Lok Sabha Chunav 2024 News: केंद्र में लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए जुटी भाजपा के लिए महाराष्ट्र सबसे मुश्किल चुनौती पेश कर रहा है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा, शिवसेना शिंदे और एनसीपी अजित पवार की महायुति के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर तीनों दलों असमंजस में दिख रहे हैं. 


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भाजपा की नई पॉलिटिकल इंजीनियरिंग और सीट बंटवारे की मुश्किल


राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, महाराष्ट्र में भाजपा की नई पॉलिटिकल इंजीनियरिंग सीट बंटवारे के बाद भी मुश्किलें बढ़ाने वाली हैं. क्योंकि भले ही राज्यों की पार्टियां भाजपा के लिए अक्सर अपने कदम बढ़ाती रही हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव 2014 में नरेंद्र मोदी के उदय के बाद नई और आक्रामक भाजपा राज्यों में अपने सहयोगियों के साथ दूसरे नंबर की भूमिका निभाने के मूड में नहीं थी.


इस लोकसभा चुनाव में 48 सीटों वाले महाराष्ट्र पर सबसे ज्यादा निगाहें


चौतरफा राजनीतिक अराजकता के साथ 48 सीटों वाला महाराष्ट्र इस लोकसभा चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा देखे जाने वाले राज्यों में से एक के रूप में उभर रहा है. पिछले दो चुनावों में राज्य में भाजपा और शिवसेना का पूरा दबदबा देखने को मिला. दोनों पार्टियों ने 2014 में मिलकर 48 प्रतिशत वोट हासिल किए और 2019 में आधे से ज्यादा का आंकड़ा पार कर लिया.


महाराष्ट्र में 1995 में भगवा गठबंधन ने चखा सत्ता का शुरुआती स्वाद 


भाजपा-शिवसेना का यह वर्चस्व महाराष्ट्र में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के ढांचे को बदल सकता था, लेकिन लोकसभा चुनाव की जीत ने दोनों पार्टियों की राज्य-स्तरीय महत्वाकांक्षाएं भी सतह पर ला दीं. 1995 में राज्य में सत्ता का शुरुआती स्वाद चखने के बाद भाजपा और शिवसेना दोनों इस बात से दुखी थे कि 1999 के बाद महाराष्ट्र विधानसभा में सत्ता उनके हाथ से निकल गई.


लगातार दो बड़ी जीत से भाजपा-शिवसेना की महात्वाकांक्षाओं में टकराव


लोकसभा चुनाव 2014 और फिर लोकसभा चुनाव 2019 में जब जीत का मौका आया, तो दोनों पार्टियां चाहती थीं एक-दूसरे की कीमत पर इस अवसर को भुनाएं. दूसरी ओर, दोनों संसदीय चुनावों में अपने प्रदर्शन में नाटकीय सुधार ने शिवसेना को भरोसा दिला दिया कि वह भाजपा को हावी होने देने के बजाय आगे बढ़कर महाराष्ट्र का नेतृत्व करने की हकदार है.


लोकसभा चुनाव 2014 की जीत के बाद से भाजपा और शिवसेना असहज


भाजपा और शिवसेना के 2019 के ब्रेक-अप ने भले ही ज्यादा सुर्खियां बटोरीं, लेकिन लोकसभा चुनाव 2014 की जीत के बाद से दोनों पार्टियां कभी भी एक-दूसरे के साथ सहज नहीं रहीं. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2014 में दोनों अलग हो गए. हालांकि, चुनाव के बाद उन्होंने फिर समझौता कर लिया. इस तरह, 2014 में महाराष्ट्र की राजनीति में मुख्य खिलाड़ी के रूप में भाजपा के अचानक उदय के साथ ही प्रतिस्पर्धी राजनीति के ढांचे में हलचल तेज हो गई.


2019 के बाद "स्मार्ट राजनीति" के चलते भाजपा-शिवसेना में ब्रेक-अप


यह प्रक्रिया 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद भी जारी रही. "स्मार्ट राजनीति" के चलते विभाजन हुआ. शिवसेना और एनसीपी ने देवेंद्र फड़णवीस और भाजपा को वापसी करने में मदद की. इस तरह, 2019 के बाद के सियासी घटनाक्रम और इससे भी अधिक शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन या महा विकास आघाड़ी सरकार के गिरने के बाद के वाकए चल रही प्रक्रिया का ही एक हिस्सा थे.


