मैं अब नहीं लड़ सकता... 11 साल बाद बेटी का 'कातिल' सुप्रीम कोर्ट से बरी हुआ, टूट गए पिता
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मैं अब नहीं लड़ सकता... 11 साल बाद बेटी का 'कातिल' सुप्रीम कोर्ट से बरी हुआ, टूट गए पिता

Mumbai Crime: मुंबई की अदालत ने इसे 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' मामला बताते हुए कहा था कि ऐसे अपराध के लिए फांसी ही एकमात्र सजा होनी चाहिए. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा था. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में पर्याप्त सबूत नहीं हैं. फोटो एआई

मैं अब नहीं लड़ सकता... 11 साल बाद बेटी का 'कातिल' सुप्रीम कोर्ट से बरी हुआ, टूट गए पिता

Esther Anuhya murder Case: मुंबई में 2014 में एक 23 साल की सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रेप मर्डर केस में सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य आरोपी चंद्रभान को बरी कर दिया है. यह सब तब हुआ जब कुछ साल पहले मुंबई की एक विशेष अदालत ने आरोपी को मौत की सजा दे दी थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को पलट दिया है. इस फैसले ने पीड़िता के परिवार के पुराने घाव फिर से हरे कर दिए हैं. पीड़िता के पिता जोनाथन प्रसाद को एक दशक पहले जब उन्हें अपनी बेटी का क्षत-विक्षत शव मिला था तो उनकी दुनिया उजड़ गई थी. अब जब कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया है तो वे फिर से उसी पीड़ा से गुजर रहे हैं. लेकिन इस बार वे आगे की लड़ाई लड़ने की स्थिति में नहीं हैं.

क्रूर हत्या जिसने हिला दिया था सबको
पीड़िता टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज TCS में काम करती थीं. 2013 के आखिर में क्रिसमस और नए साल की छुट्टियां मनाने अपने गृहनगर विजयवाड़ा गई थीं. 5 जनवरी 2014 को जब वे मुंबई लौटीं तो लोकमान्य तिलक टर्मिनस स्टेशन से बाहर निकलने के बाद अचानक लापता हो गईं. परिवार ने उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई और मुंबई में उनकी तलाश शुरू की. 16 जनवरी को कांजुरमार्ग इलाके में एक बुरी तरह सड़ी-गली लाश मिली, जिसकी पहचान पीड़िता के रूप में हुई.

कैसे आरोपी तक पहुंची पुलिस
इस मामले में कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं था लेकिन पुलिस को रेलवे स्टेशन के सीसीटीवी फुटेज में एक संदिग्ध व्यक्ति दिखाई दिया जो पीड़िता का बैग लिए हुए था. स्टेशन के एक कुली ने इस व्यक्ति की पहचान चंद्रभान के रूप में की जो एक ऑटो चालक था. उसे मार्च 2014 में नासिक से गिरफ्तार किया गया और पीड़िता के साथ रेप मर्डर का आरोप लगाया गया.

पुलिस की रिपोर्ट में क्या था?
पुलिस के अनुसार आरोपी ने खुद को कैब ड्राइवर बताकर पीड़िता को स्टेशन से उनके हॉस्टल छोड़ने की पेशकश की थी. जब पीड़िता ने देखा कि उसके पास कार नहीं बल्कि बाइक है तो वह हिचकिचाईं, लेकिन किसी तरह पीड़िता ने उन्हें मना लिया. रास्ते में कांजुरमार्ग के पास उसने पेट्रोल खत्म होने का बहाना किया और सुनसान इलाके में ले जाकर पीड़िता पर हमला कर दिया. आरोप लगा कि पीड़िता का सिर पत्थर से कुचल दिया और दुपट्टे से गला घोंटकर उनकी हत्या कर दी. इसके बाद उसने शव को जलाने की कोशिश की और उनके सामान को लेकर फरार हो गया.

पहले मौत की सजा.. अब बरी
2015 में मुंबई की एक विशेष अदालत ने इस जघन्य अपराध के लिए पीड़िता को दोषी ठहराते हुए उसे मौत की सजा सुनाई थी. अदालत ने इसे 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' मामला बताते हुए कहा था कि ऐसे अपराध के लिए फांसी ही एकमात्र सजा होनी चाहिए. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा था. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में पर्याप्त सबूत नहीं हैं और परिस्थितिजन्य साक्ष्य अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं थे.

'अब भगवान पर छोड़ दिया'
पीड़िता के पिता 70 साल के जोनाथन प्रसाद के लिए यह फैसला किसी बड़े झटके से कम नहीं था. उन्होंने कहा कि हमने यह खबर सुनी लेकिन अब हम कुछ नहीं कर सकते. हमने पहले भी बहुत कुछ झेला है अब और नहीं लड़ सकते. हमने सोचा था कि न्याय मिला लेकिन अब सब बदल गया.

'आगे केस नहीं लड़ सकता'
जब उनसे पूछा गया कि क्या वे सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया. नहीं साहब अब मैं ऐसा नहीं कर सकता. मेरी उम्र 70 साल से ज्यादा हो चुकी है मेरी पत्नी बीमार रहती हैं. मैं एक सेवानिवृत्त व्यक्ति हूं मेरे पास अब इतनी हिम्मत नहीं बची कि मैं कानूनी लड़ाई जारी रखूं. उनका कहना है कि चाहे अदालत का फैसला कुछ भी हो वे अपनी बेटी को कभी वापस नहीं पा सकते और यही सबसे बड़ा दुख है.

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