इंटरनेट की एक सबसे बड़ी चुनौती है 'चाइल्ड पोर्नग्राफी'
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इंटरनेट की एक सबसे बड़ी चुनौती है 'चाइल्ड पोर्नग्राफी'

इंटरनेट का इस्तेमाल करके मोबाइल के जरिये यौन व्यवहार से सम्बंधित सन्देश या फोटो भेजे जाने की प्रक्रिया को सेक्सटिंग कहा जाता है. (प्रतीकात्मक चित्र)

पूरे विश्व में अपराधों, खासतौर पर लैंगिक और बाल अपराधों में तेज़ी से वृद्धि हो रही है. इस वृद्धि में सूचना तकनीक का गैर-जिम्मेदार इस्तेमाल बड़ी भूमिका निभा रहा है. जब हम इंटरनेट मंचों पर या इंटरनेट मंचों के जरिये बाल शोषण का मुद्दा सामने ला रहे हैं, तब इसे केवल बच्चों से सम्बंधित विषय नहीं माना जाना चाहिए. यह एक व्यापक सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक विषय है.

कानूनी पहलू

सूचना तकनीक, खास तौर पर इंटरनेट के मंच के जरिये होने वाले बाल शोषण को रोकने के लिए मौजूद वैधानिक व्यवस्थाओं को इन कानूनों के सन्दर्भ में देखा और समझा जाता है:

* सूचना तकनीक कानून, 2008

* केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995

* लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012

* किशोर न्याय अधिनियम, 2015

* केबल टेलिविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995

इस श्रृंखला का मकसद ऑनलाइन-इंटरनेट मंचों पर होने वाले बाल शोषण और उत्पीड़न के स्वरुप को समझना और कुछ जरूरी कदम उठाने के वकालत करना है. यह एक संवेदनशील विषय है और इसके महज कानूनी प्रक्रिया का मामला मानकर छोड़ देना बहुत बड़ी गलती है.

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जरूरी है कि हम अपने बच्चों, अपने परिवार, स्कूलों और सामाजिक मंचों पर बच्चों के आनलाइन-इंटरनेट मंचों पर होने वाले शोषण पर बात-बहस करें और खुद ऐसी व्यवस्था बनाएँ कि यदि शोषण या उत्पीड़न हो तो छिपा न रहे, शोषण और उत्पीड़न रुके और जरूरी कानूनी कार्यवाही भी हो सके.

बच्चों का इंटरनेट पर शोषण

बच्चे इंटरनेट या सूचना तकनीक के कारण कैसे शोषण के शिकार होते हैं?

इसे हमें दो तरह से समझना होगा -

पहला - बच्चे इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, किन्तु उनके आपत्तिजनक/अश्लील फोटो या वीडियो इंटरनेट के जरिये फैलाए जाते हैं. इनका व्यावसायिक इस्तेमाल होता है. यह भी संभव है कि बच्चों या किशोरवय व्यक्ति को यह पता ही न हो कि उनके इस तरह के फोटो या वीडियो इस तरह फ़ैल रहे हैं.

दूसरा - इंटरनेट का इस्तेमाल करते हुए शोषण में फँस जाने वाले बच्चे; अनजाने व्यक्तियों के संपर्क में आकार या संगठित गिरोह के रूप में शोषण करने वाले लोगों के झांसे में आकार बच्चे शोषण का शिकार होते हैं. जब वे फँस जाते हैं, तब उनका शारीरिक, आर्थिक शोषण तो होता ही है, उनसे अपराध भी करवाए जाते हैं.

इंटरनेट विभिन्न परिस्थितियों में बच्चों का इन रूपों में शोषण करता है:

बच्चों का अश्लील रूप में प्रदर्शन (चित्र, वीडियो और शाब्दिक चित्रण), जिससे उनकी गरिमा, सम्मान और स्वतंत्रता को आघात लगता है.

यह अवसाद का कारण बनता है. बच्चे आपराधिक गतिविधियों में फंस सकते हैं और खुद अन्य बच्चों के शोषण की प्रक्रिया का हिस्सा बन जाते हैं. कुछ प्रकरणों में बच्चे आत्महत्या या हत्या करने के लिए प्ररित होते हैं.

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बच्चों को यौन व्यवहार और यौन व्यापार का हिस्सा बनाना.

बच्चों के व्यवहार को हिंसक बनाना और दुव्र्यवहार की तरफ धकेलना, जब बच्चे को यौन व्यवहार के जाल में फंसाया जाता है, तब उनके खुद यौन हिंसा में शामिल होने की आशंका बढ़ती है.

उन्हें अपराध की तरफ प्रेरित करना, इंटरनेट कई मर्तबा बच्चों को ऐसे उपभोक्तावादी व्यवहार की तरफ लेकर जाता है, जिनसे उनकी जरूरतें बनावटी रूप से बढ़ती हैं, उन्हें लतें लगती हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए वे अपराध करते हैं.

वयस्कों के द्वारा शोषण, इंटरनेट केवल बच्चों को सीधे प्रभावित नहीं करता है, बल्कि वयस्क खुद ऑनलाइन अश्लील सामग्री का उपयोग करके बच्चों का शोषण करने लगते हैं

क्योंकि बच्चों की आवाजों को अकसर दबा दिया जाता है और उनकी बात सुनी नहीं जाती है.

