कुलभूषण जाधव पर पाकिस्तानी नाटक के मायने
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कुलभूषण जाधव पर पाकिस्तानी नाटक के मायने

कुलभूषण जाधव पर पाकिस्तानी नाटक के मायने

पाकिस्तानी जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव से उनकी मां और पत्नी को मिलने देने की इजाजत देना पाकिस्तान की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. पाकिस्तान के निर्माता मुहम्मद अली जिन्ना के जन्मदिन के अवसर पर दिखाई गई उदारता एक सुनियोजित पटकथा का हिस्सा है. पाकिस्तान भले ही इसे मानवतावादी कदम बताए, मगर यह उसकी कुटिलतापूर्ण रणनीति का अंग है. अगर वह मानवता से प्रेरित होता, तो निम्न कदम नहीं उठाता-:

1. कुलभूषण जाधव से उसकी मां और उसकी पत्नी को शीशे के आर-पार मिलाना एक दिखावटी कदम है. 22 महीने बाद मिलने वाले मां-बेटे क्या एक दूसरे को स्पर्श नहीं करते? क्या बेटा अपनी मां का पैर छूकर उसका आशीर्वाद नहीं लेता?

2. बातचीत के दौरान कैमरा रखना दोनों को सहज ढंग से बात न करने देने के लिए पर्याप्त था. कैमरा के कारण वे आपस में दिल खोलकर बात नहीं कर सकते थे. जाहिर है उनकी बातचीत अधूरी ही रह गई होगी. कोई नहीं जानता कि पाकिस्तान जैसा देश उसमें से भी किसी बात को तोड़-मरोड़कर जाधव के खिलाफ पेश करने लगे, हालांकि उसकी मां अवंती ने उस पर सवाल खड़ा कर दिया है.

3. जाधव की मां को अंग्रेजी नहीं आती थी, वह अपनी मातृभाषा मराठी में सहज थीं. लेकिन उन्हें अपने बेटे से मराठी में बातचीत नहीं करने दी गई. ऐसा पाकिस्तानी अधिकारी उनकी बातचीत पर नजर रखने के लिए कर रहे थे. मानवता का तकाजा था कि उन्हें अपने मन की बात करने देते. दो व्यक्तियों की मुलाकात को एक देश द्वारा इस तरह नियंत्रित करना मानवता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता.

4. यह अत्यंत शर्मनाक है कि जाधव की मां और पत्नी के मंगलसूत्र, चुड़ी और बिन्दी उतरवा लिया गया. एक सभ्य राष्ट्र इस तरह का आचरण नहीं कर सकता, लेकिन सुरक्षा का हवाला देकर पाकिस्तान अपने औचित्य को सही ठहराने से बाज नहीं आया. इस क्रम में वह हिन्दू परंपरा और संस्कृति को भी भूल गया.

5. पाकिस्तान ने जाधव की पत्नी की जूती भी उतरवा ली. यही नहीं, उसे फॉरेंसिक जांच के लिए भेज दिया हैं. उसका कहना है कि इसमें कोई संदिग्ध उपकरण लगा हुआ है. भारत को बदनाम करने के लिए वह एक और हथकंडा की तलाश में है. कोई आश्चर्य नहीं कि वह जाधव की पत्नी को भी किसी मामले में फंसा दे. ऐसे में पाकिस्तान पर कौन विश्वास करेगा, जो अतिथि सत्कार करना भी नहीं जानता?

6. जाधव की मां और पत्नी को बहुत कुटिलतापूर्ण तरीके से पाकिस्तानी मीडिया के हवाले कर दिया, जबकि दोनों देशों के बीच तय शर्तों के मुताबिक ऐसा नहीं करना था. पाकिस्तानी मीडिया की अभद्र टिप्पणियां पेशेवर तौर-तरीका नहीं था.

