कोई कितना भी बड़ा स्टार बन जाएं, पर मां-बाप के घरों से लगाव ही कुछ खास होता है. हमने फिल्म स्टार्स को तीन तरह के घरों से भावनात्मक रिश्ता बनाते हुए देखा है.
सुनील दत्त और नरगिस के बंगले का नाम था- अजंता. इसी बंगले में पले-बढ़े संजय दत्त और उनकी बहनें प्रिया और नम्रता. एक दिन पूरे परिवार को लगा कि रहने के लिए बंगला छोटा पड़ रहा है और आसपास इतनी ऊंची इमारतें खड़ी हो गई थीं कि बंगला उनके सामने कहीं टिकता भी नहीं था और सरकारी नियमों के तहत उनमें कुछ निर्माण कार्य करना भी नामुमकिन था.
ऐसे में तय किया गया कि इस बंगले को तोड़कर बहुमंजिला इमारत बनाई जाए. एक बिल्डर से टाइअप किया गया. बंगला तोड़कर एक बहुमंजिला इमारत बनाई गई. नाम है- इम्पीरियल हाइट्स. ऊपर के टॉप 2 फ्लोर संजय दत्त को मिले. नीचे के फ्लोर नम्रता और प्रिया ने लिए. कुल 22 फ्लैट्स अकेले संजय दत्त को मिले थे. लेकिन संजय दत्त और मान्यता के जब दो बच्चे हो गए तो उन्हें ये फ्लोर भी छोटे लगने लगे.
संजय दत्त ने 2012 में शाहरुख खान के बंगले ‘मन्नत’ के बगल में एक थ्री फ्लोर अपार्टमेंट बुक करा लिया. इस बिल्डिंग में 9 अपार्टमेंट हैं, और हर अपार्टमेंट 3 फ्लोर का है. इसमें एक फ्लोर पर संजय दत्त का जिम और स्वीमिंग पूल है. दूसरे में संजय दत्त का बैडरूम और बच्चों के रूम हैं. साथ में एक छोटा सा 20 सीटर थिएटर भी है. लेकिन संजय दत्त के अपने बंगले से इतने इमोशंस जुड़े हुए हैं कि इम्पीरियल हाइट्स वाले फ्लोर ना उन्होंने बेचे और ना ही किराए पर उठाए.
जब अमिताभ के साथ उनके माता-पिता मुंबई रहने पहुंचे थे, तब उन्हें मुंबई में करीब तीन साल हो चुके थे. 1972 में पिता हरिवंश राय बच्चन का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो गया था. उनको दिल्ली का सरकारी बंगला खाली करना था. अमिताभ ने कहा कि मुंबई आ जाइए. उन दिनों अमिताभ किसी गुजराती के मकान में किराए पर रह रहे थे, मकान का नाम रखा गया था ‘मंगल’ और इलाका था जुहू पारले स्कीम, मुंबई.
इससे पहले अमिताभ दोस्तों के साथ रूम या फ्लैट शेयर कर रहे थे. उस घर में दो कमरे बने हुए थे. घर के आगे छोटा सा लॉन था और पीछे भी एक बड़ा लॉन था. माता पिता के साथ-साथ अजिताभ के आने की भी बात चली तो अमिताभ ने अपने मकान मालिक से ऊपर भी दो कमरे बनाने के लिए कहा, जो बाद में बन भी गए.
साल 1972 के अप्रैल माह में छत पर नए बने कमरों में हरिवंश राय बच्चन और मई में अजिताभ बच्चन शिफ्ट हो गए. जब 11 अक्टूबर 1972 को अमिताभ बच्चन का जन्मदिन आया, तब हरिवंश राय बच्चन ने बेटे के लिए एक दिलचस्प कविता लिखी.