महाराष्ट्र में शासन कर रही "महायुति" के पीछे भाजपा ही असली ताकत 


सवाल यह है कि इन राजनीतिक घटनाक्रमों ने राज्य में एकमात्र प्रमुख पार्टी बनने की भाजपा की कोशिश को कैसे प्रभावित किया है? 2022-23 की तथाकथित राजनीतिक साजिशों के बाद भी भाजपा को मुख्यमंत्री पद नहीं मिल सका है. लेकिन इसके समर्थकों को इस तथ्य से संतुष्टि हो सकती है कि भाजपा वर्तमान में महाराष्ट्र में शासन कर रही "महायुति" के पीछे असली ताकत थी और बनी हुई है. इसमें कोई शक नहीं कि एक डिप्टी सीएम असल में सुपर सीएम जैसा है. 


एनसीपी और शिवसेना के दोनों गुट कमजोर होने से भाजपा को फायदा


भाजपा के लिए दूसरा फायदा यह हुआ है कि राज्य स्तर के दो मजबूत खिलाड़ियों में विभाजन के साथ, अब उसके लिए जीतने के लिए राजनीतिक जगह अधिक आसानी से तैयार हो गई है. विभाजन के बाद, एनसीपी और शिवसेना के दोनों गुट कमजोर हो गए हैं. मूल पार्टी के दूसरे गुट से आगे निकलने की प्रतिद्वंद्विता में और अधिक उलझ गए हैं. अब दोनों ही भाजपा के लिए खतरा पैदा करने में असमर्थ हैं.


लोकसभा चुनाव में भाजपा की ज्यादा मदद नहीं कर रही सियासी चतुराई 


एक तरह से, यह राज्य स्तर के खिलाड़ियों द्वारा आयोजित सभी राजनीतिक स्थानों पर कब्जा करने के भाजपा के सियासी मकसद के साथ अच्छी तरह से फिट बैठता है. और फिर भी, यह तथाकथित राजनीतिक चतुराई मौजूदा लोकसभा चुनाव में भाजपा की ज्यादा मदद नहीं कर सकती. पहले से ही राज्य सरकार के भीतर, भाजपा को सीमित हिस्सेदारी के साथ संतोष करना पड़ता है.


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भाजपा के कई वफादार और पुराने उम्मीदवारों के निराश होने का जोखिम


महाराष्ट्र की सत्ता में हिस्सेदारी के लिए भाजपा को मंत्री पद के अपने कई उम्मीदवारों को मंत्रिपरिषद से बाहर रखने के लिए मजबूर होना पड़ता है. अब, दो साझेदारों से निपटने के साथ भाजपा को अपने कई वफादार और पुराने उम्मीदवारों को निराश करने का जोखिम भी उठाना पड़ रहा है, जो दिल्ली तक पहुंचने के लिए मोदी की लोकप्रियता पर सवार होना चाहते हैं. महायुति के भीतर सीट बंटवारे की बेहद जटिल प्रक्रिया चल रही है.


भाजपा के राष्ट्रव्यापी गेम प्लान में क्यों महत्वपूर्ण बना महाराष्ट्र?


अबकी बार 400 पार या अकेले 370 सीटें जीतने का लक्ष्य रखने वाली भाजपा महाराष्ट्र में पिछली बार से पांच सीटें ज्यादा यानी अधिकतम 30 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका बना रही है. इसके साथ ही यह बड़ा सवाल भी खड़ा होता है कि क्या इससे भाजपा को पिछली बार की जीती 23 सीटों से अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी? क्या यह तीन-तरफा गठबंधन और इसके आपसी तनावों के चलते प्रदर्शन कम असरदार नहीं होगा? 


ये सभी सवाल भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि जब तक वह महाराष्ट्र के अलावा बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना वगैरह में अपना चुनावी प्रदर्शन नहीं सुधारती, तब तक अपनी 300 से अधिक की संख्या को बरकरार नहीं रख पाएगी, उसमें कुछ जोड़ना तो दूर की बात है. इसी प्वाइंट पर महाराष्ट्र भाजपा के लिए अपने बड़े और राष्ट्रव्यापी गेम प्लान में बेहद महत्वपूर्ण बना हुआ है.


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