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जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और उनकी पत्नी ने साबरमती आश्रम में विजिटर्स बुक में जापानी भाषा और लिपि में अपने अनुभव लिख कर हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर भारत वासियों को नई सीख दी है. जापान की अर्थव्यवस्था अंग्रेजी के इस्तेमाल के बगैर बुलेट ट्रेन की स्पीड से भाग रही है. भारत में मैकाले की शिक्षा व्यवस्था ने रायन जैसे अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षा को बड़े कारोबार में तब्दील कर दिया है. प्रद्युम्न की हत्या के बाद स्कूलों की सुरक्षा के साथ क्या शिक्षण व्यवस्था पर सवालिया निशान नहीं खड़े हो गये?
अंग्रेजी स्कूलों के कारोबारी नेटवर्क में पिसते पैरेंट्स
एनसीईआरटी के आंकड़ों के अनुसार देश में 15 लाख स्कूलों में लगभग 25.94 करोड़ बच्चे पढ़ते हैं. अंग्रेजी माध्यम के 7 फीसदी बड़े स्कूलों में कुल 40 फीसदी बच्चे पढ़ते हैं, जिनके पेरेंट्स डोनेशन, ट्यूशन, कोचिंग के मकड़जाल में चहुमुखी शोषण का शिकार रहते हैं. रायन के 130 स्कूलों में 2.7 लाख छात्र और 18 हजार अध्यापकों से एएफ पिन्टों बड़ा कारोबार चला रहे हैं. शिक्षा के बाजारीकरण से देशभर के पैरेंट्स में निराशा और गुस्सा भरा है जो प्रद्युम्न की हत्या के बाद विरोध प्रदर्शनों से प्रकट हो रहा है.
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अंग्रेजियत में जोर से बच्चों का मौलिक विकास नहीं
देश के अधिकांश घरों में आज भी हिन्दी या देशी भाषाओं (मराठी, गुजराती, बंगाली, पंजाबी, तमिल इत्यादि) में बातचीत होती है. अखिल भारतीय सफलता के लिए सभी नेताओं और न्यूज चैनल्स को हिंदी का ही सहारा लेना पड़ता है. परन्तु सोशल स्टेटस के दौर में पैरेंट्स बड़े बैनर वाले अभिजात्य स्कूलों की भेड़चाल में शामिल हो जाते हैं, जहां पर पसरी अंग्रेजियत की कीमत मासूम बच्चों को चुकानी पड़ती है.
चीन, जापान, फ्रांस जैसे देशों में मातृ-भाषा में शिक्षा
एशिया में चीन और जापान समेत यूरोप के विकसित देशों में बच्चों को मातृ-भाषा में ही पढ़ाया जाता है. दूसरी ओर भारत में मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली युवाओं को क्लर्क बनाने के साथ, समाज में घोर विषमता पैदा कर रही है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उल्लघंन के बावजूद सरकारी सहायता क्यों
संविधान की आठवीं अनुसूची में हिन्दी समेत 22 भाषाओं को संवैधानिक दर्जा मिला है, जिसमें अंग्रेजी शामिल नहीं है. राष्ट्रीय शिक्षा-नीति में भी मातृ-भाषा में पढ़ाई के अलावा त्रिभाषा फार्मूले की बात कही गई है. संविधान तथा शिक्षा-नीति का उल्लघंन करने वाले अंग्रेजी माध्यम के रायन जैसे बड़े कारोबारियों को सरकार द्वारा सस्ती दरों पर जमीन और टैक्स छूट क्यों दी जाती है?
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गांवों में स्कूलों की बदहाली
देश के गांवों में स्थित 84.14 फीसदी स्कूल बदहाली तथा अराजकता का शिकार हैं. इन स्कूलों में अंग्रेजियत की कुंठित ग्रंथि और दुविधा की वजह से गरीब बच्चे अंग्रेजी और मातृभाषा दोनों ही नहीं सीख पाते हैं. नेतागिरी और मिड-डे मील के बंदोबस्त में व्यस्त अधकुचरी अध्यापन व्यवस्था से निकले छात्रों में श्रम के प्रति रुझान खत्म होने के साथ कोई स्किल भी नहीं रहती.
अंग्रेजियत से असफल छात्रों का कैसे हो स्किल डेवलेपमेंट
राष्ट्रीय कौशल विकास निगम की रिपोर्ट के अनुसार अगले पांच वर्षों में 24 महत्वपूर्ण क्षेत्रों में 10.97 करोड़ स्किल्ड युवाओं की जरूरत है. एसपायरिंग माइन्ड्स संस्था की रिपोर्ट के अनुसार देश के 93 फीसदी इंजीनियर नौकरी के लायक नहीं हैं. सवाल यह है कि सर्व-शिक्षा अभियान की भेड़चाल से निकले अकुशल युवा आने वाले डिजिटल इंडिया में रोजगार कैसे हासिल कर पायेंगे?
स्कूलों में अंग्रेजियत से उपजती ब्लू-व्हेल
डोनेशन, महंगी फीस और दिखावे पर ज्यादा खर्च वाले अंग्रेजी स्कूलों में ब्लू-व्हेल जैसे भयानक खेल बच्चों को अपना शिकार बना रहे हैं. पाठ्यक्रम में बदलाव की राजनीति की बजाए यदि मातृभाषा में व्यवसाय परक शिक्षा दी जाये तो छात्रों में रचनात्मक मूल्यों का बेहतर विकास हो सकेगा.
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स्कूली व्यवस्था पर लग रहे हैं सवालिया निशान
कंप्यूटर और इंटरनेट की डिजिटल दुनिया में किताबें आप्रासंगिक हो रहे हैं और अब कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने कंप्यूटर से परीक्षा की व्यवस्था शुरू करके हस्तलेखन पर भी सवालिया निशान खड़े कर दिये हैं? अंग्रेजियत की महंगी शिक्षा व्यवस्था अब युवाओं को बेरोजगारी और डिप्रेशन के दुष्चक्र में धकेल रही है तो क्या अब स्कूलों का भविष्य भी खतरे में है?
सीबीएसई की रटन्त परीक्षा प्रणाली से भारत कैसे बनेगा विश्व गुरु
एनसीईआरटी के पूर्व डायरेक्टर कृष्ण कुमार ने एक अखबार में प्रकाशित अपने लेख में विस्तार से बताया है कि कैसे सीबीएसई द्वारा रटन्त विद्या को बढ़ावा देकर, मौलिक ज्ञान को हतोत्साहित किया जा रहा है. 200 साल पुरानी शिक्षा प्रणाली ने शोध, अनुसंधान, पेटेंट और कानून निर्माण समेत अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों में देश को पिछड़ा बना दिया है. हिंदी पखवारों की औपचारिकता की बजाय पीएम मोदी द्वारा अंग्रेजियत को जापानी नमस्ते कहने का रोड शो यदि हो तो, न्यू इंडिया के साथ विश्व गुरु का विजन भी जल्द साकार हो जाएगा.
(लेखक संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)