मुंबई: भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में बड़ी राशि की जमाओं तथा अल्पकालिक कर्ज के लिये ब्याज दरों को रिजर्व बैंक की रेपो दर से जोड़ने के फैसले के एक दिन बाद बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा कि एक लाख रुपये से कम के ऋण और जमा धन पर ब्याज कोष की सीमांत लागत आधारित दर (एमसीएलआर) से ही जुड़ा रहेगा ताकि खुदरा ग्राहकों को बाजार की अनिश्चितताओं से बचाया जा सके. बैंक ने शुक्रवार को कहा था कि वह एक लाख रुपये से अधिक के जमा खातों और सभी नकद ऋण खातों और ओवरड्राफ्ट या एक लाख रुपये से ऊपर के अल्पकालिक कर्ज को रेपो दर से जोड़ेगा. वर्तमान में रिजर्व बैंक की रेपो दर 6.25 प्रतिशत है. नई दरें एक मई से लागू होंगी. रिजर्व बैंक ने यह व्यवस्था पहली बार लागू की है. 


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वर्तमान में कोटक महिंद्रा बैंक , यस बैंक , आरबीएल बैंक और डीबीएस बैंक ग्राहकों को बचत खाते पर 5-6 प्रतिशत तक का ब्याज देता है जबकि एसबीआई समेत अन्य सार्वजनिक बैंक और एचडीएफसी बैंक , आईसीआईसीआई बैंक और अन्य निजी बैंक 4 प्रतिशत का ब्याज देते हैं. बैंक ने कहा कि वह बचत बैंक खातों में एक लाख रुपये से अधिक की जमा पर ब्याज को रेपो दर से जोड़ेगा. पहली मई से ऐसे खातों में एक लाख रूपये से अधिक की जमा पर 3.5 प्रतिशत की दर से ब्याज देगा जो वर्तमान रेपो दर से 2.75 प्रतिशत कम होगी. बैंक ने सभी नकद ऋण खातों और एक लाख रुपये से अधिक की ओवरड्राफ्ट सीमा वाले खातों को भी रेपो दर से जोड़ दिया है. उन पर ब्याज रेपो से 2.25 प्रतिशत ऊंची रहेगी. 



इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में संवाददाताओं से अलग से बातचीत में सेबी प्रमुख कुमार ने बताया , " हमने जिस श्रेणी (के रिण को) को बाहरी मानक (रेपो) से जोड़ा है , वह सबसे अच्छी श्रेणी है. एक लाख रुपये और उससे कम के खातों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है क्योंकि हमारा मानना है कि खुदरा ग्राहकों को बाजार के उतार - चढ़ाव से जूझने को मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. " 


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उन्होंने कहा कि दु्निया भर में कहीं भी खुदरा ऋण को सिर्फ बाजार कारकों पर नहीं छोड़ा जाता है और ज्यादातर कॉरपोरेट खातों की कीमत (ब्याज) ही बाजार पर छोड़ी जाती है. कुमार ने कहा कि एसबीआई के खुदरा ऋणों का मूल्य (ब्याजत) निर्धारण एमसीएलआर के अनुसार है और यह प्रणाली अच्छी तरह से काम कर रही है और यह व्यवस्था आगे भी बनी रहेगी. उन्होंने कहा , " फिलहाल खुदरा ऋण एमसीएलआर से जुड़ा रहेगा. यदि ऋण दीर्घकालिक हो तो आप बार - बार इसका मूल्य - निर्धारण नहीं कर सकते है ... ऐसे में एमसीएलआर एक बेहतर समाधान है.


उन्होंने कहा कि रेपो रेट में बदलाव पर एमसीएलआर स्वत: समायोजित होगा लेकिन उन्होंने कहा कि रेपो में 0.25 प्रतिशत की कमी होने पर एमसीएलआर 0.25 कम नहीं होगा. यह कमी इस बात पर निर्भर करेगी कि हमारे बजत बैंक का कितने हिस्से की ब्याज दर बलती है और उसका एमसीएलआर पर कितना प्रभाव पड़ता है. उसके अनुपात में ही एमसीएलआर में भी संशोधन किया जाएगा.