

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उनका बेटा भी है, नारायण साईं. बाप नंबरी, बेटा दस नंबरी, वह भी किसी जेल में विहार कर रहा है. आसाराम भागवत् पुराण की अजामिल कसाई और गणिका की वो कहानी रस लेकर सुनाया करते थे. अजामिल ने अपने बेटे का नाम नारायण रखा था, वह इसलिए कि मरते वक्त तो बेटे को पुकारने के बहाने भगवान का नाम ले लेगा. हुआ भी यही. अजामिल ने मरते समय नारायण का नाम पुकारा तो असली नारायण आ गए और उस कसाई को अपने लोक ले गए. आसाराम ने भी इसी लोभवश बेटे का नाम नारायण रखा होगा पर उनका नारायण भी उसी मामले में जेल काट कहा है जिस मामले में उन्हें सजा हुई.

पहले साधु-संत भले ही कुछ फर्जीगीरी कर लें पर लोकलाज का कुछ लिहाज रखते थे. जो कुछ भी करते थे छिपे-छिपे मुंह छिपा के. आसाराम तो खुल्लमखुला उतर आए थे. वो खुद को भगवान घोषित करने में बस कुछ ही कदम पीछे थे. देश के नेता, धंधेबाज, नौकरशाह सब उनके कदमों में आ चुके थे.

उनकी सजा के साथ उन वीडियोक्लिप्स का वायरल होना उफान में है कि किस-किस नेता ने शरणागत् होकर उनसे आशीर्वाद लिया था. आसाराम एक तरह से बाबाओं के चक्रवर्ती तो बन ही चुके थे. इसलिये धरम के उपवन में अपने बेटे को भी चरने के लिए सांड़ के माफिक ढील दिया था.

हमारे एक रिश्तेदार जनबच्चे सहित आसाराम के फंदे में फंसे थे. एक बार बताया कि वे दीक्षा भी ले चुके हैं. दीक्षा देने के भी रेट फिक्स थे. बीपीएल से लेकर कार्पोरेट टायकून तक के लिए. गुरुपूर्णिमा में तो धन की वर्षा होती थी. उन्हीं ने बताया था कि उस दिन बोरों में नोट भरी जाती थी और गाडियों में छल्ली लग के सशस्त्र गार्ड ले जाते थे.

बड़ा ही नियोजित धंधा था. जजमान के बेटे-बेटियों के लिए स्कूल. दातून से लेकर चाय और हर मर्जों की दवा भी आसाराम के डिपार्टमेंटल स्टोर में उपलब्ध. मैं खुद भी बापू छाप चाय पी चुका हूं... रिश्तेदार खुश रहें इसलिए ...हरिओम... की डकार भी निकाली थी.
एक दिन उन्हीं रिश्तेदार के यहां ठहरना हुआ तो रात को भोजन से पहले बापूजी का प्रवचन लगा दिया. डिनर का कोई और विकल्प होता तो भाग भी जाता पर बापू का वो "यशस्वी" प्रवचन सुनना बदा था. पूरे घरभर के लोग हाथ जोड़कर बैठ गए.

टीवी पर धवल दाढ़ी के साथ हरिओम उच्चारते बापू प्रकट हुए. एक वाकया सुनाने लगे तो मैं ठिठका. ऐसा लगा कि बापू कामशास्त्र पर प्रवचन देने जा रहे हैं. अनुमान सही था बापू ने बताया- 'हरिद्वार में मैं प्रवचन कर रहा था. एक दिन मंच पर एक नवविवाहित जोड़ा आया. मुझसे कहने लगे बापू कुछ ग्यान दीजिए. मैंने कहा-नई-नई शादी किये हो दिनभर रतिक्रिया नहीं किया करो! और करने की लालसा भी हो तो जाओ मेरे पंडाल में एक स्टाल है दवाइयों का, वहां तुम्हें ज्ञान भी मिलेगा और अश्वशक्ति वाली दवा भी..!'

बापू के इस प्रवचन से मैं तो हैरत ही रह गया और वे मेरे रिश्तेदार सपरिवार नतमस्तक. अब जिसने तय ही कर लिया है कि उसे गंदगी से भरे कुएं में कूदना है तो उसका क्या करिएगा. जितने भर ढोंगी साधु-प्रवचनकार घूम रहे हैं और भारी भीड़ भी जोड़ रहे हैं, प्रथमदृष्टया ही समझ में आ जाते हैं, उनपर कोई टीका-टिप्पणी कर दो तो भक्त लट्ठ लेकर कूट देंगे.

यह पूरा एक सुगठित, सुनियोजित, व्यापर है, इसके भागीदार और गुनहगार वो कलफदार लोग भी हैं जो इन जैसों को महिमामंडित करते हैं. ये ढोंगी कालनेमि के ऐसे अवतार हैं जिनके झांसे में कभी हनुमानजी ही फंस गए थे. एक आसाराम की उम्रकैद से यह सिलसिला थमने वाला नहीं. ये उस राक्षस के रक्तबीज की तरह हैं जो एक बूंद से फिर प्रकट हो जाते थे. आसाराम तो ठिकाने लग गए. कई और जेल में हैं इनकी बारी का भी इंतजार करिए. लेकिन समाज को ऐसे कालनेमियों से मुक्त कराना है तो अपने-अपने भीतर बसे हनुमानजी को जगाइए. यह हनुमत्व ही आज के कालनेमियों से बचा सकता है चाहे वे धरम के धंधेबाज हों या राजनीति के सौदागर.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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