सेना में ट्रांसजेंडरों की भर्ती पर पाबंदी लगाने की दिशा में बढ़ा अमेरिका
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सेना में ट्रांसजेंडरों की भर्ती पर पाबंदी लगाने की दिशा में बढ़ा अमेरिका

बीते जुलाई में ट्रंप ने तीन ट्वीट कर कहा था कि सेना में समलैंगिक व्यक्ति किसी भी पद पर सेवा नहीं दे सकेंगे.

अमेरिकी सेना के जवान. (फाइल फोटो)

वॉशिंगटन: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने संघीय अदालत से अनुरोध किया है कि वह पेंटागन द्वारा समलैंगिकों की भर्ती शुरू करने पर अगले वर्ष से रोक लगा दे. बीते जुलाई में ट्रंप ने तीन ट्वीट कर कहा था कि सेना में समलैंगिक व्यक्ति किसी भी पद पर सेवा नहीं दे सकेंगे. उसके बाद से इस दिशा में कई कानूनी कदम उठाए गए हैं. न्याय विभाग की ओर से बुधवार (6 दिसंबर) को भी इस बाबत एक कदम उठाया गया. उन ट्वीटों के बाद व्हाइट हाउस की ओर से औपचारिक ज्ञापन दिया गया, जिसके चलते विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए सेना के कई सदस्यों और अधिकार समूहों ने इसे कानूनी चुनौती दी.

उसके बाद दो संघीय अदालतों ने ट्रंप के प्रतिबंध पर अस्थायी रोक लगा दी. अब पेंटागन को एक जनवरी से समलैंगिक आवेदनकर्ताओं की भर्ती शुरू करनी है. सरकार अदालत के माध्यम से इसे आंशिक तौर पर टालना चाहती है ताकि पेंटागन तय तारीख से समलैंगिक भर्तियां शुरू ना करे. ओबामा प्रशासन ने पिछले वर्ष एक नई नीति की घोषणा की थी जिसके तहत पेंटागन को समलैंगिक आवेदनकर्ताओं को एक जुलाई 2017 से स्वीकार करना शुरू करना था हालांकि इसमें भी छह माह की देरी हो गई क्योंकि रक्षा मंत्री जिम मैटिस को इस मामले का अवलोकन करना था.

इससे पहले अमेरिका के एक संघीय न्यायाधीश ने सेना में किन्नरों की भर्ती प्रतिबंधित करने के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रयास पर अस्थायी रोक लगा दी थी. बीते 30 अक्टूबर को जिला न्यायाधीश कोलीन कोलर-कोटेली ने ट्रंप द्वारा जारी उस ज्ञापन को खारिज कर दिया था, जिसमें ओबामा प्रशासन की नीति में बदलाव की बात कही गई थी. यह मामला अगस्त में अनाम याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किया गया था.

न्यायाधीश याचिकाकर्ताओं के इस बात से सहमत हुईं कि राष्ट्रति के निर्देश "वास्तव में सेना पर संभावित प्रभाव या बजट की समस्या पर आधारित नहीं थे, बल्कि किन्नरों को स्वीकार नहीं करने की इच्छा से प्रेरित थे." उन्होंने आगे कहा कि जुलाई में किन्नरों पर प्रतिबंध लगाने के राष्ट्रपति के निर्देश किसी भी लिहाज से समर्थनयोग्य नहीं मालूम पड़ते हैं और सेना ने भी इसे खारिज कर दिया था. न्यायाधीश ने आगे कहा कि अदालत के पास कोई आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि किसी भी याचिकाकर्ता ने इस बात के प्रमाण नहीं दिए हैं कि मूल रूप से इस प्रतिबंध का उन पर असर पड़ेगा. 

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