बेटियां हैं तो ज़िंदगी है...
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बेटियां हैं तो ज़िंदगी है...

बेटियां हैं तो ज़िंदगी है...

निदा रहमान

बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान, सेल्फ़ी विथ डॉटर कितना अच्छा लगता है ना, सुनने में ये सब. सरकारें करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ना जाने कितनी दफ़ा बेटियों के सम्मान उनकी रक्षा करने की अपील कर चुके हैं लेकिन क्या होता है उनकी अपील का असर बेटियों के दुश्मनों और बेटों की लालचियों पर. 

बेटियों की दुर्दशा का एक वीडियो वायरल हो रहा है. वीडियो पंजाब का है जिसमें एक युवक अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक महिला को बेरहमी से डंडों से पीट रहा है. महिला चीख रही है, रहम की भीख मांग रही है, लोगों से बचाने के लिए चिल्ला रही है लेकिन हैवान बन चुके युवक उसको पीट रहे हैं बुरी तरह. 

दरअसल महिला की जान का दुश्मन बनने वाला कोई गुंडा मवाली नहीं है बल्कि उसका अपना देवर है जो अपनी भाभी को बेटी जनने की सज़ा दे रहा है. महिला का नाम मीना है जिसे उसके पति और ससुराल वालों ने बेटी पैदा करने के जुर्म में घर से बाहर निकाल दिया है. 

हालांकि ये पहला मामला नहीं है कि बेटी पैदा करने के जुर्म में औरतों को घर से निकाला जाता हो या फिर उन्हें प्रताड़ित किया जाता हो. कुछ दिन पहले ही 27 जून को पंजाब के लुधियाना से हैवानियत भरी खबर आई थी. जिसके बाद लोगों के रौंगटे खड़े हो गए थे. 

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यहां सात महीने की गर्भवती महिला को उसके पति और देवर ने केवल इसलिए जान से मार दिया ताकि वह बेटी को जन्म न दे सके. महिला पहले से एक बेटी की मां थी. दूसरी बार गर्भवती होने पर उसके पति ने गर्भ का लिंग परीक्षण कराकर महिला पर गर्भपात कराने का दवाब बनाया था. 

ससुरालवाले नहीं चाहते थे कि घर में एक और बेटी आए इसलिए मंजीत के पति इरविंदर और उसके देवर निर्मल ने मंजीत के हाथ-पैर बांध दिए. इसके बाद दोनों आरोपी मंजीत के पेट को जोर से दबाने लगे जिसके कारण सात महीने का भ्रूण बाहर आ गया. जैसे ही भ्रूण बाहर आया मंजीत की मौत हो गई. 

बेटी की चाह में इंसान इस क़दर अंधा हो जाता है कि वो तमाम सीमाएं तोड़ देता है, उसे किसी बात की परवाह नहीं रहती है. वंश चलाने के लिए बेटों के ख्वाहिश बेटियों की ज़िंदगी पर भारी पड़ जाती है. 

हिंदुस्तान की बेटियों भले विश्व में अपने नाम का परचम फैला रही हो लेकिन बेटों के लिए अंधे लोगों को ये कुछ नज़र नहीं आता है. सानिया मिर्ज़ा, सायना नेहवाल, गीता, बबीता फोगट हो या फिर महिला क्रिकेट को पहचान दिलाने वाली मिताली राज बेटियों कामयाबी के नए मुकाम हासिल कर रही हैं.

राजनीति,खेल, उद्योग से लेकर इंटरटेनमेंट की दुनिया में भारत की बेटियां देश का नाम रौशन कर रही हैं लेकिन बेटों की चाह में कन्या भ्रूण हत्याएं लगातार जारी हैं. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद देश के कोने-कोने में अवैध रूप से लिंग परीक्षण होता है. 

जब तक ये मानसिकता नहीं बदलती है कि बेटे ही वंश को आगे बढाते हैं इस तरह की घटनाएं सामने आती रहेंगी. बेटी पराया धन है, एक दिन उसे अपने घर चले जाना है ये वो बातें हैं जो बेटों की चाह को और ज्यादा मज़बूत करती हैं. 

गर्भ से लेकर बेटियां समाज में भी सुरक्षित नहीं हैं, वो लगातार संघर्ष करती हैं. लड़की जन्म लेने के लिए संघर्ष करती है, अगर पैदा हो गई तो फिर परिवार में उसका संघर्ष शुरु होता है. वो समाज में बराबरी के लिए लड़ाई लड़ती है. 

कानून के डंडे से हर गलत काम को नहीं रोका जा सकता है. ना ही कोई अपील तब तक असर करेगी जब तक मानसिकता और सोच नहीं बदलती है. तो सोच बदलिए कि बेटियां बोझ हैं, वो शर्म की वजह नहीं बनती है. बेटियां आपको गौरांवित कराती है, बेटियां घर संवारती हैं, बेटियां खुशियां है, बेटियां हैं तो ज़िंदगियां हैं. 

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)

 

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