इंटरनेट काल्पनिक दुनिया का विस्तार करता है, बच्चे उन काल्पनिक दृदृश्यों या सामग्री को अपने जीवन में लागू करने की कोशिश करते हैं. जिनसे उन्हें नुकसान पंहुचता है.

विकसित होते मन और मस्तिष्क पर असर डालते हुए, बच्चों के व्यक्त्वि को प्रभावित करना, वर्तमान समय में 9 साल की उम्र के बच्चे भी 2 से 3 घंटे का समय इंटरनेट पर गुजारते हैं. उन्हें इस दौरान कोई मार्गदर्शन नहीं मिलता है. इंटरनेट अपने आप उन्हें अवांछित सामग्रियों की ओर ले जाता है.

शिक्षा, संबंधों और रचनात्मकता से दूर ले जाना.

असर: इंटरनेट और सूचना तकनीक बाल शोषण के संवाहक बन जाते हैं. इसके दो बहुत सीधे असर होते हैं - पहला, इसमें बच्चों से यौनिक व्यवहार करवाया जाता है. इसमें या तो केवल बच्चे शामिल होते हैं या फिर बच्चों के साथ कोई अन्य व्यक्ति इसमें शामिल होता है. यानी बच्चों के साथ शोषण और दुर्व्यवहार होता है. इसका प्रसारण इंटरनेट या सूचना तकनीक के जरिये होता है. दूसरा, जब इसका प्रसारण होता है, तो अन्य लोग इसे देखते हैं. इससे वे बच्चों का शोषण या बच्चों से यौन दुर्व्यवहार करने के लिए प्रेरित होते हैं. इस मायने में बच्चों के शोषण का दायरा कई गुना बढ़ता जाता है.

पोर्नग्राफी एवं चाइल्ड पोर्नग्राफी

इंटरनेट पर अश्लील सामग्रियों की भरमार है. यहां लिखित, आॅडियो और सबसे ज्यादा वीडियो में अश्लील सामग्रियां मौजूद हैं. भारत सरकार लगातार शिकायतों के बाद इस तरह के वेबसाइट्स पर प्रतिबंध लगाती है, इसके बावजूद इनकी संख्या बहुत ही ज्यादा है. अधिकांश का संचालन विदेशों से होता है. लेकिन हाल के वर्षों में भारत में भी पोर्नग्राफी बढ़ा है. सर्च इंजन के जरिए अधिकांश वेबसाइट तक पहुंचना आसान होता है. ऐसे में इसकी पहुंच बच्चों तक न हो, इसके लिए व्यापक टेक्निकल प्रावधान नहीं है. ऐसे में यह जरूरी है कि इंटरनेट के माध्यम से किए जाने वाले तमाम उपयोगी कामों के बीच बच्चे किसी तरीके से इसकी गिरफ्त में नहीं आए. इसके लिए बच्चों द्वारा सर्च की जाने वाली सामग्रियों पर नजर रखनी चाहिए और इसके लिए जरूरी साॅफ्टवेयर भी मोबाइल एवं कंप्यूटर में इंस्टाॅल करना चाहिए.

इंटरनेट की एक सबसे बड़ी चुनौती चाइल्ड पोर्नग्राफी है. बच्चों का यौन शोषण और विकृत मानसिकता के लिए उनका इंटरनेट के माध्यम से मुनाफे के लिए उपयोग. यह बच्चों के भविष्य को खतरे में डालने वाला कृत्य है. इसे लेकर संसद में बहस भी होती है और न्यायालयों में प्रकरण भी दर्ज हैं. अभी हाल ही में सरकार ने 3000 से ज्यादा पोर्न साइट पर प्रतिबंध लगाया है, इसमें से बहुत सारे चाइल्ड पोर्नग्राफी वाले वेबसाइट थे. यद्यपि इसके बावजूद पोर्नग्राफी एवं चाइल्ड पोर्नग्राफी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना संभव नहीं दिखता. लगातार वेबसाइट का नाम बदलने एवं अधिकांश का विदेशों से संचालन होने के कारण पूरी तरह से इस पर रोक लगा पाना संभव नहीं हो पाता है.

सेक्सटिंग - इंटरनेट का इस्तेमाल करके मोबाइल के जरिये यौन व्यवहार से सम्बंधित सन्देश या फोटो भेजे जाने की प्रक्रिया को सेक्सटिंग कहा जाता है. कई बार सामान्य प्रक्रिया में ही दो लोगों के प्रणय चित्र या रोमेंटिक चित्र और नग्न या अर्धनग्न चित्रों के आने या उन्हें भेजे जाने से यह प्रक्रिया शुरू हो जाती है. बच्चे और किशोरवय में इसकी गंभीरता का अंदाजा नहीं लग पाता है और इसकी गंभीरता बढ़ती जाती है. यह माना जाता है कि हाईस्कूल स्तर के लगभग एक तिहाई बच्चे नग्न तस्वीरों का आदान-प्रदान कर चुके होते हैं. एक स्तर के बाद वे खुद के नग्न या अर्धनग्न चित्रों का आदान-प्रदान करने लगते हैं और खतरा बढ़ता जाता है.पोर्नोग्राफी का व्यापार करने वाले व्यवस्थित ढंग से इस तरह के चित्र जारी करते हैं जो आगे चलकर फारवर्डिंग के जरिये फैलते जाते हैं.

जरा यह ध्यान रखिये कि बच्चे नग्न या अर्धनग्न या यौनिक प्रकृति के सन्देश से तो नहीं जुड़ रहे हैं?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक मुद्दों पर शोधार्थी हैं)

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