नई दिल्ली: भारतीय सिनेमा में अंग्रेजी बीट्स का तड़का लगाने वाले महान संगीतकार आरडी बर्मन को कौन नहीं जानता. हिंदी फिल्मी गानों के हर शौकीन की फेवरेट सॉन्ग लिस्ट में आज भी आरडी बर्मन के कुछ गाने होते ही हैं. जैज, कैबरे, डिस्को और ओपरा म्यूजिक से भारतीय सिनेमा को समृद्ध करने वाले राहुलदेव बर्मन ने आज ही के दिन साल 1994 में इस संसार को अलविदा कहा था. 


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राहुलदेव बर्मन को आज भी उनके तड़कते भड़कते संगीत के लिए लोग याद करते हैं लेकिन उनके रोमांटिक गानों को आज भी कोई टक्कर नहीं दे सकता. आरडी बर्मन ने अपने जीवन में संगीत के साथ कई तरह के प्रयोगों किए. उनकी प्रसिद्धी वजह भी यही थी. 


आरडी बर्मन, फोटो साभार: @shrihariharidas 

राहुल कोलकाता में जन्मे थे. कहा जाता है बचपन में जब ये रोते थे तो पंचम सुर की ध्वनि सुनाई देती थी, जिसके चलते इन्हें पंचम कह कर पुकारा गया. कुछ लोगों के मुताबिक अभिनेता अशोक कुमार ने जब पंचम को छोटी उम्र में रोते हुए सुना तो कहा कि 'ये पंचम में रोता है' तब से उन्हें पंचम कहा जाने लगा. इन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा बालीगंज गवर्नमेंट हाई स्कूल कोलकत्ता से ली. बाद में उस्ताद अली अकबर खान से सरोद भी सीखा.


आर डी बर्मन ने अपने करियर की शुरुआत बतौर एक सहायक के रूप में की. शुरुआती दौर में वह अपने पिता के संगीत सहायक थे. उन्होंने अपने फिल्मी कॅरियर में हिन्दी के अलावा बंगला, तमिल, तेलगु, और मराठी में भी काम किया है. इसके अलावा उन्होंने अपने आवाज का जादू भी बिखेरा. उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर कई सफल संगीत दिए, जिसे बकायदा फिल्मों में प्रयोग किया जाता था.


संगीतकार के रूप में आर डी बर्मन की पहली फिल्म 'छोटे नवाब' (1961) थी जबकि पहली सफल फिल्म तीसरी मंजिल (1966) थी. साल 1994 में भारतीय सिनेमा को अंग्रेजी बीट्स देने वाले इस महान संगीतकार का देहांत हो गया.


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