How Firecrackers Work: आतिशबाजी करना हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहार दिवाली का सबसे महत्वपूर्ण भाग है, जो बच्चों ही नहीं बड़ों को भी खूब भाता है. इस त्योहार पर पटाखे जलाना सनातन धर्म का पारंपरिक हिस्सा रहा है. आजकल तो ज्यादातर उत्सवों में भी आतिशबाजी देखने को मिलती है.


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किसी बड़ी खुशी को जाहिर करने के लिए भी लोग आतिशबाजी (Fireworks) करते हैं, जो कई प्रकार की होती हैं जैसे पटाखे, फुलझड़ियां और हवाई गोले आदि. क्या कभी पटाखों को जलाते या आसमान में जाते देख ये विचार आपके मन में नहीं आया कि इनमें स्पार्कल और कलर्स कैसे आते हैं? चलिए आज इस आर्टिकल के जरिए जान लेते हैं...


ऐसे काम करते हैं पटाखें
पटाखों में फ्यूज के साथ कागज में बारूद लपेटा जाता है. गनपाउडर 75 फीसदी पोटेशियम नाइट्रेट (KNO3), 15 फीसदी चारकोल या शुगर और 10 फीसदी सल्फर मिलाकर तैयार किया जाता है. पर्याप्त गर्मी मिलते ही पटाखों की सामग्री एक-दूसरे के साथ रिएक्ट करती है. फ्यूज जलने पर पटाखा को जलने के लिए गर्मी की आपूर्ति होती है. 


फुलझड़ी में ऐसे निकलती हैं रंगीन चिंगारियां
फुलझड़ी में मिक्स केमिकल होता है, जिसे एक कठोर तार पर ढाला जाता है. फिर इन कैमिकल्स का एक घोल तैयार किया जाता है, जिसे एक तार पर लपेटा जा सके या ट्यूब में डाला जाता है. मिश्रण सूखने पर फुलझड़ियां बनकर तैयार हो जाती हैं. स्टील, जस्ता, मैग्नीशियम धूल चमकदार और झिलमिलाती हुई चिंगारी उत्पन्न करते हैं.


रॉकेट
आजकल के कुछ मॉर्डन पटाखे गनपाउडर की मदद से लॉन्च करके इलेक्ट्रॉनिक टाइमर के जरिए विस्फोट किए जाते हैं. हालांकि, ज्यादातर हवाई गोले या रॉकेट बारूद का उपयोग करके लॉन्च और विस्फोट किए जाते हैं. 


ऐसे आता है आतिशबाजी में रंग
आतिशबाजी का रंग मेटल साल्ट के कारण आता है, जो मूल रूप से आतिशबाजी के जलने पर प्रकाश पैदा करता है, जैसे स्ट्रोंटियम साल्ट रेड कलर,  तांबा और बेरियम लवण नीले और हरे रंग का उत्पादन करते हैं.