पुराने जमाने में बिना बल्ब के जलती थीं गाड़ी की हेडलाइट्स, आज भी चौंका देती है गजब की ये ट्रिक
Advertisement
trendingNow12503224

पुराने जमाने में बिना बल्ब के जलती थीं गाड़ी की हेडलाइट्स, आज भी चौंका देती है गजब की ये ट्रिक

Car Tips: हेडलाइट्स में कैल्शियम कार्बाइड और पानी की प्रतिक्रिया से एसिटिलीन गैस उत्पन्न की जाती थी. जब यह गैस जलती थी, तो यह सफेद और चमकदार रोशनी देती थी.

पुराने जमाने में बिना बल्ब के जलती थीं गाड़ी की हेडलाइट्स, आज भी चौंका देती है गजब की ये ट्रिक

Car Tips: पुराने जमाने में गाड़ियों की हेडलाइट्स में एसिटिलीन गैस का उपयोग किया जाता था. उस समय कारों में आज की तरह इलेक्ट्रिक बल्ब नहीं होते थे, इसलिए एसिटिलीन गैस का उपयोग करके हेडलाइट्स को जलाया जाता था. 

कैसे जलाई जाती थी गैस हेडलाइट

हेडलाइट्स में कैल्शियम कार्बाइड और पानी की प्रतिक्रिया से एसिटिलीन गैस उत्पन्न की जाती थी. जब यह गैस जलती थी, तो यह सफेद और चमकदार रोशनी देती थी, जो रात के समय सड़क को देखने में मदद करती थी। इस तरह की हेडलाइट्स को कार्बाइड लैंप कहा जाता था, और इनका उपयोग 20वीं सदी की शुरुआत में काफी लोकप्रिय था, विशेषकर कारों, साइकिलों, और बाहरी रोशनी के लिए. बाद में, इलेक्ट्रिक बल्ब और बैटरी-चालित हेडलाइट्स के आविष्कार के साथ एसिटिलीन लैंप का उपयोग कम हो गया, क्योंकि नई तकनीक ज्यादा सुरक्षित और प्रभावी साबित हुई.

एसिटिलीन गैस हेडलाइट्स, जिन्हें कार्बाइड लैंप भी कहा जाता है, एक सरल रासायनिक प्रक्रिया के जरिए काम करती थीं. इन लैंपों में कैल्शियम कार्बाइड और पानी का उपयोग करके एसिटिलीन गैस उत्पन्न की जाती थी, जो जलकर तेज सफेद रोशनी देती थी. इस प्रक्रिया को समझने के लिए आइए देखें कैसे ये लैंप काम करते थे:

एसिटिलीन गैस हेडलाइट की कार्यप्रणाली:

कैल्शियम कार्बाइड और पानी: हेडलाइट के एक हिस्से में कैल्शियम कार्बाइड रखी जाती थी, और दूसरे हिस्से में पानी.

रासायनिक प्रतिक्रिया: जब पानी को धीरे-धीरे कैल्शियम कार्बाइड पर गिराया जाता था, तो एक रासायनिक प्रतिक्रिया होती थी, जिससे एसिटिलीन गैस उत्पन्न होती थी.

गैस का जलना: एसिटिलीन गैस लैंप के सामने वाले हिस्से में एक नोजल या छोटे छेद के माध्यम से बाहर निकलती थी, जहाँ इसे जलाया जाता था. जलने पर एसिटिलीन गैस तेज और सफेद चमकदार रोशनी उत्पन्न करती थी, जिससे सड़क पर रोशनी पड़ती थी.

गैस की नियंत्रित आपूर्ति: लैंप के डिज़ाइन में पानी की बूंदों की आपूर्ति को नियंत्रित करने की व्यवस्था होती थी ताकि एसिटिलीन गैस की मात्रा नियमित रहे. इससे लाइट की चमक को भी नियंत्रित किया जा सकता था.

विशेषताएं और उपयोग

रोशनी का रंग: एसिटिलीन जलने पर तेज सफेद रोशनी देता है, जो सड़क को साफ़-साफ़ देखने में सहायक थी.

सुरक्षा: हालांकि ये लैंप रोशनी के लिए उपयोगी थे, लेकिन एसिटिलीन गैस अत्यधिक ज्वलनशील होती है, इसलिए इन्हें संभालने में सावधानी की आवश्यकता होती थी.

आसान लेकिन अस्थायी: ये लैंप स्थायी नहीं होते थे और बार-बार कैल्शियम कार्बाइड भरना पड़ता था, इसलिए इनकी जगह बिजली और बैटरी से चलने वाली हेडलाइट्स ने ले ली.

20वीं सदी की शुरुआत में, इलेक्ट्रिक बल्ब की तकनीक आने के बाद कार्बाइड लैंप का चलन धीरे-धीरे खत्म हो गया.

Trending news