इस कविता में पहली बार अमिताभ को लुगाई यानी पत्नी लाने के लिए आशीर्वाद दिया गया था. उस कविता को पढ़िए— प्रिय अमित, हुए तुम तीस/ हमारा प्यार, बधाई तुमको/ देने आई आशीष/ राधिका बनी/ कन्हाई तुमको/ वरमाला पिन्हाए शीघ्र/ तुम्हारी कीर्ति-लुगाई तुमको।
अमिताभ भी शायद अपने कवि पिता के इस उपहार और कविता के पीछे छिपी भावनाओं को समझ गए थे, तभी तो उसी साल उनकी जिंदगी में आई जया बच्चन. शादी के वक्त तक बच्चन परिवार को नहीं लगता था कि किराए के घर में वो अमिताभ और जया के फैंस की भीड़ को झेल पाएंगे, सो तय किया कि जया के परिवार के अलावा केवल दो परिवारों को शादी में बुलाना है.
तय हुआ कि शादी ना बच्चन के घर होगी और ना जया के घर. बल्कि जया के परिवार के एक मित्र के उस घर में करेंगे, जो मालाबार हिल्स की ऊंची बिल्डिंग स्काईलार्क के टॉप फ्लोर पर है. सभी लोग घर के बाहर निकले, कुल तीन कारों का इंतजाम किया गया.
तब अमिताभ के पड़ोसियों को उनकी शादी की खबर नहीं थी. बाद में अमिताभ परिवार समेत मुंबई में अपनी कमाई से बने बंगले ‘प्रतीक्षा’ में शिफ्ट हो गया. लेकिन अमिताभ का ‘मंगल’ प्रेम नहीं छूटा. माता-पिता से लेकर पत्नी तक पहली बार इसी घर में जो रहने आए थे. उन्होंने नया बंगला खरीदा, नामकरण किया ‘मंगल’ और साथ में ऑफिस के कामों के लिए लिया ‘जनक’.
प्राण कभी दिल्ली के बल्लीमारान में फोटोग्राफी के पेशे में थे. किस्मत चमकी और लाहौर फिल्म इंडस्ट्री के बड़े स्टार बन गए. अच्छा घर बनवाया, शानो-शौकत से रहने लगे. लेकिन बंटवारे के दंगों ने उनका सब कुछ छीन लिया. उनके घर में आग लगा दी गई. उन्होंने कभी भी पाकिस्तान ना जाने की कसम खा ली.
वह एक रिश्तेदार के यहां इंदौर आ गए. फिल्मों में किस्मत आजमाने मुंबई गए . शुरुआत में इतने पैसे इकट्ठा थे कि होटल ताज में पत्नी, बच्चे और एक आया के साथ रहते थे. काम नहीं मिला तो एक थ्री स्टार होटल में रहने लगे. हालात और खराब हुए तो एक सस्ते गेस्ट हाउस में रहने की नौबत आ गई.
बड़ी मुश्किल से उन्हें दोस्त श्याम और लेखक मंटो की वजह से काम मिला. जब काम मिला तो बुरे दिन उड़नछू हो गए. किराए के घर में रहने लगे. फिर पाली हिल के एक फ्लैट में चले गए. लेकिन मन तो लाहौर की तरह बंगले में रहने का था. शांतिलाल बजाज वहां एक कॉलोनी काटने लगे ‘यूनियन पार्क’, तो प्राण ने 2 प्लॉट खरीद लिए.
प्राण ने शानदार बंगला बनवाकर कुत्ते भी पाल लिए. लेकिन अचानक वो कॉलोनी अपशगुन के फेर में फंसने लगी, कई फिल्म वालों को बिजनेस में नुकसान हुआ तो उन्होंने बंगले बेच दिए. प्राण की पत्नी शुक्ला तो महिलाओं की सब बातें सुनकर खौफ में ही आ गईं. प्राण पर दवाब बनाने लगी कि यहां से बेच कर निकल लेते हैं. जबकि प्राण का कैरियर अच्छा चल रहा था.
प्राण इस बंगले से इमोशनली जुड़ गए थे. किसी और घर में नहीं जाना चाहते थे. तब प्राण के काम आए ‘कम्मो बाबा’. दरअसल प्राण की पत्नी कम्मो बाबा को बहुत मानती थीं. उन्हीं कम्मो बाबा ने इस बंगले की नींव में पहली ईंट रखी थी. प्राण ने याद दिलाया कि कैसे कम्मो बाबा ने ही इस घर की आधार शिला रखी थी, तो कोई अनिष्ट तो हो ही नहीं सकता है.
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