Bollywood Villains: एक दौर में सिनेमा में काम करना आज की तरह आसान नहीं था. लोगों को मुंबई आना पड़ता था. यहीं काम मिलता था. युवक-युवतियां हीरो-हीरोइन बनने के लिए घर से भाग निकला करते थे. किसी की किस्मत चमकती थी, तो किसी को निराशा हाथ लगती थी. हिंदी फिल्मों के इतिहास में बेहतरीन खलनायकों में गिने जाने वाले अजीत घर से भागे थे. अंग्रेजों के दौर में वह हैदराबाद की रियासत में पैदा हुए थे और उनका नाम था, हामिद खान. वह पठान परिवार से थे. पढ़ाई में वह बढ़िया थे और उनकी कद-काठी मजबूत थी. उनके पिता चाहते थे कि बेटा कॉलेज की पढ़ाई करके आर्मी जॉइन करे. लेकिन हामिद का मन एक्टिंग में लगता था और वह फिल्मों में हीरो बनना चाहते थे.


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प्रोफेसर ने कहा
उन दिनों फिल्में देखना भी आसान नहीं था और अजित जानते थे कि उनके पिता कभी एक्टर बनने की इजाजत नहीं देंगे. लेकिन एक बात यह थी कि उन्हें फिल्में देखने मिल जाती थी. वजह यह कि उनके मामा के पास शहर के एक सिनेमाघर में कैंटीन का ठेका था. ऐसे में अजित को जितनी बार चाहें फिल्म देखने का मौक मिल जाता था. अजित की मां बेटे की इच्छा जानती थीं परंतु वह लगातार एक्टर बनने के प्रति हतोत्साहित करती थीं. इसी दौर में अजित को एक अंग्रेज प्रोफेसर मिले, जिन्होंने उनसे कहा कि पिता के पैसों को कॉलेज या किताबों में बर्बाद न करें. पठान होने के कारण या तो वो सीधे आर्मी में भर्ती हो जाएं या फिर फिल्मों में किस्मत आजमाने मुंबई चले जाएं.


फिल्मों में एक्स्ट्रा भी
इस बीच उनके पिता निजाम के किसी काम से कुछ महीनों के लिए हैदराबाद से बाहर चले और तब अजीत ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया. उन्होंने मां से कुछ पैसे मांगे, फिर अपनी सारी किताबें बेच दी और किसी से कुछ बगैर मुंबई निकल गए. रेल का टिकट खरीदने के बाद वह मुंबई में 113 रुपये लेकर उतरे. उन दिनों यह बड़ी रकम थी, जिसमें कुछ दिन अच्छे से गुजारे जा सकते थे. मुंबई में उन्हें संघर्ष करना पड़ा मगर काम मिलने लगा. कुछ फिल्मों में एस्क्ट्रा भी रहे. फिर छोटे-छोटे रोल मिले. पर्दे पर वह हामिद खान के नाम से आते थे. लेकिन बाद में कुछ लोगों की सलाह से उन्होंने अपना नाम अजित रखा और अंततः वह हीरो बने. 


चमका नया सूरज
हीरो के रूप में अजित कर एक दशक तक काम करते रहे, लेकिन उनकी पारी बहुत अच्छी नहीं चली और धीरे-धीरे उन्हें काम मिलना बंद हो गया. इसके बाद 1970 के दशक में उन्होंने विलेन के रूप में पारी शुरू की. राजेंद्र कुमार र वैजयंतीमाला की फिल्म सूरज (1966) में वह पहली बार खलनायक के रूप में आए. इसने उन्हें लोकप्रियता की पायदान पर चढ़ा दिया. उन्हें विलेन के रूप में लगातार काम मिलने लगा और आखिरकार वह इंडस्ट्री में बड़े विलेन के रूप में स्थापित हो गए. विलेन के रूप उनका अंदाज और डायलॉग डिलेवरी भी खूब लोकप्रिय हुई. मोना डार्लिंग, लिली डोंट बी सिली और सारा शहर हमें लायन के नाम से जानता है जैसे डायलॉग अमर हैं. नया दौर, मुगल-ए-आजम, सूरज से लेकर जंजीर, बॉबी और कालीचरण उनकी प्रसिद्ध फिल्मों में शामिल हैं.