एंग्री यंग मेन.. द सलीम-जावेद चैप्टर, भारतीय सिनेमा का सबसे क्रांतिकारी हिस्सा
Angry Young Men: भारतीय सिनेमा के शौकीन लोगों के लिए ये सीरीज एक गजब की झुरझुरी फुहार लेकर आई है. जो सत्तर-अस्सी के दशक की फिल्मों को देखकर रोमांचित हो जाते हैं उनके लिए ये सीरीज एक खजाना है. लेकिन ये खजाना आखिर किसने बनाया और सजाया? इस जवाब के केंद्र बिंदु में शर्तिया सलीम-जावेद की जोड़ी होगी. ये सीरीज उन्हीं की कहानी को पिरो रही है.
जब तक बैठने को ना कहा जाए..शराफत से खड़े रहो, ये पुलिस स्टेशन है तुम्हारे बाप का घर नहीं.
जंजीर फिल्म के इस डायलॉग की आवाज आते ही दुनिया ने अमिताभ बच्चन की आमद को देख लिया था. इस डायलॉग को लिखने वाली सलीम-जावेद की जोड़ी ने ऐसे ना सिर्फ हजारों डायलॉग्स लिखे बल्कि एक साथ करीब 24 फिल्मों की पटकथा और स्क्रीनप्ले भी लिखे. इन 24 में से 22 फिल्में ब्लॉकबस्टर साबित हुईं. ये वो दौर था जब देश सत्तर के दशक में एंट्री मार रहा था और लोग परदे पर एक ऐसे नायक को ढूंढ रहे थे जो उनके अंदर जल रही आग को शोला बना सके. इसके बाद तो भारतीय सिनेमा ने अलग ही मोड़ ले लिया. फिल्मी पंडित इसका काफी श्रेय सलीम-जावेद को देते आए हैं. अब इन्हीं सलीम-जावेद के करियर पर 'एंग्री यंग मेन' नाम से एक वेब सीरीज आई है.
सलीम खान-जावेद अख्तर
उस दौर में लगभग हर आदमी समाज और सिस्टम से लगभग जूझ रहा था, जब ऐसे दर्शकों के मन की बात को सिनेमाई माध्यम से सलीम-जावेद ने परोसा तो मानों क्रांति आ गई. इस क्रांति का सबसे अधिक लाभ सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के हिस्से में गया. अमिताभ बच्चन को सलीम-जावेद ने एंग्री यंग मैन बनाया, ये भी किसी से नहीं छिपा है. वे एंग्री यंग मैन बनकर उभरे. ऐसी तमाम फिल्में जिन्होंने रोमांस राजनीति से इतर एक इंसान और एक परिवार के संघर्ष को दिखाया, उसे दर्शकों ने हाथों हाथ लिया. इन सभी फिल्मों के पीछे सलीम-जावेद की कलम असली मास्टरमाइंड बन गई.
ये वेब सीरीज एक डॉक्यूमेंट्री है जिसमें खुद सलीम खान और जावेद अख्तर ने उस दौर के बारे में बताया. इनसे जुड़े लोगों ने भी अपने अनुभवों को लिखा है. एक जगह खुद जावेद अख्तर कहते हैं कि नींद और भूख का अगर आपको इल्म है तो कहीं न कहीं वो ऐसा मार्क आप पर छोड़ कर जाएगा कि आप भूल नहीं सकते. मैं जाता हूं फाइव स्टार होटेल्स में तो याद करता हूं जब मैं थर्ड क्लास कंपार्टमेंट में आया था बंबई तो देयर वाज नो प्लेस टु सिट, मतलब कंधा टिकाने की जगह नहीं थी. उस दिन यार इतनी सी जगह मिल जाती! सुबह ट्रॉली पे नाश्ता लेके आता है, नाश्ता पूरा, बटर, जैम, हाफ प्राइड एग्स, मैं सोचता हूं तेरी औकात क्या है? अभी भी ये लगता है कि ये ब्रेकफास्ट मेरा नहीं है. ये किसी और का है. और इतना बोलते ही जावेद अख्तर की आंखें भर आईं.
इसी में सलीम खान एक जगह कहते हैं कि एक आदमी ने मेरे को आठ घंटे खड़ा रखा. उसके बाद कहा कि जाइए मंडे को आइए. तो होता है न कि ख्याल आता है कि इसको तो मैं दिखाऊंगा, जब मेरा टाइम आएगा. लेकिन मुझे ये ख्याल नहीं आया. मैंने कहा- ये मैं कभी नहीं करूंगा. आई विल नॉट डू इट. सलीम खान अपने बारे में कहते हैं कि मैं खुद को जेम्स डीन समझता था. हालांकि वो पहले फिल्मों में बतौर अभिनेता ही खुद को स्थापित करना चाहते थे लेकिन फिर जब उन्होंने कलम चलाई तो कमाल हो गया.