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ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि भारत के सत्ता प्रतिष्ठान को पाकिस्तान की कुटिल हरकतों का अंदाजा नहीं होगा. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि भारत को जाधव की मां और पत्नी को वहां नहीं भेजना चाहिए था. फिर भी भारत ने ऐसा किया, तो उसकी मंशा बिल्कुल साफ थी. चूंकि जाधव के साथ भारतीय समाज का भावनात्मक लगाव है, इसलिए सरकार को उस जनभावना को ध्यान में रखकर ऐसा करना लाजिमी था. यह राजनयिक नफा-नुकसान से नहीं, बल्कि मानवता से प्रेरित फैसला था. लेकिन पाकिस्तान ने मुलाकात के लिए तय की गई शर्तों का अनुपालन नहीं किया, यह आपसी समझदारी की भावना के खिलाफ था. साफ है कि उसने न केवल मानवता का उल्लंघन किया, बल्कि राजनयिक शिष्टाचार का भी अनुपालन नहीं किया. ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि पाकिस्तान ने यह सब क्यों किया?

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पाकिस्तान की रणनीति
कुलभूषण जाधव से उसके परिजनों की मुलाकात भारत-पाक रिश्तों में सुधार की दिशा में एक कदम हो सकता था, लेकिन उसने मानवता की आड़ में कुटिलतापूर्ण राजनीति करके इस अवसर को गंवा दिया. ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तान सरकार भारत से रिश्ते बेहतर बनाने की बजाय एक साथ दो लक्ष्यों को साधना चाहती थी- एक घरेलू मोर्चे पर और दूसरा अंतर्राष्ट्रीय. जब जाधव पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला आया था, तब देश के भीतर पाकिस्तान सरकार की काफी किरकिरी हुई थी. इसलिए पाकिस्तानी समाज के भीतर अपनी छवि बेहतर बनाने के लिए उसने ऐसा कदम उठाया. यही कारण था कि प्रायोजित मीडिया को भी जाधव की मां और पत्नी के पीछे लगा दिया. यह पाकिस्तान के उस कट्टरपंथी समाज को तुष्ट करने के लिए था, जो घोर भारत विरोधी है. 

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इस मुलाकात को उदारता को उदाहरण के रूप में पेश करते हुए उसने इसे कश्मीर में फैली अशांति से जोड़कर अपना इरादा साफ कर दिया. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंक का निर्यातक देश पाकिस्तान भारत को बदनाम करने के लिए जाधव को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा था. पाकिस्तान यह दिखाने की कोशिश कर रहा था कि वह आतंक पीड़ित है और भारत उसके खिलाफ आतंकी गतिविधि में लगा हुआ है. लेकिन पाकिस्तान का दांव उल्टा पड़ने वाला है. यह सबको पता है कि जाधव जासूसी और आतंकी गतिविधि में लिप्त नहीं था, उसे पाकिस्तानी एजेंसियों ने अवैध तरीके से बंदी बनाया है. पाकिस्तानी सैन्य अदालत द्वारा जाधव को मृत्यु दंड की सजा सुनाने में अंतर्राष्ट्रीय कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का अनुपालन नहीं किया गया है. 

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जाधव को न्यायालय में अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं मिला. अगर पाकिस्तान इस मसले के प्रति इतना ईमानदार है, तो भारत के किसी राजनयिक को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के आदेश के बावजूद जाधव से मिलने क्यों नहीं दिया? जाधव की मां और पत्नी के साथ गए भारतीय उप उच्चायुक्त जेपी सिंह को पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जाधव को राजनयिक मदद के रूप में पेश कर सकता है, जैसा कि उसके विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ के बयान से लगता है. लेकिन खुद उसका विदेश मंत्रालय इस मुलाकात को राजनयिक पहुंच नहीं बताता. कहीं ऐसा तो नहीं कि विदेश मंत्री अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को संबोधित कर रहे हों और विदेश मंत्रालय पाकिस्तानी समाज को? 

वस्तुस्थिति यह है कि पाकिस्तान ने वियना कन्वेंशन के हिसाब से अभी तक किसी भारतीय राजनयिक को जाधव से मिलने नहीं दिया है. इससे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में उसकी स्थिति कमजोर होगी. जनवरी में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में इस पर सुनवाई होने वाली है, जिसने अपने अंतरिम आदेश में जाधव की मृत्यु दंड पर रोक लगा दी है.

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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