Cricket Movie: क्या लगान बनी है सच्ची कहानी पर, जानिए किस टीम ने दी थी अंग्रेजों को सचमुच मात
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Cricket Movie: क्या लगान बनी है सच्ची कहानी पर, जानिए किस टीम ने दी थी अंग्रेजों को सचमुच मात

Indian Cricket: भारत में क्रिकेट पर फिल्में बीते कुछ दशकों में तेजी से बनी हैं. लेकिन लगान से आगे कोई नहीं निकल पाई. फिल्म को 22 साल हो चुके हैं और आज भी इसे लोग याद करते हैं. इस पर तरह की चर्चा होती है...

 

Cricket Movie: क्या लगान बनी है सच्ची कहानी पर, जानिए किस टीम ने दी थी अंग्रेजों को सचमुच मात

Aamir Khan: सोशल मीडिया में कई बार सवाल उठता है कि क्या आशुतोष गोवारिकर (Ashutosh Govariker) को फिल्म लगान (Fill Lagaan) का आइडिया किसी सच्ची घटना से मिला थाॽ या फिर कोई ऐसी घटना थी, जिसने उन्हें यह कहानी लिखने के लिए प्रेरित किया थाॽ फिल्म को करीब 22 साल हो रहे हैं और खुद गोवारिकर ने फिल्म के पीछे के आइडिये के बारे में हा थाः मेरा विचार यह था कि एक कॉमन दुश्मन से लड़ने के लिए समाज के अलग-अलग वर्ग से आने वाले लोगों की कहानी बनाई जाए. कोई एक नायक हो, इसके बजाय कई नायक एक टीम के रूप में साथ आएं. ऐसे में टीम बनाने के लिए क्रिकेट से अच्छा क्या हो सकता है. गोवारिकर ने बताया कि लगान कहानी के उन्होंने लगभग 21 ड्राफ्ट लिखे. लेकिन जब उन्हें कुछ निर्माताओं से इस आइडिये पर बात की, तो उन्होंने इसे बेतुका बताया था.

सिर गर्व से ऊंचा
कई लोग यह मानते हैं कि भले ही गोवारिकर को यह आइडिया अपने आप मिला हो, परंतु इतिहास में खेल के मैदान में अंग्रेजों और हिंदुस्तानियों के बीच एक ऐसा मैच हुआ था, जिसने भारतीयों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया. यह मुकाबला फुटबॉल के मैदान में हुआ था. यह बात 1911 की है. जब मोहन बागान क्लब ने ब्रिटिश फुटबॉल टीम को हराकर पूरे देश को उत्साह से भर दिया था. कलकत्ता के इस क्लब ने ब्रिटेन की ईस्ट यॉर्कशायर रेजिमेंट को हराकर आईएफए शील्ड जीती थी. भारतीय फुटबॉल (Indian Football) के इतिहास में 29 जुलाई 1911 की यह तारीख बहुत महत्वपूर्ण है.

नंगे पैर खिलाड़ी
इसे इतिहास में भारत की अब तक की सबसे बड़ी जीत में से एक माना जाता है. इस मौके को यादगार बनाने के लिए बंगाल के निर्देशक अरूप रॉय ने 2011 में एगारो-द इलेवन (Egaro-The Elevan) नाम से फिल्म भी बनाई. 1911 जब अंग्रेज भारत में सख्ती से राज कर रहे थे, तब मोहन बागान एथलेटिक क्लब केवल 22 साल पुराना था, लेकिन उसके खिलाड़ियों ने नंगे पैर खेलते हुए ऐसा जादू दिखाया कि अंग्रेज हतप्रभ रह गए. उस दौर में मोहन बागान की जीत को राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में देखा गया. आईएफए शील्ड के फाइनल मैच में नंगे पैर खेलते भारतीय खिलाड़ियों के सामने ब्रिटिश सेना की कहीं बेहतर प्रशिक्षित ईस्ट यॉर्कशायर रेजिमेंट का सामना किया था.

ऐसे पलटा पासा
यह मैच देखने के लिए कोने-कोने से अनेक भारतीय कलकत्ता फुटबॉल ग्राउंड पहुंचे थे. खचाखच भरे स्टेडियम में शोर-शराबे के बीच, ईस्ट यॉर्कशायर रेजीमेंट ने ही गोल किया. पूरे स्टेडियम में निराशा छा गई. पूरे मैच में अंग्रेज हावी दिख रहे थे. लेकिन केवल पांच मिनट बाकी रहते सब कुछ बदल गया. कप्तान शिबदास भादुड़ी ने गोल दाग कर बराबरी कर ली और फिर अंतिम क्षणों में अभिलाष घोष ने स्कोर 2-1 कर दिया. मोहन बागान ने आईएफए शील्ड के फाइनल में एक ब्रिटिश टीम को हरा दिया था. हर साल, क्लब इस दिन को मोहन बागान दिवस के रूप में मनाता है.

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