अगर, अब भी हम भक्ति और अंधभक्ति में अंतर न कर पाए, अगर अब भी हम अपनी आंखों पर पट्टी बांधे श्रद्धा के नाम पर व्यक्तियों के चरणों में लौटते रहे तो आसाराम और राम रहीम जैसे गुरु हमारी आस्था से यूं ही खेलते रहेंगे. यह वक्त जागने का है.
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आस्थाएं न कांपें तो मानव फिर मिट्टी का भी देवता हो जाता है.
आसाराम को नाबालिग से दुष्कृत्य का दोषी करार देने पर ख्यात कवि अज्ञेय की यही पंक्तियां याद आईं. यह फैसला आसाराम के प्रति आस्थाओं के कांपने का प्रतीक था तो इसने न्याय के प्रति भारतीय जनमानस के विश्वास को फिर पुख्ता किया. लाखों भक्त आसाराम को बापू और भगवान की संज्ञा देते थे पर उन्हें उम्मीद थी कि उनका भगवान अदालत की प्रक्रिया से निर्दोष साबित होकर आएगा, मगर ऐसा हो न सका. वास्तव में, आज लाखों भक्तों की आस्था नहीं हारी बल्कि मठाधीश बन राजसी जीवन जीने वाले कथित गुरु समाज की हार हुई है. भक्तों का विश्वास तो न डोला, बल्कि आसाराम, बाबा राम रहीम जैसे कथित गुरु अपने भक्तों के प्यार को सहेजने में विफल हो गए. वे आस्थाओं के शीर्ष से अपराध के पाताल में जा पहुंचे. जबकि लंबी प्रक्रिया के बावजूद न्याय ने अपनी जयकार करवा ही ली.
अपने पत्रकारीय जीवन में कई बार आसाराम के रसूख और जलवे को देखा है. रतलाम का पंचेड़ आश्रम हो, भोपाल के गांधीनगर का आश्रम या इंदौर के खण्डवा रोड का भव्य आश्रम आसाराम के गैर मौजूदगी में भी भक्तों को समर्पित भाव से कामों में जुटे देखा है. हजारों भक्तों को आसाराम की एक झलक पाने को बेताब और झलक दिख जाने पर भावविभोर होकर रोते देखा है. राजनीति को उनके कदमों में झुकते देखा है. 80 के दशक से आसाराम का प्रभाव बढ़ना आरम्भ हुआ था 1990 के बाद से. अगस्त 2015 को इंदौर से गिरफ्तारी तक उनके भक्तों की सूची में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती, रमण सिंह, प्रेम कुमार धूमल और वसुंधरा राजे जैसे भाजपा नेताओं के साथ दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और मोतीलाल वोरा जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के नाम शामिल रहे. भक्तों के विश्वास को अपनी ताकत बनाकर आसाराम और उनके बेटे साईं ने 400 आश्रमों के जरिये अकूत संपत्ति बनाई. आसाराम आश्रम की आधिकारिक जानकारी कहती है कि दुनियाभर में उनके चार करोड़ अनुयायी हैं.
दुर्भाग्य यह कि आसाराम ने भक्तों के विश्वास को अपनी जागीर बनाया और एक बाहुबली की तरह बर्ताव किया. यह बर्ताव 2008 में मुटेरा आश्रम में 2 बच्चों की हत्या और नाबालिग से दुष्कर्म जैसे अपराधों के खुलासे के बाद भी न बदला. बल्कि आसाराम फैसला आने के कुछ दिन पहले तक अपने दम्भ का ही प्रदर्शन करता रहा.
इसी दम्भ में अपराधों की पुनरावृत्ति की गई. 28 फ़रवरी 2014 की सुबह आसाराम और उनके बेटे नारायण साईं पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली सूरत निवासी दो बहनों में से एक के पति पर सूरत शहर में ही जानलेवा हमला हुआ. 15 दिन के भीतर ही अगला हमला राकेश पटेल नामक आसाराम के वीडियोग्राफ़र पर हुआ. दूसरे हमले के कुछ दिनों बाद ही दिनेश भगनानी नामक तीसरे गवाह पर सूरत के कपड़ा बाज़ार में तेज़ाब फेंका गया. यह तीनों गवाह ख़ुद पर हुए इन जानलेवा हमलों के बाद भी बच गए. इसके बाद 23 मई 2014 को आसाराम के निजी सचिव के तौर पर काम कर चुके अमृत प्रजापति पर चौथा हमला किया गया. गर्दन पर मारी गई गोली के ज़ख़्म से 17 दिन बाद अमृत की मृत्यु हो गई. इतना ही नहीं आसाराम मामले पर 150 से अधिक खबरें लिखने वाले शाहजहांपुर के पत्रकार नरेंद्र यादव पर अज्ञात हमलावरों ने उनकी गर्दन पर हंसुए से 2 वार किए, लेकिन 76 टाकों और तीन ऑपरेशन के बाद नरेंद्र को एक नई ज़िंदगी मिली. जनवरी 2015 में अगले गवाह अखिल गुप्ता की मुज़फ्फरनगर में गोली मारकर हत्या कर दी गई. ठीक एक महीने बाद आसाराम के सचिव के तौर पर काम कर चुके राहुल सचान पर जोधपुर अदालत में गवाही देने के तुरंत बाद अदालत परिसर में ही जानलेवा हमला हुआ. इस मामले में आठवां सनसनीखेज़ हमला 13 मई 2015 को गवाह महेंद्र चावला पर पानीपत में हुआ. हमले में बाल-बाल बचे महेंद्र आज भी आंशिक विकलांगता से जूझ रहे हैं. जोधपुर मामले में गवाह 35 वर्षीय कृपाल सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई. अपनी हत्या से कुछ ही हफ्ते पहले उन्होंने जोधपुर कोर्ट में पीड़िता के पक्ष में अपनी गवाही दर्ज करवाई थी.
यह सब इसलिए जानना जरूरी है कि अध्यात्म के धवल मंच के पीछे कपट, स्वार्थ और अपराध का स्याह तहखाना था. यह सब इसलिए भी जानना जरूरी है कि आसाराम के ख़िलाफ़ पिछले 5 सालों से जारी पीड़िता और उनके परिवार की लड़ाई केवल अदालत तक ही न सिमटी थी बल्कि उन्हें बाहर अधिक संघर्ष का सामना करना पड़ा.
आसाराम के बचाव में अलग-अलग अदालतों में बचाव के साथ-साथ जमानत की अर्जियां लगाने वाले वकीलों में राम जेठमलानी, राजू रामचंद्रन, सुब्रमण्यम स्वामी, सिद्धार्थ लूथरा, सलमान ख़ुर्शीद, केटीएस तुलसी और यूयू ललित जैसे नाम शामिल थे. आज तक अलग-अलग अदालतों ने आसाराम की ज़मानत की अर्जियां कुल 11 बार ख़ारिज की हैं. समझा जा सकता है यह लड़ाई कितनी जटिल थी.
एक परिवार ने नामुमकिन सी लड़ाई जीती है मगर इस लड़ाई का लाभ पूरे समाज को मिला है. अगर, अब भी हम भक्ति और अंधभक्ति में अंतर न कर पाए, अगर अब भी हम अपनी आंखों पर पट्टी बांधे श्रद्धा के नाम पर व्यक्तियों के चरणों में लौटते रहे तो आसाराम और राम रहीम जैसे गुरु हमारी आस्था से यूं ही खेलते रहेंगे. यह वक्त जागने का है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)