Durga Khote: हिंदी सिनेमा को समृद्ध बनाने में शुरुआती दौर के कलाकारों ने अपना खून-पसीना बहाया. अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाया. तमाम विरोध सहे. जब आज सिनेमा की दुनिया तमाम ग्लैमर से चमकती नजर आती है. हिंदी सिनेमा की ऐसी ही प्रतिष्ठित एक्ट्रेस थीं, दुर्गा खोटे. बाद में उन्हें पद्मश्री और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानितक किया गया.
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Bollywood Actress: दुर्गा खोटे बॉलीवुड की वह महान अदाकारा हैं, जिन्होंने हिन्दी सिनेमा में महिलाओं के लिए नई जगह बनाई. उन्होंने सबसे ज्यादा मां के किरदार ही निभाए. जिस समय उन्होंने बॉलीवुड में प्रवेश किया उस समय फिल्मों में एक्ट्रेस का कोई स्थान नहीं था. महिलाओं का किरदार भी पुरुष निभाया करते थे. ऐसे दौर में दुर्गा खोटे ने फिल्मों में एंट्री की और बतौर हीरोइन अपनी पहचान बनाई. जब दुर्गा ने फिल्मों में आने का फैसला लिया, उस समय फिल्म में काम करना महिलाओं के लिए एक बुरा काम माना जाता था. दुर्गा खोटे एक प्रतिष्ठित परिवार से थीं.
बी.ए. तक पढ़ाई और फिर
दुर्गा के फिल्मों में आने के फैसले से उनके घर में ही नहीं बल्कि आस-पास के जानने वालों में भी हड़कंप मच गया. दुर्गा को कई तरह की बातें सुननी पड़ीं, लेकिन उन्होंने अपने दिल और दिमाग की सुनी. दुर्गा का जन्म एक मराठी परिवार में हुआ था. जब वह बी.ए. की पढ़ाई कर रही थीं, उसी दौरान उनका विवाह मैकेनिकल इंजीनियर विश्वनाथ खोटे से हो गया. दोनों के दो बेटे भी हुए. लेकिन कुछ ही समय में उनके पति चल बसे, जिस कारण उन्हें आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा. उन्होंने पैसे कमाने के लिए पहले ट्यूशन का सहारा लिया.
दस मिनट का रोल
ट्यूशन के ही दौरान एक दिन उन्हें फिल्म ‘फरेबी जाल’ में काम करने का प्रस्ताव मिला. पैसे की मजबूरी के चलते दुर्गा ने रोल स्वीकार किया. फिल्म में दुर्गा का रोल महज दस मिनट का था, जिस कारण उन्हें फिल्म की कहानी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. खराब कंटेंट की वजह से दुर्गा को चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ा. वह काफी निराश हो गईं. भाग्यवश उन्हें फिर एक मौका मिला वी.शांताराम की फिल्म अयोध्या चा राजा में, जिसमें उन्होंने तारामती का किरदार निभाया था. यह फिल्म हिंदी और मराठी दो भाषाओ में बनाई जानी थी. इस रोल के लिए उन्होंने पहले मना कर दिया था. लेकिन वी शांताराम के समझाने पर उन्होंने हां कर दी. इस फिल्म ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया.
फिर आई जोधाबाई
उन्होंने हिंदी और मराठी के साथ बंगाली फिल्मों में भी काम किया. दुर्गा का सबसे यादगार किरदार फिल्म मुगल-ए-आजम में जोधाबाई का था. दुर्गा खोटे ने लगभग 50 साल बॉलीवुड में काम किया और करीब 200 फिल्में की. उन्हें पद्मश्री तथा दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया. 1974 में विदाई फिल्म में निभाई गई यादगार भूमिका के लिए उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया. उन्होंने फिल्म निर्माण में भी अपना हाथ आजमाया. अपने दूसरे पति राशिद खान के साथ मिलकर उन्होंने ‘फैक्ट फिल्म्स प्रोडक्शन हाऊस’ के लिए कई शॉर्ट फिल्में बनाई. 1991 में 86 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया.