Knowledge: ब्लैक बॉक्स से पता चलेगा कैसे हादसे का शिकार हुआ CDS का प्लेन? जानें इसके बारे में सबकुछ
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Knowledge: ब्लैक बॉक्स से पता चलेगा कैसे हादसे का शिकार हुआ CDS का प्लेन? जानें इसके बारे में सबकुछ

ब्लैक बॉक्स को बनाने शुरुआत 1950 के दशक में हुई. क्यों यह वही दौर था, जब विमानों की फ्रीक्वेंसी बढ़ने के साथ ही दुर्घटनाएं भी बढ़ने लगी थीं. हालांकि तब ये समझने का कोई तरीका नहीं था कि अगर कोई हादसा हो तो कैसे जांचा जा सके कि किसकी गलती थी या ऐसा क्यों हुआ ताकि आने वाले समय में गलती का दोहराव न हो.

Knowledge: ब्लैक बॉक्स से पता चलेगा कैसे हादसे का शिकार हुआ CDS का प्लेन? जानें इसके बारे में सबकुछ

नई दिल्ली. बीते बुधवार को तमिलनाडु के कन्नूर में सेना प्रमुख (Chief of Defence Staff of the Indian Armed Forces) बिपिन रावत का विमान हादसे का शिकार हो गया था. इस हादसे के चलते विमान में सवार सीडीएस और उनकी पत्नी मधुलिका सहित 13 लोगों की मौत हो गई. वहीं, हादसे में एक मात्र एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह ही जिंदा बच पाए हैं. फिलहाल उनका इलाज एक अस्पताल में किया जा रहा है. इस हादसे के बाद कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं. साथ ही अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि सीडीएस का विमान कैसे हादसे का शिकार हुआ. इन सब के बीच ब्लैक बॉक्स की चर्चा हो रही है. कहा जा रहा है कि हादसे के सही कारणों का पता इसकी रिपोर्ट से चलेगा. तो आइए जानते हैं कि क्या होता ब्लैक बॉक्स? और कैसे यह काम करता है...

ब्लैक बॉक्स? 
जब कभी भी विमान दुर्घटना होती है तो उसका पता लगाने के लिए ब्लैक बॉक्स का प्रयोग किया जाता है. यह एक ऐसा बॉक्स होता है जो जहाज के उड़ान के दौरान सारी गतिविधियों को रिकॉर्ड करता रहता है. यही कारण है कि इसे फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर (FDR) भी कहते हैं. सुरक्षित रखने के लिए इसे सबसे मजबूत धातु टाइटेनियम से बनाया जाता है. साथ ही भीतर की तरफ इस तरह से सुरक्षित दीवारें बनी होती हैं कि कभी किसी दुर्घटना के होने पर भी ब्लैक बॉक्स सेफ रहे और उससे समझा जा सके, कि असल में हुआ क्या था.

ब्लैक बॉक्स की इसलिए हुई खोज
ब्लैक बॉक्स को बनाने शुरुआत 1950 के दशक में हुई. क्यों यह वही दौर था, जब विमानों की फ्रीक्वेंसी बढ़ने के साथ ही दुर्घटनाएं भी बढ़ने लगी थीं. हालांकि तब ये समझने का कोई तरीका नहीं था कि अगर कोई हादसा हो तो कैसे जांचा जा सके कि किसकी गलती थी या ऐसा क्यों हुआ ताकि आने वाले समय में गलती का दोहराव न हो. 1954 में एरोनॉटिकल रिसर्चर डेविड वॉरेन ने इसका आविष्कार किया था. 

इस तरह करता है काम
ब्लैक बॉक्स को टाइटेनियम से बनाया जाता है, इसकी वजह से यह बहुत ही मजबूत होता है. टाइटेनियम की कई परत चढ़ने की वजह से बहुत ही सेफ रहता है. कितना भी बिस्फोट हो, लेकिन यह नहीं टूटेगा. वहीं, अगर प्लेन में आग भी लग जाए तो भी इसके खत्म होने की आशंका लगभग नहीं के बराबर होती है. क्योंकि लगभग 1 घंटे तक ये 10000 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान सह पाता है. इसके बाद भी अगले 2 घंटों तक ये बॉक्स लगभग 260 डिग्री तापमान सह सकता है. इसकी एक खासियत ये भी है कि ये लगभग महीने भर तक बिना बिजली के काम करता है. अगर दुर्घटनाग्रस्त विमान कई महीनों तक नहीं मिलता है तो भी उसका डेटा सेव रहता है.

बॉक्स से निकलती रहती है आवाज
ब्लैक बॉक्स से लगातार एक तरह की आवाज निकलती रहती है, जो खोजी दलों द्वारा दूर से ही पहचानी जा सकती है और इस तरह से दुर्घटनास्थल तक पहुंचा जा सकता है. यहां तक कि समुद्र में 20,000 फीट तक नीचे गिरने के बाद भी इस बॉक्स से आवाज और तरंगें निकलती रहती हैं और ये लगातार 30 दिनों तक जारी रहती हैं.

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