वर्ल्ड फेमस है मैसूर का शाही दशहरा, राम की नहीं मां चामुंडेश्वरी की होती है पूजा
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वर्ल्ड फेमस है मैसूर का शाही दशहरा, राम की नहीं मां चामुंडेश्वरी की होती है पूजा

कोलकाता की दुर्गा पूजा देश के साथ ही विदेश में भी मशहूर है. इसी तरह मैसूर का दशहरा अपने शाही अंदाज के लिए जाना जाता है. 

(फोटो साभार- @Twitter)

नई दिल्ली: शक्ति की पूजा और अर्चना करने के नौ दिन यानि कि नवरात्रि का त्योहार शुरू हो गया है. शारदीय नवरात्र से पूरे देश में फेस्टिव सीजन की शुरुआत हो जाती है. कोलकाता की दुर्गा पूजा देश के साथ ही विदेश में भी मशहूर है. इसी तरह मैसूर का दशहरा अपने शाही अंदाज के लिए जाना जाता है. इस दिन तक चलने वाले इस त्योहार को देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से यहां आते हैं. मैसूर शहर अपने खानपान और खूबसूरती के लिए जाना जाता है. इस शहर में दशहरा पर्व के आयोजन की परंपरा शुरू हुए 500 साल बीत गए हैं. राज परिवार द्वारा शुरू की गई इस प्रथा को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब राज्य सरकार ने ले ली है. 

दशहरा देवी चामुंडा को समर्पित 
पूरा देश जहां दशहरा पर राम की रावण पर विजय का पर्व मना रहा होता है. वहीं मैसूर में दशहरा मां चामुंडा द्वारा राक्षस महिसासुर का वध करने पर मनाया जाने वाला पर्व है. 23 साल के यदुवीर राज कृष्णदत्ता चमराजा वाडेयार ने पहली बार मैसूर पैलेस में शाही दरबार लगाकर यदुवंशी वाडेयार राजघराने के अपने पुरखों की 500 साल पुरानी विरासत को शाही अंदाज में आगे बढ़ाया. श्रीकांतदत्ता नर्सिम्हाराजा वाडेयार की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी महारानी प्रमोदा देवी ने यदुवीर को गोद लेकर वाडेयार शाही परिवार की बागडोर थमाई. मैसूर में दशहरे के समय खूब रौनक लगती है. यहां 10 दिनों तक बहुत से सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं. साथ ही फूड मेला, वुमेन दशहरा जैसे कार्यक्रम भी होते हैं.

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हाथियों पर निकलता है जुलूस 
विजयदशमी के दिन मैसूर की सड़कों पर जुलूस निकलता है. इस जुलूस की खासियत यह होती है कि इसमें सजे-धजे हाथी के ऊपर एक हौदे में चामुंडेश्वरी माता की मूर्ति रखी जाती है. सबसे पहले इस मूर्ति की पूजा मैसूर के रॉयल कपल करते हैं उसके बाद इसका जुलूस निकाला जाता है. यह मूर्ति सोने की बनी होती है साथ ही हौदा भी सोने का ही होता है. इस जुलूस के साथ म्यूजिक बैंड, डांस ग्रुप, आर्मड फोर्सेज, हाथी, घोड़े और ऊंट चलते हैं. यह जुलूस मैसूर महल से शुरू होकर बनीमन्टप पर खत्म होती है. वहां लोग बनी के पेड़ की पूजा करते हैं. माना जाता है कि पांडव अपने एक साल के गुप्तवास के दौरान अपने हथियार इस पेड़ के पीछे छुपाते थे और कोई भी युद्ध करने से पहले इस पेड़ की पूजा करते थे. इस मौके पर मैसूर महल के सामने एक प्रदर्शनी भी लगती है. दशहरा से शुरू होकर यह दिसंबर तक चलती है. 

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10 अक्टूबर से शुरू हुआ आयोजन 
हर साल चीफ गेस्ट के साथ मुख्यमंत्री माता चामुंडेश्वरील की पूजा करते हैं. इस साल दशहरा कमेटी ने फेस्टिवल को भव्य बनाने के लिए नई-नई चीजें सोची हैं. इस साल मैसूर महल को लगभग 97,000 बल्ब से सजाया जाएगा. नवरात्रि के आखिरी दिन हाथियों को सोने-चांदी के गहनों से सजाया जाता है. दस दिवसीय महोत्सव का समापन समारोह 19 अक्टूबर को जम्बो सवारी के साथ होगा.  विजयादशमी के दिन दोपहर में नदी ध्वज की पूजा होती है. दस दिवसीय महोत्सव के दौरान कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे. वहीं पुष्प प्रदर्शनी में इस बार नई दिल्ली के ‘लोटस टैंपल’ की प्रतिकृति पर्यटकों को आकर्षित करेगी. महोत्सव के दौरान पूरे देश के व्यंजनों का स्वाद भी चखा जा सकेगा.

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