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नई दिल्ली: अगर आपके पास कोई वाहन है तो आपने देखा होगा कि एक वक्त के बाद उसके टायर खराब हो जाते हैं, जिन्हें बदलवाना पड़ता है. लेकिन कभी आपके मन में आता होगा कि पुराने टायरों का क्या होता है. आपको बता दें, पुराने टायरों से जुड़ी सरकार की एक पॉलिसी होती है. सरकार ने हाल ही में इसमें कुछ बदलाव किए हैं, आइए बताते हैं.
National Green Tribunal (NGT) मामले के लिए उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत हर साल लगभग 275,000 टायरों को बेकार छोड़ देता है, लेकिन उनके निपटान लिए व्यापक योजना नहीं है. इसके अलावा, लगभग 30 लाख बेकार टायर रीसाइक्लिंग के लिए आयात किए जाते हैं. एनजीटी ने 19 सितंबर, 2019 को एंड-ऑफ-लाइफ टायर्स/वेस्ट टायर्स (ELT) के उचित प्रबंधन से संबंधित एक मामले में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को व्यापक कचरा प्रबंधन करने और बेकार टायरों और उनके पुनर्चक्रण की योजना पेश करने का निर्देश दिया था.
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अपशिष्ट टायरों को फिर से प्राप्त रबर, क्रम्ब रबर, क्रम्ब रबर संशोधित बिटुमेन (CRMB), बरामद कार्बन ब्लैक, और पायरोलिसिस तेल/चार के रूप में फिर से नया किया जाता है. 2019 की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एनजीटी मामले में याचिकाकर्ता ने कहा था कि भारत में पायरोलिसिस उद्योग निम्न गुणवत्ता वाले उत्पादों का उत्पादन करता है जिन्हें पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए प्रतिबंधित करने की आवश्यकता होती है और यह उद्योग अत्यधिक कार्सिनोजेनिक/कैंसर पैदा करने वाले प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है, जो हमारे श्वसन तंत्र के लिए हानिकारक है.
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नई गाइडलाइन में 2022-23 के लिए EPR दायित्व का उल्लेख है, क्योंकि 2020-21 में निर्मित/आयात किए गए नए टायरों की मात्रा का 35 प्रतिशत, 2023-24 का ईपीआर दायित्व देश में निर्मित/आयात किए गए नए टायरों की मात्रा का 70 प्रतिशत होगा. 2021-22 और 2024-25 का ईपीआर दायित्व 2022-23 में निर्मित/आयातित नए टायरों की मात्रा का 100 प्रतिशत होगा.
(इनपुट- IANS)