Saadat Hasan Manto: सआदत हसन मंटो ने साहित्य और सिनेमा में भेद नहीं किया. दोनों ही जगहों पर शिद्दत से कहानियों पर काम किया और अपनी छाप छोड़ी. अगर वह पाकिस्तान नहीं जाते तो शायद हिंदी सिनेमा में उनकी पहचान और मजबूत होती.
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Manto Biopic: गुजरी शताब्दी में पूरे एशिया महाद्वीप के सर्वश्रेष्ठ कहानीकारों में गिने जाने वाले सआदत हसन मंटो देश विभाजन के समय भले ही पाकिस्तान चले गए, लेकिन वह देश में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अफसानानिगारों में हैं. उर्दू के इस सबसे बड़े कहानीकार के जीवन पर साल 2018 में नंदिता दास (Nandita Das) ने फिल्म बनाई थी, जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दिकी (Nawazuddin Siddiqi) ने मंटो का रोल अदा किया था. मंटो ने जीवन का एक लंबा अर्सा मुंबई में गुजारा और फिल्म इंडस्ट्री में बतौर राइटर खूब काम किया. वह हिंदी की पहली रंगीन फिल्म किसान कन्या के पटकथा और संवाद लेखक थे. उन्होंने नौकर, शिकारी, मिर्जा गालिब, चल चल रे नौजवान और आठ दिन जैसी फिल्में लिखीं. कम लोग जानते हैं कि शुद्ध लेखक होने के बावजूद एक फिल्म में मंटो ने बतौर अभिनेता ऐक्टिंग भी की.
अशोक कुमार ने मांगी दोस्त की मदद
अपन दौर के सुपरस्टार अशोक कुमार और मंटो बहुत अच्छे दोस्त थे. 1946 में अशोक कुमार ने फिल्म का निर्माण किया, आठ दिन. वह इसके निर्माता-निर्देशक थे. प्रसिद्ध हिंदी कथाकार उपेंद्र नाथ अश्क भी मंटो के दोस्त थे और वह भी इस फिल्म में एक्टिंग कर रहे थे. अश्क फिल्मिस्तान कंपनी में बतौर राइटर जुड़े थे. मंटो ने आठ दिन लिखी थी और फिल्म की शूटिंग के साथ-साथ राइटिंग चल रही थी. अशोक कुमार लीड रोल में थे. शूटिंग के दौरान एक किरदार ने काम करने से इंकार कर दिया और तब मुश्किल आई कि क्या किया जाए क्योंकि हर दिन स्टूडियो-शूटिंग में पांच से छह हजार रुपये लगते थे, जो उस समय बहुत बड़ी रकम थी. ऐसे में अशोक कुमार ने अपने दोस्त मंटो की मदद लेने का फैसला किया.
मजाक नहीं, मामला सीरियस था
अशोक कुमार ने मंटो से जब एक्टिंग करने की बात की तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया. अशोक कुमार लौट आए, लेकिन शूटिंग के दौरान वह अचानक मंटो के सामने पहुंचे और उनके हाथों से कागज लेकर एक तरफ रख दिए. फिर वे मंटो को लेकर सीधे कैमरे के सामने पहुंच गए और कहा कि तुम्हें यह रोल निभाना ही पड़ेगा. उन्होंने फिल्म में मंटो को एयरफोर्स ऑफिसर कृपा राम का रोल दिया. मंटो को लगा कि अशोक कुमार मजाक कर रहे हैं, लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गया कि वह बहुत सीरियस हैं. मंटो के राइटर दोस्त फिल्म में पंडित तोता राम बने थे और फिल्म के गीतकार राजा मेहदी अली खान भी इस फिल्म में एक्टिंग कर रहे थे. सबने मंटो पर दबाव बनाया तो अंततः उन्हें हां कहना पड़ा. जैसे-तैसे मंटो ने यह किरदार निभाया और बाद में लिखा कि यह ऊपर वाला ही जानता है कि मैं कैमरे के सामने कितना घबराया हुआ रहता था.
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