एंग्री यंग मैन का किरदार गढ़ दिया
सलीम खान और जावेद अख्तर की ये टीस आज भी दर्शकों को भावुक कर दे रही है तो सोचिए उस दौर में क्या हुआ होगा जब इस जोड़ी ने ऐसी फिल्में लिख डालीं. इनमें शोले, जंजीर, दीवार, त्रिशूल, शान जैसी फिल्में शामिल हैं. इन दो लोगों ने सत्तर के दशक के हिंदी सिनेमा की तस्वीर बदल दी, एंग्री यंग मैन का किरदार गढ़ कर परदे पर एक नया हीरो पेश किया, अमिताभ बच्चन के सुपरस्टार बनने की बुनियाद रखी.
सितारों से ज्यादा पैसे मांगने की हिम्मत
फिल्में उनके नाम से बिकती थीं, वो तमाम नामी सितारों से ज्यादा पैसे मांगने की हिम्मत रखते थे. प्रोड्यूसर उन्हें मुंह मांगी रकम देते भी थे. ये वेब सीरीज इन दो लेखकों की ही कहानी लेकर आई है. दोनों की अलग-अलग पृष्ठभूमि, शुरुआती संघर्ष, साथ आने, कामयाबी का इतिहास लिखने, निजी जिंदगी में जुड़ने-टूटने और फिर आखिर में अपनी खुद की जोड़ी के टूटने की कहानी इस सीरीज में बखूबी दिखाया गया है.
इस सीरीज में हनी ईरानी, शबाना आजमी, जोया अख्तर, सलमान खान, अरबाज खान, फरहान अख्तर, हेलन, रमेश सिप्पी, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, आमिर खान, रितिक रोशन के अलावा तमाम फिल्म क्रिटिक, तमाम राइटर्स-डायरेक्टर्स के कमेंट्स भी शामिल किए गए हैं. इस डॉक्यूमेंट्री में भावुक बातें भी बहुत हैं. दोनों की जिंदगी में मां की कमी एक समानता है. ये बात उनकी लिखी फिल्मों में भी झलकती है. मसलन दीवार का वो डायलॉग.. मेरे पास मां है.
कई समानताएं और कई असमानताएं भी
सलीम-जावेद की कहानी में कई समानताएं और कई असमानताएं भी हैं. जो इस सीरीज में दिखाया भी गया है. हालांकि उनका जिक्र नहीं है. शादी से बाहर प्रेम का पनपना और दूसरी औरत का दाखिल होना. फिर परिवार में उस संबंध की स्वीकार्यता भी दिखाई गई. जैसे सलीम खान को जब हेलेन से प्यार हुआ तो उन्होंने ये बात सबको बुलाकर बताई और अपने सभी बच्चों से कहा कि मैं उसी रेस्पेक्ट की उम्मीद करता हूं जो तुम अपने मां को देते हो.
लेकिन एक बड़ा कबूलनामा जावेद अख्तर की तरफ से आता है जब वह कहते हैं कि दुनिया में वे अगर किसी एक इंसान के गुनहगार हैं तो वो हैं हनी ईरानी, इतना कहते फिर उनकी आंखें डबडबा जाती हैं. शबाना आजमी भी अपना पक्ष रखती हैं.
सलीम-जावेद की अगर तुलना करें तो जावेद अख्तर के खाते में एक बड़ी साहित्यिक विरासत है. जानिसार अख्तर और सफिया अख्तर के बेटे, मजाज लखनवी के भांजे, कैफी आजमी के दामाद. इसके बाद उन्होंने खुद भी शेर और शायरी की दुनिया में काम और नाम दिखाया. उनकी बातों में बौद्धिक गहराई है. वे लगातार लाइमलाइट में रहते हैं. उनके पॉडकास्ट.. इंटरव्यूज आए दिन तमाम प्लेटफॉर्म्स पर दिख जाते हैं. वहीं सलीम खान में सादगी है, उनकी बातों में आम बोलचाल की भाषा झलकती है. वे लाइमलाइट से उचित दूरी बनाए रखते हैं.
कुलमिलाकर बतौर सलीम जावेद के फैन और बतौर सिनेमाई दर्शक ये वेब सीरीज एक उपहार है. तमाम सीमाओं के बावजूद दर्शकों को इसमें काफी कुछ मिलेगा. नम्रता राव इसकी निर्देशक हैं, निर्माता सलमान खान, फरहान अख्तर, जोया अख्तर, रितेश सिधवानी और रीमा कागती हैं. लेखक भी नम्रता राव हैं. बीस अगस्त को रिलीज हुई है और अमेजन प्राइम पर उपलब्ध है.